Leaving business and earning a name from integrated farming

बिजनेस छोड़ इंटिग्रेटिड फार्मिंग से कमाया नाम
यदि किसान परंपरागत ढंग से खेती करे और एक ही फसल बोए तो 3 से 4 महीने बाद उसे अपनी मेहनत का दाम मिलता है। निरंतर आय न मिल पाने की वजह से किसान आर्थिक रूप से संपन्न भी नहीं हो पाता लेकिन अगर खेती के तौर तरीकों में बदलाव किया जाए समन्वित खेती या इंटिग्रेटिड फार्मिंग के फामूर्ले को अपनाए तो वह एक नियमित आय पा सकता है। साथ ही आर्थिक रूप से सबल भी हो जाता है। आधुनिक खेती के इसी पैंतरे को अपनाकर हरियाणा के एक किसान ने बनाया है खुद को लखपति।

60 वर्षीय सुरेश गोयल हरियाणा के जिले हिसार के गांव तलवंडी रुक्का के रहने वाले हैं। उनका गांव ट्रांसपोर्टेशन के कामगारों के लिए प्रसिद्ध है। इसी गांव में सुरेश गोयल बीते सात साल से सफल खेती कर रहे हैं। उनके किसान बनने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। उनके बचपन में गांव में ज्यादातर चीजों की सुविधाएं नहीं थीं। यहाँ तक कि विभिन्न प्रकार के फल और सब्जियाँ भी नहीं मिलती थी। गाँव के लोग खाने में ज्यादा से ज्यादा आलू-प्याज या फिर दाल और कढ़ी पर ही निर्भर थे। उनकी अपनी कोई जमीन भी नहीं थी तो वह खुद भी कुछ नहीं उगाते थे।


हालांकि सुरेश की खेती को अपनाने की कहानी जमशेदपुर से शुरू होती है, वहां उनके मामा रहते थे। एक बार वो सुरेश के घर आए और उन्होंने माँ से पूछा कि यहां फल-फ्रूट भी नहीं मिलते क्या? मां ने भी उनको ताना देते हुए कहा कि, मुझे कौन-सा तुम लोगों ने बागों वाले के यहाँ ब्याहा था जो फल-फ्रूट मिलेंगे। बस उसी ताने के बाद सुरेश ने ठान ली कि मुझे अपनी माँ के लिए बाग लगाना है।

सुरेश गोयल के लिए किसानी कोई पुश्तैनी व्यवसाय नहीं है, परिवार में पहले से कोई किसान नहीं है, सुरेश खुद भी लगातार 32 साल तक मुंबई-चेन्नई जैसे बड़े शहरों में ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय करते रहे। अंत में जाकर वह और उनका परिवार मुंबई में रहने लगे। वर्ष 2012 में उन्होंने अपनी मां के नाम से गांव में ही साढ़े सात एकड़ जमीन खरीदी और साल 2013 में ट्रांसपोर्टेशन के व्यवसाय को बच्चों को सौंपकर मुंबई से वापिस अपने गांव लौट आए और खेती की तरफ रूख किया। खेती की शुरूआत करने से पहले सुरेश गोयल ने कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केन्द्रों से कृषि के गुर सीखे, खेती की वर्कशॉप्स में हिस्सा लिया, जैविक और प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग ली और इसी बीच उन्होंने हरियाणा-पंजाब के कई प्रगतिशील किसानों से मुलाकात भी की। वे दूसरे गांवों के किसानों के खेतों में जाकर खेती के आधुनिक तौर तरीकों को जानने लगे, फिर डेली इनकम मॉडल के आधार पर साढ़े सात एकड़ जमीन पर जैविक खेती की शुरूआत की।

जैविक और प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग के दौरान उन्हें एक बात समझ में आ गई थी कि उन्हें न तो खुद केमिकल खाना है और न ही वह दूसरों को केमिकल खिलाएंगे। उन्होंने धीरे-धीरे अपनी जमीन को 13 एकड़ तक फैला लिया और आज इस 13 एकड़ से सुरेश हर साल लगभग 20 लाख रुपये की बचत करते हैं। वे बताते हैं कि किसानी के लिए उनका सिद्धांत ‘डेली इनकम मॉडल’ यानी कि हर रोज की कमाई है।

सबसे पहले उन्होंने अपने खेत में उचित दूरी पर फलों के पेड़ लगाए। उनके बाग में विभिन्न फलों के, जैसे-अमरूद, मौसमी, आंवला, कीनू, नींबू, चीकू, आडू, आलूबुखारा, अनार, जामुन, लीची, सेब, बेर ऐप्पल, नारंगी आदि के 1500 पेड़ हैं। ये सभी पेड़ साल में अलग-अलग मौसम में फल देते हैं जिससे उन्हें सालभर उपज और सालभर आमदनी मिलती रहती है।


फलों से अलग दो एकड़ जमीन पर सुरेश सब्जियों की भी खेती करते हैं जहां उन्होंने 10 अलग-अलग सब्जियों की मल्टी क्रॉपिंग की है इससे उन्हें लगातार किसी न किसी सब्जी की उपज मिलती रहती है। सुरेश को हो रहे अच्छे मुनाफे की एक बड़ी वजह है कि वो उपज को थोक बाजार में बेचने की बजाय सीधे ग्राहक को बेचते हैं। आसपास के गांवों के ही इतने ग्राहक हैं कि उनकी फल सब्जियां खेत से ही बिक जाती हैं। इससे उनका फलों-सब्जियों को बाजार तक पहुंचाने का खर्च भी बचता है और दाम भी अच्छे मिलते हैं।

उपज को सीधे ग्राहक को बेचने के लिए सुरेश अपने बाग में ही सब्जी मण्डी भी लगाते हैं जहां वो बाजार से थोड़े कम दाम पर सब्जी-फल बेचते हैं तो जैविक फल-सब्जियों की खरीद के लिए ग्राहकों की भी कमी नहीं होती। जो माल बच जाता है उसके लिए उन्होंने दो कामगार भी रखे हैं जो फल-सब्जियों को ठेलों पर रखकर बेच आते हैं।

इस तरह डेली इनकम मॉडल से उन्हें अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है।

जैविक खेती के कुछ आसान तरीके:

सुरेश शुरू से ही जैविक खेती कर रहे हैं, उन्होंने अपने खेतों में कभी-भी केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया। खाद बनाने के लिए गोबर और सूखे पत्ते आदि तो हर कोई इस्तेमाल करता है, लेकिन सुरेश अपने खेतों से निकलने वाली खरपतवार को विशेष तौर पर खाद बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने अपने खेतों में ही एक गड्ढा बनाया हुआ है जहाँ पर खेतों से निकली खरपतवार को डाला जाता है और इससे बनी खाद का इस्तेमाल वह अपने खेतों में करते हैं। फलों और सब्जियों के पेड़-पौधों से कीटों को दूर रखने के लिए वह नीम के तेल का इस्तेमाल करते हैं जो एक प्राकृतिक पेस्टीसाइड है। इसके अलावा, वह अपनी फसल के चारों ओर कुछ फूलों के पेड़ लगाते हैं ताकि सभी कीट उनकी तरफ आकर्षित हों और फलों को खराब न करें।

आंवला पाउडर दूर-दूर तक प्रसिद्ध

सुरेश फिलहाल आंवले की प्रोसेसिंग कर रहे हैं लेकिन इसमें भी उन्हें अच्छा मुनाफा मिल रहा है। वह बताते हैं कि उन्होंने अपनी आंवले की फसल को एक बार मंडी में भेजा लेकिन वहां उन्हें 12 रुपये किलो का दाम मिल रहा था। उन्होंने सारे आंवले वापस मंगवा लिए और उसकी प्रोसेसिंग करने की ठानी। सबसे पहले उसका पाउडर बनाया और फिर उसमें कई अलग प्राकृतिक चीजें मिलाकर एक खास नमक तैयार किया। आज यह नमक गाँव के अलावा आस-पास के गांवों में भी जाता है। इसके अलावा, बाहर से आने वाले लोग भी इसे खरीदकर ले जाते हैं।

ड्रिप इरिगेशन सिस्टम भी इंस्टाल

रात में फसल के कीटों से बचाव के लिए भी उन्होंने एक अनोखा तरीका निकाला है पूरे बाग में लाइटिंग कर जगह-जगह बल्ब लगाए हैं और हर बल्ब की नीचे गड्ढा कर उनमें पानी भर देते हैं ताकि कीट रोशनी से आकर्षित होकर उधर आएं तो पानी में गिर जाएं। पूरे बाग में फ्रूट फ्लाई ट्रैप और पानी की बचत के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम भी लगाया है।

महिलाओं को रोजगार व गांव की भलाई

सुरेश के मॉडल की सबसे अच्छी बात यह है कि उन्होंने इसके जरिए अपने गांव के लोगों को रोजगारपरक बनाया है। उनके फल और सब्जियों की फेरी लगाने के लिए उन्होंने गांव के ही दो-तीन लोगों को रखा हुआ है, जिन्हें पैसे देते हैं। इसके अलावा, उन्होंने अपने बाग के रखरखाव का काम गांव के गरीब तबके की महिलाओं को दिया है। उनके बाग में 22 महिलाएं काम करतीं हैं। ट्रांसपोर्टेशन के व्यवसाय से खेती के व्यवसाय में सफलता की बुलंदियां छूने वाले सुरेश गोयल ने साबित कर दिया कि यदि आप किसी काम को मन से करें तो सफलता जरूर मिलती है।

देश विदेश से समर्थन और प्यार

किसान सुरेश गोयल का डेली इनकम मॉडल देखने के लिए देश-विदेश के वैज्ञानिक और जिज्ञासु प्रवृति के लोग आते रहते हैं और वो अपने तरीके से इनके साथ चर्चा करते हैं। सुरेश अपने प्रत्येक ओब्सेर्वेशन और प्रैक्टिकल को उनके साथ शेयर करते हैं और उनसे भी सीखने का प्रयास करते हैं कि उनके देशों में यहां महसूस की जाने वाली समस्याओं का लोगों ने क्या समाधान ढूंढा हुआ है।

शानदार चूहा मैनेजमेंट

अक्सर किसान अपने खेतों में चूहे मारने की गोलियां मांगते नजर आते हैं लेकिन किसान सुरेश की शानदार चूहा मैनेजमेंट भी कई समस्याओं का समाधान है। सबसे पहले वे सफेद चूहे लेकर आए और खेत में ही एक पक्की झोपड़ी का निर्माण कर दिया। झोपड़ी में चूहों के छोटे-छोटे कमरे बना दिए। सुबह-शाम उनके खाने-पीने का बंदोबस्त भी किया।

दिन-प्रतिदिन सफेद चूहों की संख्या बढ़ने लगी और उन्होंने लंबे-लंबे बिल खोद लिए जिनमें से बिल खेतों तक भी पहुंच गए और चूहों ने खेतोें में भी घूमना-फिरना शुरू कर दिया। अब सफेद चूहों के खेतों में आने से जंगली चूहे वहां से चले गए और खेतों में एक प्राकृतिक बैलेंस बन गया और एक बड़ी समस्या का अच्छा हल खोज मिल गया।

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