Left America and started natural farming in Mohali - Charandeep Singh

अमेरिका छोड़ मोहाली में शुरू की प्राकृतिक खेती

पंजाब के मोहाली में रहने वाले 57 वर्षीय किसान, चरणदीप सिंह साल 2015 से अपनी सात एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।

वह न केवल अपने परिवार को बल्कि 17 परिवारों तक स्वस्थ व जैविक खाना पहुंचा रहे हैं। साथ ही, उनके खेतों में पक्षियों को भी भरपूर दाना-पानी मिलता है। इसलिए, पिछले तीन-चार सालों में उनके खेतों में आने वाले, अलग-अलग प्रजातियों के पक्षियों की संख्या बढ़ी है, जो न सिर्फ उनके खेतों में कीट-प्रबंधन के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है।


साल 2008 में अमेरिका से अपने वतन लौटे, चरणदीप सिंह के परिवार में पहले किसी ने नहीं सोचा था कि वह खेती करनी शुरू करेंगे। उनके पिता सेना में थे और अपनी पढ़ाई के बाद चरणदीप अमेरिका चले गए। वहां उन्होंने कुछ कंपनियों में बतौर कंसलटेंट काम किया। लेकिन, एक वक्त बाद उन्होंने अपने देश लौटकर अपने परिवार के साथ रहने का फैसला किया और वतन लौटने के लगभग पांच साल बाद, उन्होंने तय किया कि वह प्राकृतिक खेती करेंगे।

वह कहते हैं, ‘अपना खाना स्वस्थ तरीकों से उगाने की प्रेरणा मुझे मेरी पत्नी से मिली। उन्होंने एक दिन मुझसे कहा कि हम जहर खा रहे हैं और सिर्फ मुनाफे के बारे में ही सोच रहे हैं। जब मैंने अपने आस-पास की स्थिति पर गौर किया तो लगा कि उनकी बात बिल्कुल सही है। इसके बाद मैंने फैसला किया कि मैं खुद खेती करूँगा। हमारी सात एकड़ की पारिवारिक जमीन है, जिसे हम दूसरों को किराए पर देते थे। लेकिन, फिर हमने 2013 से इसे किराए पर देना बंद कर दिया।’ साल 2013 से 2015 तक उन्होंने अपने खेत को बिल्कुल खाली रखा और फिर इसमें खेती शुरू की।

जंगल मॉडल से करते हैं खेती

साल 2015 से उन्होंने खेती की शुरूआत की और तय किया कि वह कुदरती ढंग से अपने खेतों में खाद्य जंगल विकसित करेंगे। उन्होंने कुछ इस तरह से खेती करने का फैसला किया कि उन्हें कोई केमिकल से बनी खाद न देनी पड़े। उनके खेत अपने आप में समृद्ध हों और अपना संतुलन बनाकर रखें। इसके लिए, उन्होंने गेहूं, चावल, दाल जैसी फसलों के साथ-साथ, अपने खेतों में फलों के पेड़ लगाए। साथ ही, वह मौसमी सब्जियां भी उगाते हैं।

उन्होंने बताया, ‘मैंने सभी फसलें देसी बीजों से लगाई है। मेरे खेत की मुख्य फसलें, गेहूं और चावल हैं। मैं चार किस्म के चावल उगाता हूँ, जिनमें बासमती के अलावा, लाल और काले चावल भी शामिल हैं। इसके अलावा, मैं मूंग, अरहर, मसूर, और मोठ जैसी पाँच किस्म की दालें भी उगाता हूँ। मैंने यहां कई मौसमी सब्जियां भी लगाई हैं। जिनमें कद्दू, पेठा, घीया, टमाटर, लहसुन, प्याज, धनिया, हरी मिर्च आदि शामिल हैं। साथ ही, मैं सरसों, मूंगफली और हल्दी भी उगाता हूँ। मैंने अपने खेतों में सौंफ, अजवाइन, जीरा और कलौंजी भी लगाई हुई है।


चरणदीप सिंह ने अपने खेतों में माल्टा, संतरा, नींबू, कीनू, अनार, मौसंबी, पपीता, आड़ू, चीकू, लीची, केले और नाशपाती आदि फल लगाए हुए हैं। वह बताते हैं कि गेहूं से वह आटा और मैदा बनाते हैं। कच्ची हल्दी को प्रोसेस करके हल्दी पाउडर, मूंगफली से पीनट बटर और सरसों से मस्टर्ड सॉस बना लेते हैं।

अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के अलावा, वह और 17 परिवारों को आटा, चावल, फल तथा सब्जियां पहुँचाते हैं। उन्होंने बताया, ‘ये 17 परिवार के लोग, सीधे हमारे फार्म से जुड़े हुए हैं। आटा, चावल के अलावा, अन्य मसाले, फल तथा सब्जियां भी ये हमसे ही खरीदते हैं। इसके अलावा, जो भी उपज बचती है, उसे हम चंडीगढ़ के साप्ताहिक जैविक बाजार में जाकर बेचते हैं। वहाँ भी हमसे, 20 से ज्यादा नियमित ग्राहक जुड़े हुए हैं।’

चंडीगढ़ में रहने वाली रुचिका गर्ग बताती हैं, ‘शहर में लगने वाली एक आॅर्गेनिक मार्केट में, हमारी मुलाकात चरणदीप जी से हुई थी। पिछले एक साल से हम उनसे ही सब्जियां, सरसों का तेल और मसाले आदि खरीद रहे हैं। सभी कुछ एकदम स्वस्थ और प्राकृतिक है। खाने के स्वाद से ही आपको पता चल जाता है कि यह बाजार से कितना अलग है। हमने उनके खेतों का भी दौरा किया है और अब हमें पता है कि उनके यहाँ से जो भी आता है, वह हमारे परिवार के लिए अच्छा है। सब्जियां हों या फल, वह सभी कुछ एकदम ताजा डिलीवर कराते हैं।’

कमाई के बारे में चरणदीप कहते हैं कि उनके घर का सालाना खर्च जितना है, उससे ज्यादा उनकी आमदनी हो जाती है। कभी ज्यादा मुनाफा होता है तो कभी कम, लेकिन उनके परिवार के लिए पर्याप्त रहता है। ‘जब मैंने खेती शुरू की तो मुझे एकदम से उत्पादन नहीं मिलने लगा था। इसमें कुछ समय लगा क्योंकि, मैं अपनी खेती में किसी रसायन का उपयोग नहीं करना चाहता था। लगभग दो-ढाई साल बाद, उत्पादन बढ़ना शुरू हुआ और अब लगभग सभी फसलों से अच्छी उपज मिल रही है। लेकिन, पिछले तीन सालों से उत्पादन अच्छा हो रहा है।

उन्होंने बताया, ‘मैं अपने खेतों में काफी प्रयोग भी करता हूँ। जैसे मैंने तीन पहाड़ी दाल-नौरंगी, कुल्थी और काली भट्ट की दाल को खेत के एक छोटे से हिस्से में लगाया था। जिससे मुझे नौरंगी और काली भट्ट की दाल में बहुत अच्छा उत्पादन मिला तथा अब इन्हें खेत के बड़े हिस्से में लगाया जा सकता है।’

चरणदीप सिंह अपने खेतों में बचने वाले हर तरह के कृषि अपशिष्ट से खाद बनाते हैं और इसी खाद को खेतों में उपयोग करते हैं। इसके अलावा, वह अपने खेतों में हरी खाद देते हैं। उन्होंने बताया, ‘अलग-अलग मौसम की फसलों की कटाई और बुवाई के बीच एक-दो महीने का अंतराल होता है। इस समय खेत खाली होते हैं तो हम छह-सात तरह के ऐसे पौधों के बीज लेते हैं, जो मिट्टी को अलग-अलग पोषक तत्व प्रदान करते हैं। इन बीजों को हम खेत में लगा देते हैं। जब इनमें से पौधे निकल आते हैं और थोड़े बड़े हो जाते हैं तो इन्हें काटकर खेत में ही डाल दिया जाता है। इसके बाद, खेत की जुताई कर दी जाती है। इस तरह से खेतों को हरी खाद दी जाती है।

पक्षी करते हैं कीट प्रबंधन

वह बताते हैं कि कीट-प्रबंधन के प्राकृतिक तरीकों के बारे में, जब उन्होंने जाना तो पता चला कि पक्षी इसमें एक अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन, किसानों के दोस्त माने जाने वाले ये पक्षी, आजकल खेतों में दिखाई ही नहीं देते हैं। इसलिए, उन्होंने अपने खेतों को इन पक्षियों के अनुकूल बनाने के बारे में विचार किया। उन्होंने बताया, ‘मेरे खेत हर तरह के रसायन से मुक्त हैं। साथ ही, मैं सिर्फ देसी बीजों से ही खेती करता हूँ। पक्षियों के लिए मेरे खेत में भरपूर खाना रहता है। साथ ही, मैंने इनके बैठने, रहने और पानी पीने की व्यवस्था भी की है। पेड़ों पर घोंसले लगाए हैं ताकि ये पक्षी इनमें रह सकें।’

उनके खेत में आज 50 से ज्यादा किस्म के पक्षी आते हैं, जिनमें चील, टील, स्टर्लिंग, मैना, प्लोवर, हॉर्नबिल और मोर आदि शामिल हैं। वह बताते हैं कि उन्हें अपने खेतों में अलग-अलग रंग के पक्षी दिखने शुरू हुए तो उन्होंने इनकी तस्वीरें खींचना शुरू की। धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी इसमें बढ़ती गई और वह चंडीगढ़ बर्ड क्लब से जुड़ गए। क्लब के व्हाट्सएप ग्रुप में, वह इन पक्षियों की तस्वीरें डालते और उसके बारे में जानने की कोशिश करते थे। अक्टूबर 2019 में, उन्होंने क्लब के सदस्यों को अपने खेतों पर आमंत्रित किया।

क्लब के सदस्य, अमनदीप सिंह बताते हैं, ‘हमारा क्लब काफी समय से चंडीगढ़ में पक्षियों पर काम कर रहा है। हम यहाँ के पहाड़ी और कृषि क्षेत्रों में जाकर देखते हैं कि कौन-कौन से पक्षी, उन इलाकों में मौजूद हैं। इसलिए, जब चरणदीप ने हमें बुलाया तो हम वहाँ पहुंचे। उनके यहाँ हमने 70 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी देखे और हमें यह देख कर भी बहुत खुशी हुई कि एक किसान की कोशिशें, प्रकृति को सहेजने में कैसे मददगार होती हैं।

हमने देखा कि उनके खेतों के आसपास के इलाकों में भी पक्षी काफी संख्या में मौजूद थे। क्योंकि, पक्षियों को उनके फार्म में भरपूर खाना मिलता है।’

वह कहते हैं कि पक्षियों को एक सुरक्षित माहौल चाहिए, जो चरणदीप ने अपने खेतों में बनाया है। वह इन पक्षियों को खाना-पानी दे रहे हैं और बदले में पक्षी उनके खेतों में कीट-प्रबंधन और पॉलिनेशन में मददगार साबित हो रहे हैं। किसानों को अपने खेतों के लिए, ऐसी व्यवस्थाएं जरूर करनी चाहिये। क्योंकि, इससे न सिर्फ पक्षियों को स्वस्थ खाना मिलेगा बल्कि पर्यावरण के लिए भी यह बेहतर रहेगा।

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