सत्संगियों के अनुभव डॉ. एमएसजी लायनहार्ट पिता जी की रहमत
बहन मीनूं इन्सां पत्नी प्रेमी गोविंद प्रकाश इन्सां गली नं. 8 प्रीतनगर सरसा।
पूज्य सतगुरु डॉ. एमएसजी लायनहार्ट (संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) की अपार रहमत का वर्णन बहन लिखित में इस प्रकार बताती है। घटना 1992 की है। मेरा पति गोविंद प्रकाश भारतीय एयरफोर्स में कार्यरत था।
उन दिनों उनकी बदली आदमपुर दोआबा जालंधर एयरफोर्स हैडक्वाटर की हो गई थी। हमारी रिहायश भी वहीं पर ही थी। उस दिन हम लोग (सारा परिवार) जब अपनी किसी रिश्तेदारी में एक शादी कार्यक्रम से वापिस आए तो मैंने अपने सोने की चैनी (गले का गहना) तथा अंगूठी आदि उतार कर सूट की कटिंग में लपेट कर वह पोटली सी अलमारी, (सेफ) में या पता नहीं ऐसे ही कहीं रख दी थी। अर्थात् जहां मैं अपने गहने पहले रखा करती थी, शायद वहां पर नहीं रख पाई थी, ऐसे ही कहीं रख दिए थे।
उपरान्त नौ-दस दिन के बाद मेरे बेटे का जन्म दिन था, मैंने सोचा कि चलो, बेटे के जन्म दिन पर गहने पहन लूं। रख बैठी थी कहीं और जो कि मैं भूल गई थी, और ढूंढ रही थी वहां पर, जहां हम अपने गहने रखते हैं। वहां पर गहने न पाकर मेरे तो होश ही गुम हो गए कि मैंने तो यहीं रखे थे।
तो गए तो गए कहां? उपरान्त गहनों की तलाश में हमने अपना सारा घर छान मारा, घर का एक-एक कोना, एक-एक चीज को बार-बार उलट-पलट तथा सामान की फरोला-फराली करके देखा, परंतु गहना (चैनी व अंगूठी) हमें कहीं नहीं मिला। याद मुझे आये नहीं कि मैंने रखे कहां हैं! मन में आए कि कहीं कूड़े में न चले गए हों। तो हमने कूड़े वाले ड्रम में भी देखा जहां हम सभी लोग (एयर फोर्स कालोनी वाले) कूड़ा फैकते हैं। लेकिन एक दिन पहले ही कूड़ा उठाने वाले कर्मचारी टैक्टर-ट्राली में कूड़ा भरके ले गए थे। फिर भी हम लोग (पति-पत्नी दोनों) उस ढेर में कूड़े वाली जगह से लकड़ी के डंडे से फरोला-फराली करके देख आए और सुबह होते ही फिर भी जाकर देखा। फिर हमने कूड़े में आग भी लगा दी कि कूड़ा जलने के बाद गहना हाथ लग जाएगा, लेकिन उस राख में भी मुझे अपना गहना नहीं मिल पाया। आखिर पतिदेव भी कुछ नाराज हुए कि सुबह से सारा दिन बीत गया, न कुछ खाया न पीया, अब मैं नहीं जाऊंगा कूड़ा फरोलने।
खाना बना दे बहुत ज्यादा भूख लग रही है। खाना बनाते हुए भी मैं पूज्य पिता जी को याद भी कर रही थी और उलहाने भी दे रही थी कि मेरे ससुराल वालों को पता चल गया न इस नुकसान का तो वो लोग बहुत नाराज होंगे और बुरा भला भी कहेंगे। वो सारे बिना नाम वाले हैं।
मैं क्या मुंह लेकर जाऊंगी उनके सामने। मुझे बहुत भय और घबराहट भी हो रही थी यह सोच-सोच कर। फिर मैंने मन ही मन निश्चय किया कि खाना खिलाने के बाद मैं एक बार फिर कूड़े के उस ढेर में देखकर आऊंगी। मैंने पूज्य पिता जी से अपने मन में अरदास भी की कि पिता जी, मेरी लाज रखना जी। मेरा गहना मुझे जरूर मिलना चाहिए जी। मैंने कूड़ा दान के नीचे वाली जगह भी (कूड़ा दान वाला ड्रम (ढोल) हटाकर) देखा।
कूड़ा तो दो दिन पहले उठा लिया गया था, फिर भी मन को तसल्ली देने के लिए कि शायद गहनों की वो पोटली नीचे ही कहीं अटक गई हो, लेकिन मन बहुत उदास हआ। आखिर में मैंने यह बात अपने पूज्य गुरु मुर्शिदे कामिल डॉ. एमएसजी पिता जी लॉयन हार्ट संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां पर छोड़ दी कि पिता जी, आप जी की जैसी मर्जी? आप जी को अगर यही मंजूर है तो हमारा क्या जोर है। और साथ ही साथ यह भी दुआ की कि पिता जी, अगर आप मेरे वास्तव में पिता जी हैं, तो प्लीज, मेरा गहना ढूंढ कर मुझे दे दो, वह जहां भी है, आप जी ढूंढ कर दे सकते हैं। यह विनती करके मैं बुझे मन से (निराश होकर) कूड़े वाली जगह से बाहर आ गई।
चाहे बाहर आ गई थी लेकिन निगाह फिर भी कूड़े वाली जगह पर बार-बार जाती कि कहीं इधर न हो या कहीं उस तरफ न पड़ा हो। बाहर खड़ी अभी सोच ही रही थी कि अब देखा जाएगा जो भी होगा। सुनने ही पडंगे ससुराल वालों की डांट और ताने और अपने गुरु प्यारे को भी साथ-साथ में याद कर रही थी कि मालिक तू ही लाज रखने वाला है, अचानक एक दम पूज्य शहनशाह पिता जी के साक्षात मुझे दर्शन हुए और मैंने महसूस किया कि मेरे पैर से कोई पोटली सी स्पर्श हुई है। मैंने नीचे अपने पैरों में देखा बिल्कुल वोही सूट की कटिंग की छोटी सी पोटली मेरे पैरों के बीच पड़ी हुई है।
मैंने तुरंत उठा कर देखा उत्सुकता और भी ज्यादा तेज हो गई थी कि मालिक पोटली तो वो ही है,अब सामान भी सही सलामत हो। मैंने तुरंत फुर्ती से पोटली की गांठ खोली तो देखकर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। बिल्कुल वही चैनी, और वही अंगूठी पाकर मेरा तन मन सुकून से भर गया आंखों में मालिक के वैराग्य के आंसू छलक आए कि सच्चे पातशाह जी, आप जी सचमुच ही मेरे खुद-खुदा रब्ब हो।
कितने उलाहने, कितना कुछ नहीं कहा मैंने चंद रुपयों के इस सामान के बदले आप जी को। पिता जी मुझे क्षमा करना जी। आप जी का बहुत-बहुत धन्यवाद मेरे सोहणे शहनशाह दाता जी। वाह मेरे सतगुरु मालिक। वाह। आप जी का कोई भी सानी नहीं है। दाता, तू धन्य है। हमेशा हमें आप जी का सहारा मिलता रहे मेरे सतगुरु। आप जी के रहमो करम का बदला हम कभी भी चुका नहीं सकते।