Shekhawat family became an example in oyster farming

आॅयस्टर की खेती में मिसाल बनी शेखावत फैमिली

विश्व में मशरूम की खेती हजारों वर्षों से की जा रही है, जबकि भारत में मशरूम के उत्पादन का इतिहास लगभग तीन दशक पुराना है। भारत में 10-12 वर्षों से मशरूम के उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। इस समय हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना व्यापारिक स्तर पर मशरूम की खेती करने वाले प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

साल 2019-20 के दौरान भारत में मशरूम का उत्पादन लगभग 1.30 लाख टन हुआ। हमारे देश में मशरूम का उपयोग भोजन व औषधि के रूप में किया जाता है। प्रोटीन, काबोर्हाइड्रेट, खनिज लवण और विटामिन जैसे उच्च स्तरीय खाद्य मूल्यों के कारण मशरूम सम्पूर्ण विश्व में अपना एक विशेष महत्व रखता है। भारत में मशरूम को खुम्भ, खुम्भी, भमोड़ी और गुच्छी आदि नाम से जाना जाता है।

भारत में उगाई जाने वाली मशरूम की किस्में विश्व में खाने योग्य मशरुम की लगभग 10000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां ही खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। भारतीय वातावरण में मुख्य रूप से पांच प्रकार के खाद्य मशरूमों की व्यावसायिक स्तर पर खेती की जाती है। इनमें से सफेद बटन मशरूम ढींगरी (आॅयस्टर) मशरूम, दूधिया मशरूम, पैडीस्ट्रा मशरूम, शिटाके मशरूम, सफेद बटन मशरूम मुख्य है।

भारत में ढींगरी (आॅयस्टर) मशरूम ढ़ींगरी (आॅयस्टर) मशरूम की खेती वर्ष भर की जा सकती है। इसके लिए अनुकूल तापमान 20-30 डिग्री सेंटीग्रेट और सापेक्षित आद्रता 70-90 प्रतिशत चाहिए। आॅयस्टर मशरूम को उगाने में गेहूं व धान के भूसे और दानों का इस्तेमाल किया जाता है। यह मशरूम 2.5 से 3 महीने में तैयार हो जाता है। इसका उत्पादन अब पूरे भारत वर्ष में हो रहा है। ढ़ींगरी मशरूम की अलग-अलग प्रजाति के लिए अलग-अलग तापमान की आवश्यकता होती है, इसलिए यह मशरुम पूरे वर्ष उगाई जा सकती है। 10 कुंतल मशरूम उगाने के लिए कुल खर्च 50 हजार रुपये आता है। इसके लिए 100 वर्गफीट के एक कमरे में रैक लगानी होती है।

वर्तमान में आॅयस्टर मशरूम 120 रुपए प्रति किलोग्राम से लेकर एक हजार रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में बिक जाता है। जयपुर का भी एक युवा दंपति न केवल आॅयस्टर मशरूम की खेती कर रहा है बल्कि उसके विभिन्न तरह के उत्पाद बनाकर मार्केट में अच्छा मुनाफा कमा रहा है।

आइए, हम आपको ऐसे ही सफल शेखावत फैमिली की सफलता की कहानी उन्हीं की जुबानी बताते हैं-

नौकरी छोड़ आॅयस्टर मशरूम की खेती अपनायी

प्रकृति प्रेमी प्रीति राठौड़ व उनके पति मानवीर सिंह शेखावत ने आधुनिक खेती के अपने जुनून को आगे बढ़ाने और जीवन जीने का एक स्थायी मॉडल बनाने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। इलेक्ट्रॉनिक एवं संचार में इंजिनियर प्रीति राठौड़ ने एमबीए मार्केटिंग पति मानवीर सिंह शेखावत के साथ मिलकर सुपर फूड आॅयस्टर मशरूम की खेती को अपनाया, बल्कि इससे उत्पादों का निर्माण कर उसे व्यावसायिक रूप दिया। बकौल प्रीति राठोर, हमने अपने जुनून को आगे बढ़ाने और जीवन जीने का एक स्थायी मॉडल बनाने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। एक व्याख्यता के रूप में मैंने अपना कॅरियर शुरू किया। शादी के बाद मैं अपने बच्चों को समय दे सकूं अपनी नौकरी छोड़ दी।

कुछ समय बाद बड़े बेटे को गेहूं से एलर्जी हो गई इसलिए इससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो गई थी। इसी दौरान मैं भी थायराइड की वजह से बहुत परेशान हो गई। मैं पौष्टिक और स्वस्थ आहार के लिए शोध कर रही थी। तब मुझे आॅयस्टर मशरूम के बारे में पता चला कि यह औषधीय गुणों से भरपूर एक सुपर फूड है। इसके बाद इसकी खेती करने का मन बनाया और मशरूम की खेती के प्राकृतिक तरीके और उसके स्वास्थ्य लाभों की खोज की। इसके बाद राजस्थान कृषि अनुसंधान केंद्र, दुर्गापूरा, जयपुर से आॅयस्टर मशरूम के बारे में तकनीकी ज्ञान प्राप्त कर हिमाचल प्रदेश के सोलन से गहन प्रशिक्षण प्राप्त कर इसकी खेती प्रारंभ कर दी।

अंब्रोसिया मशरूम फार्म की शुरूआत

प्रीति राठौड़ व मानवीर सिंह ने वर्ष-2019 में सोलन से प्रशिक्षण लेकर अंब्रोसिया यानी ईश्वर का भोजन नाम से मशरूम फार्म हाउस की शुरूआत की। प्रीति राठौड़ बताती हैं कि अंब्रोसिया केवल एक खेत नहीं है, बल्कि एक भावना है जो गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हमारे द्वारा किए गए प्रयासों से होती है। इसे पूर्णतया जैविक तरीके से सस्टेनेबल मेथडस फोलो करते हुए जीरो वेस्ट फॉर्मिंग कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि हमने इस तरह की फॉर्मिंग को इसलिए अपनाया क्योंकि यह ग्रोवर, कंज्यूमर एवं एनवायरनमेंट के लिए हेल्दी है। हम अपने उत्पादों के लिए पुनर्नवीनीकण एवं बायोडिग्रेडेबल पैकिंग का उपयोग करते हैं। हम मशरूम को बायोडिग्रेडेबल ट्रे में आॅयस्टर मशरूम, पेपर पाउच में मशरूम पाउडर और कांच के जार में अचार पैक करते हैं। इसके अलावा ओयस्टर मशरूम बिस्किट व ओयस्टर मशरूम बड़ी का भी निर्माण करते हैं।

महत्वपूर्ण समस्याओं का शानदार समाधान

प्रीति राठौड़ मानती हैं कि आॅयस्टर मशरूम से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है। यह मशरूम अपने पोषण मूल्य और अन्य लाभों जैसे विटामिन, खनिज, प्रोटीन, फाइबर और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर सुपर फूड है।

आॅयस्टर मशरूम के मामले में किसान सब्सट्रेट के रूप में मशरूम की खेती करने के लिए कृषि अवशिष्ट का पुन: उपयोग कर सकते हैं। मशरूम की कटाई के बाद उसी कृषि अवशिष्ट को फिर से काम में लिया जा सकता है। मशरूम की तुड़ाई के बाद इसके बचे हुए बैग का उपयोग खाद बनाने के लिए काम में लिया जा सकता है।

बिना जमीन के खेती संभव

प्रीति राठौड़ के अनुसार-आजकल किसानों को कम कार्बन मूल्य का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें बढ़ती फसलों के लिए अधिक रसायनों का उपयोग करने के लिए मजबूर करता है। भूमि के रसायनों और निम्न कार्बन मूल्य के उच्च उपयोग को देखते हुए, फसल का पोषण मूल्य, मात्रा और गुणवत्ता अल्प है।

अगर किसानों के पास जमीन और पानी की कमी है, तो हमें मशरूम की खेती के लिए बड़े क्षेत्र की आवश्यकता नहीं है। प्रारंभ में हम 10 गुणा 10 फुट साइज के कमरे के आकार के साथ शुरू कर सकते हैं। हम कम पानी की मात्रा के साथ कमरे में जगह रैक के साथ ऊधर्वाधर खेती कर सकते हैं, इसलिए यह पैसे बचाता है।

मशरूम से बनाए अनेक उत्पाद

हमारे शरीर का 80 से 90 प्रतिशत भाग व्यायाम से नहीं बल्कि स्वस्थ भोजन से फिट और स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर के लिए मशरूम का बहुत बड़ा योगदान है वह चाहे किसी भी रूप में ग्रहण किया गया हो।

इसी वजह से शेखावत फैमिली ने ताजा आॅयस्टर मशरूम, धूप में सुखाया आॅयस्टर मशरूम, आॅयस्टर मशरूम पाउडर और आॅयस्टर मशरूम का आचार, बिस्किट व बड़ी का निर्माण किया। बकौल प्रीति राठौड़, सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए लोगों को जागरूकता से अच्छा एक्सपोजर मिल रहा है जिससे आॅयस्टर मशरूम के आॅर्डर मिलने लगे हैं।

घर के कचरे से खाद का निर्माण

शेखावत फैमिली ने घर के कचरे से ही जैविक खाद बनाने का अनूठा कार्य किया है। बकौल प्रीति राठौड़, पर्यावरण के प्रति प्रेम के कारण हमने अपने घर के गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग करना शुरू किया। इसके बाद जैव एंजाइम और गीले कचरे से खाद तथा प्लास्टिक कचरे से इको ईंट बनानी शुरू कर दी।

ऐसा पिछले दो साल से कर रहे हैं। पहले अपने घर से यह कार्य शुरू किया जो कि अब अपने उदयम के माध्यम से आमजन को इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि अपने घर के दैनिक कचरे का समुचित उपयोग करके हम कार्बन फुट प्रिंट को कम करके प्रकृति को स्वच्छ और स्वस्थ रख सकते हैं।

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