बढ़ाएं अपनी कार्यक्षमता
हर व्यक्ति में कार्यक्षमता अलग-अलग पाई जाती है। यह आनुवंशिक तो है ही लेकिन अपनी इच्छा से व्यक्ति इसे बढ़ा सकता है।
यह सच है कि जैसे काफी बातें हमारे वश में नहीं होती हैं,
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कार्यक्षमता पर भी पूर्णत:
जोर नहीं चल सकता। कई बाधाएं कुदरती हो सकती हैं जिनसे जूझ पाना असंभव तो नहीं लेकिन बहुत मुश्किल हो सकता है, उदाहरणार्थ गिरती सेहत, बुढ़ापा, मानसिक तनाव व डिप्रेशन आदि।
दिल्ली में प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे मन:
चिकित्सक डॉक्टर तनेजा का मानना है कि हमारी कार्यक्षमता हमारे शरीर के स्रायु रसायनिक संगठन पर आश्रित है। हमारे मस्तिष्क की स्रायु कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न डोपामीन शरीर में जब अतिरिक्त होता है तो हमारी कार्यक्षमता बढ़ाता है। यही कारण है कि कई लोग अथक परिश्रम कर लेते हैं और कई जरा से परिश्रम में बोल जाते हैं, इस सच के बावजूद कि शारीरिक रूप से वे बिल्कुल चुस्त दुरूस्त हैं।
कार्यक्षमता का बढ़ना घटना दरअसल कई बातों से संबंधित है। जिस कार्य में हमारी रूचि होती है, उसे करते हम आसानी से नहीं थकते। उसी तरह जो काम ऊबानेवाला, थोपा हुआ किसी मजबूरी के तहत करना पड़ता है उसमें हम शीघ्र थक जाते हैं।
आउटडोर गेम्स खेलने में काफी ऊर्जा लगती है लेकिन जिन्हें खास गेम से लगाव होता है या टूर्नामेंट्स, मैच इत्यादि जीतने का लक्ष्य उसके सामने होता है, वे घंटों प्रैक्टिस करने पर भी थकान महसूस नहीं करते।
अमीर घरों के बहुत लाड़ प्यार में पले बच्चे जिन्हें पानी का गिलास भी नौकर ही पकड़ाते हैं। अक्सर बहुत आरामतलब होते हैं। वे चार कदम भी पैदल चलना नहीं चाहते। वाहनों पर निर्भरता उन्हें काहिल बना देती है लेकिन गरीबी की मार सहने वाले जुझारू बन कर श्रम से नहीं कतराते, क्योंकि उन्हें आदत होती है। उनका शरीर भी उसी तरह ढल जाता है। हां, अपवाद तो हर जगह ही मिल सकते हैं यानी गरीबी में पला आलसी हो सकता है और अमीरी में पलने के बावजूद कोई बहुत कर्मठ मेहनती भी हो सकता है।
हमारे काम करने की सामर्थ्य में आनुवंशिकता और स्वभाव से फुर्तीला होना बहुत मायने रखता है। कुछ भाग इसमें-आश्चर्य तो होगा लेकिन, सच है कि नैतिकता का भी है। आप में सेवाभाव हो, दूसरे का शोषण न करने की प्रवृत्ति जैसा नैतिकता का बोध हो तो वे आपको ज्यादा कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे।
दरअसल यह सब दिमाग से प्रारंभ होता है। अपंगता इसमें बाधक होकर भी नहीं होती। कई बार आप हैंडीकैप होने पर भी लोगों को इतना मेहनती और फुर्तीला क्रि याशील देखेंगे कि दंग रह जाएंगे। वे सुस्त, काहिल और निकम्मे लोगों के लिए प्रेरक हैं। उन्हें देखकर सबक लिया जा सकता है।
ईश्वर ने इंसान को ढेर सारी ऊर्जा देकर बनाया है। इसका स्रोत कभी न खत्म होने वाला होता है, बस समझने की जरूरत है। आधी से ज्यादा बीमारी इंसान की इस बात से ठीक हो सकती है कि उसमें अबाध ऊर्जा का स्रोत है। कार्यक्षमता बढ़ाने की गुंजाइश हर व्यक्ति की हर समय हर जगह होती है।
यह बात अलग है कि उम्र के अनुसार उसका स्वरूप बदल जाता है। एक स्वस्थ जवान आदमी का स्टेमिना बूढ़े बीमार व्यक्ति से निस्संदेह ज्यादा होगा।
आपने वर्कोहलिक लोगों के बारे में सुना होगा। क्या है यह वर्कोहलिज्म अर्थात कार्योन्माद? स्टेमिना की अत्यधिकता या स्वभाव की बेचैनी। ऐसे व्यक्ति न खुद कभी चैन से रहना जानते हैं न दूसरों को चैन से रहने देते हैं। इनकी कार्यक्षमता हर समय नये-नये आयाम ढूंढती रहती है।
स्टेमिना बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी बात है शारीरिक और मानसिक फिटनेस अर्थात अपने को पूर्णत: स्वस्थ रखने की ओर प्रयत्न। इसके लिए मोटी मोटी बातें हैं व्यायाम, अच्छा खान पान और जीरो आॅयल वाला भोजन। फेफड़ों की मजबूती के लिए खुलकर हंसना, ताजी हवा में देर तक जल्दी-जल्दी टहलना, गहरी श्वास लेना, दोनों नथुनों को बारी-बारी से बंद कर श्वास लेना-छोड़ना, हर समस्या मुसीबत का ठंडे दिमाग से सामना करना तथा जानलेवा तनावों से बचना।
जीवन में आशावादी रूख अपनाते हुए सदैव जीवन का स्वागत करना सीखें। कभी ऊब को अपने पर हावी न होने दें। काम के साथ आराम को भी उतना ही महत्त्वपूर्ण समझें तो आपने भीतर अकल्पनीय परिवर्तन पायेंगे।
-उषा जैन ‘शीरीं’