क्रोध से बचना ही बेहतर है It is better to avoid anger
क्रोध जिसके प्रति है, कुछ देर के लिए वह स्थान छोड़ दें, उससे किनारा कर लें। पानी का गिलास पीएं। अल्लाह, वाहेगुरु, सतगुरु, परमात्मा, गॉड के नाम का सुमिरन करें। ईश्वर के नाम को तेजी से दोहराएं, क्रोध शीघ्र दूर हो जाएगा।
-पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां It is better to avoid anger
देखने में आया है कि गुस्सा आजकल लोगों की नाक की नोक पर धरा रहता है। बात बेबात लोग क्रोध में आ जाते हैं, बिगड़ उठते हैं। नतीजा यह होता है कि बात बढ़ जाती है। गाली-गलौज, हाथापाई, मारपीट तक की नौबत आ जाती है। मामला थाना कचहरी तक जा पहुंचता है।
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धैर्य, संयम व सहनशीलता को आजकल कमजोरी माना जाने लगा है।
नई पीढ़ी तो घुट्टी में तुनुकमिजाजी लेकर पैदा हो रही है। उस पर कोढ़ में खाज-फिल्मों में और टी.वी. पर दिन-रात हिंसा को महिमामंडित कर के प्रदर्शित किया जाता है। एंग्री यंगमैन की छवि सराही जाती है।
किसी टू-व्हीलर अथवा फोर-व्हीलर गाड़ी को अगर जाने अनजाने आपने ओवरटेक कर लिया तो पूरी संभावना है कि ‘रोड-रेज’ से ग्रस्त उस गाड़ी के सवार आप के साथ अभद्रता करें, मारपीट पर उतर आएं, यहां तक कि आप की जान भी ले लें।
मनोचिकित्सक हमेशा क्रोध से बचने की सलाह देते हैं। क्रोध से मानसिक तनाव पैदा होता है जिससे रक्तचाप बढ़ जाता है। उच्च रक्तचाप को साइलेंट किलर कहा गया है। उच्च रक्तचाप के बाद अगला पड़ाव तो हृदयरोग ही है।
सयाने सलाह देते हैं कि क्रोध आने पर कुछ भी कहने या करने से पहले एक से दस तक गिनती गिनें या एक गिलास पानी पिएं। किसी पत्र को पढ़ कर क्रोध आ जाए तो उस का उत्तर उस समय न दें।
आशय यही है कि क्रोध को शांत होने का अवसर दें।
यह एक सामान्य अनुभव है कि क्रोध शांत होने पर अपने क्रोध पर स्वयं ही ग्लानि होती है, पश्चाताप होता है, लज्जा आती है। सोचिए, भला वह काम ही क्यों करना जिस पर बाद में पछताना व शर्मिंदा होना पड़े।
क्रोध में होते हुए कभी दर्पण में अपना प्रतिबिंब निहार कर देखिए। आप के मुखमंडल की सारी आभा, कांति, स्निग्धता व कोमलता तिरोहित हो जाती है। चेहरा वीभत्स और विकृत हो जाता है।
जो लोग स्वभाव से क्रोधी होते हैं।
उनके चेहरे पर स्थायी रूप से भृकुटि तनी रहती है। शालीनता का अभाव होता है। क्रूरता बरसती रहती है। मनुष्य का चेहरा ही तो उसके व्यक्तित्व की झलक देता है और पहचान कराता है।
क्रोध के वशीभूत हो कर उसे ही बिगाड़ लेना कहां तक उचित है। क्रोध में जो बहुमूल्य ऊर्जा नष्ट होती है, उसे क्यों न किसी उपयोगी, सकारात्मक, रचनात्मक, कार्य में लगाया जाए।
क्रोधी व्यक्ति से हर आदमी कतराता है। दूर रहना चाहता है। उसके अपने परिवारजन भी यथासंभव उससे दूरी बनाए रहना चाहते हैं। परिणामस्वरूप वह अकेला पड़ जाता है। अपने क्रोध की ज्वाला में वह स्वयं ही धधकता सुलगता रहता है। ऐसा जीवन भी भला कोई जीवन है। जन-संपर्क एवं पब्लिक डीलिंग के व्यवसाय वालों के लिए तो क्रोध एक प्रकार से घातक ही है।
क्रोध पर काबू पाना अधिक कठिन भी नहीं है। बस आवश्यकता है एक दृढ़ संकल्प की कि चाहे जो भी हो जाए, मैं क्रोध में नहीं आऊंगा। जैसे ही क्रोध आने लगे, इसे मंत्र की तरह जपिए। कुछ ही समय के अभ्यास से आप क्रोध की प्रवृत्ति पर काबू पाना सीख जाएंगे। क्रोध पर हावी हो जाएंगे।
तब आप पाएंगे कि आप का संपूर्ण जीवन दर्शन ही बदल गया है। सोच में एक नई इन्द्रधनुषी छटा सी बिखर गई है। यही दुनियां आप को अधिक सुंदर अधिक आकर्षक, अधिक लुभावनी लगने लगेगी। प्रयोग करके तो देखिए।
ओमप्रकाश बजाज
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