सिर्फ मनोरंजन न होकर इबादत का जरिया है -संगीत
संगीत तनाव से निजात दिलाता है, सोचने समझने की शक्ति विकसित करता है। जोश, जुनून के साथ ही दिल-ओ-दिमाग को सुकून देता है यही है संगीत। भागदौड़ भरी जिंदगी की बड़ी से बड़ी टेंशन संगीत सुनकर दूर हो जाती है। कुछ लोगों के लिए संगीत सिर्फ मनोरंजन न होकर इबादत का जरिया है।
प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व संगीत दिवस मनाया जाता है। यह दिवस कुल 110 देशों में ही मनाया जाता है (जर्मनी, इटली, मिस्र, सीरिया, मोरक्को, आॅस्ट्रेलिया, वियतनाम, कांगो, कैमरून, मॉरीशस, फिजी, कोलम्बिया, चिली, नेपाल, और जापान आदि)। फ्रांस में इस दिन सारे कार्यक्रम मुफ्त में सभी के लिए खुले होते हैं। बड़े-से-बड़ा कलाकार भी इस दिन बिना पैसे लिए प्रदर्शन करता है।
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ऐसा माना जाता है कि हर किसी शख्स के साथ अपने पसंद के गीत सुनने के दौरान शरीर के संवेदनशील अंगों में हरकतें होती हैं। मन झूमने लगता है, दिमाग में आनंद छा जाता है, कभी किसी धुन पर आंसू तक निकल आते हैं। दरअसल मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि संगीत का सेहत से गहरा संबंध है। अब विज्ञान के क्षेत्र में संगीत के सेहत से संबंध पर शोध हो रहे हैं।
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प्रकृति के कण-कण में संगीत
योग से हम स्वस्थ्य रहते हैं उसी तरह हम संगीत से भी स्वस्थ्य व प्रसन्न रहते हैं। कहा जाता है कि प्रकृति के कण-कण में संगीत का सुर सुनाई देता है। जैसे- सुबह की हवा, चिड़ियों का चहकना और पेड़ों के पत्ते का लहराना, सभी संगीत के रूप में जाने जाते हैं। हम सभी की आत्मा में संगीत बस चुका है, हम खुश रहते हैं तो संगीत, गम में संगीत यानी सुख-दुख का साथी है संगीत जिससे हम कभी नहीं दूर रह सकते। संगीत वही है जिसमें लय हो, इस तर्ज पर कविताएं भी संगीत से कम नहीं होतीं। उनमें लय है, शब्दों के आरोह-अवरोह हैं और गायन भी है।
संगीत में जादू
संगीत में जादू जैसा असर है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी के द्वारा मधुर तान छेड़कर तीनों लोकों को मोह लिया था। पावस की लाजवंती संध्याओं को श्वेत-श्याम मेघ मालाओं से नन्हीं-नन्हीं बूंदों का रिमझिम-रिमझिम राग सुनते ही कोयल कूक उठती हैं, पपीहे गा उठते हैं, मोर नाचने लगते हैं तथा मजीरे बोल उठते हैं, लहलहाते हुए खेतों को देखकर किसान आनंद विभोर हो जाता है और वह अनायास राग अलाप उठता है। यही वह समय होता है जबकि प्रकृति के कण-कण में संगीत की सजीवता विद्यमान होती है। इन चेतनामय घड़ियों में प्रत्येक जीवधारी पर संगीत की मादकता का व्यापक प्रभाव पड़ता है।
तनाव दूर करें संगीत
विश्व भर में म्यूजिक के दीवानों की कमी नहीं है। चाहे आप खुश हो या दुखी, संगीत आपके मूड के हिसाब से काम करता है। हम सब जानते हैं संगीत हमारा एक ऐसा दोस्त है जो हमारे तनाव को दूर करके हमारे मूड को बेहतर बनाने का काम करता है। आज की भागदौड़ भरी जिदंगी में लोगों को कई प्रकार की मानसिक परेशानियों, तनाव और अन्य समस्याओं से जूझना पड़ता है और संगीत इन सबसे उबरने में मददगार साबित हो सकता है। आज लोगों की जो जीवनशैली है वह कई प्रकार के तनाव और दबाव से गुजरती है और संगीत इन सबसे बाहर निकलने का कारगर उपाय है। म्यूजिक थेरेपी के तहत व्यक्ति के स्वभाव, उसकी समस्या और आसपास की परिस्थितियों के मुताबिक संगीत सुनाकर उसका इलाज किया जाता है।
फ्रांस से हुई संगीत दिवस की शुरूआत
वर्ल्ड म्यूजिक डे का आयोजन सबसे पहले फ्रांस में हुआ था। फ्रांस के लोगों में संगीत को लेकर एक खास लगाव देखने को मिलता है। लोगों के इसी लगाव को देखते हुए 21 जून को ‘वर्ल्ड म्यूजिक डे’ के रूप में मनाने की घोषणा की। सबसे पहले फ्रांसीसी लोगों की संगीत के प्रति दिवानगी को देखते हुए 21 जून 1982 को आधिकारिक रूप से संगीत-दिवस की घोषणा कर दी गई।
साल 1976 में अमेरिका के मशहूर संगीतकार जोएल कोहेन ने फ्रांस में संगीत पर आधारित एक जनसमूह का आयोजन किया था। अलग-अलग देशों के संगीतकार अपने-अपने वाद्ययंत्रों के साथ रात भर अपने कार्यक्रम पेश करते हैं। विभिन्न देशों से आए वहां के मशहूर संगीतकार लोगों के लिए पार्क, म्यूजियम, रेलवे स्टेशन पर लोगों के लिए संगीत बजाते हैं। लोगों का मनोरंजन करने के बदले वो उनसे कोई पैसा भी नहीं लेते हैं। संगीतकार इन जलसों के जरिए पूरी दुनिया में अमन व शांति का संदेश फैलाना चाहते हैं।
संगीत एक मधुर ध्वनि
यह सब जानते हैं कि जब कभी इंसान अकेला होता है तो वो संगीत का सहारा लेता है। खुशी हो या गम हर चीज में इंसान संगीत ढूंढने की कोशिश करता है। संगीत और इंसान का साथ काफी गहरा है। शायद इतना गहरा कि जब इंसान को बोलना नहीं आता था तब भी खुशी या गम जाहिर करने के लिए उसके गले से आवाज निकलती थी उसमें भी कोई न कोई धुन या लय होती थी। समय के साथ जब इंसान ने बोलना सीखा और प्रगति करने लगा तो धीरे-धीरे संगीत के मायने भी बदल गए। अब संगीत इंसान के लिए महज आवाज बनकर नहीं रह गया।
बल्कि एक मधुर ध्वनि में बदल गया, जिसे सुनकर या सुनाकर वो खुद को या दूसरों को खुश कर सकता। दूसरे शब्दों में कहें तो संगीत लोगों के खुश रहने का जरिया बन गया। इसके बाद जब ये संगीत और थोड़ा विकसित हुआ तो इसमें शब्दों के अर्थों की माला पिरोकर इसमें जान भरी गई और संगीत यंत्रों के जरिए इसे और खूबसूरत बनाया गया। बताया जाता है कि संगीत यंत्रों में सबसे पहले बांसुरी अस्तित्व में आई थी। इंसान का जब विकास हो रहा था तब उसने सबसे पहले हड्डी की बांसुरी बनाई थी। इसके बाद संगीत के दूसरे यंत्र बनने लगें।
संगीत एक साधना
संगीत साधना फिर चाहे गायन हो, वादन हो, कलाकार को एक ही मुद्रा में घंटों बैठे रहना पड़ता है। उसी तरह से योग में भी एक अवस्था में बैठना आवश्यक है। संगीत में एक ही स्थान पर साधना करने के लिए शरीर, मन व मस्तिष्क पूर्ण स्वस्थ होना चाहिए। और इसके लिए योग सर्वश्रेष्ठ है। योग से शरीर, मन, मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। मनुष्य एकाग्र रहता है व प्रसन्न मन से काम करता है।
संगीत का असली आनंद सड़क पर, बगीचे में, बरामदे में, छत पर सुबह, शाम घूमते हुए उठाना चाहिए। रात में सोने से दो घंटे पहले सुपाच्य भोजन करना चाहिए और दिन में कम से कम एक बार दिल खोलकर हंसना चाहिए। विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि संगीत साधना व योग साधना दोनों से मनुष्य के जीवन में शक्ति का विकास होता है। शरीर तथा मन को स्वस्थ्य, प्रफुल्लित रखने के लिए योग शास्त्र व संगीत शास्त्र दोनों समान रूप से आवश्यक है। दोनों से शरीर, मन, मस्तिष्क स्वस्थ रहता है, एकाग्रता रहती है।
म्यूजिक थेरेपी
भारत में संगीत की परंपरा भले ही बहुत पुरानी रही हो लेकिन संगीत से इलाज या ‘म्यूजिक थेरेपी’ की अवधारणा अभी भारतीयों में बहुत ज्यादा प्रचलित नहीं है। विशेषज्ञों की मानें तो संगीत अपने आप में बहुत प्रभावी है और तनाव तथा कई मानसिक रोगों से निजात दिलाने में तथा तन और मन को प्रसन्न रखने में अहम भूमिका निभाता है। संगीत का प्रभाव बहुत गहरा होता है। यह नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल सकता है और ‘म्यूजिक थेरेपी’ यानी ‘संगीत थेरेपी’ का आधार भी यही है। संगीत की स्वर लहरियों से मनोरंजन के तौर पर तो मन प्रसन्न होता है।
साथ ही यह तनाव और कई मानसिक विकारों को दूर करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसे-जैसे व्यक्ति संगीत की स्वर लहरियों में खोता जाता है, उसका ध्यान दूसरी बातों से हटता जाता है और वह राहत महसूस करने लगता है। संगीत थेरेपी में विकारों को दूर करने के लिए व्यक्ति विशेष के स्वभाव, प्रकृति और समस्या के अनुसार संगीत तैयार करना होता है। इसके लिए आर्केस्ट्रा और अन्य कई उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे जैसे मरीज में सुधार होता है संगीत में उसके अनुसार बदलाव किया जाता है। यही वजह है कि यह थेरेपी महंगी साबित होती है।
रोगियों को निरोगी बनाता है संगीत
जिन लोगों की याददाश्त कम हो या कम हो रही हो, उन्हें राग शिवरंजनी सुनने से बहुत लाभ मिलता है। वीणा वादन और बांसुरी सुनने से अत्यधिक फायदा होता है। खून की कमी या शारीरिक कमजोरी से पीड़ित होने पर व्यक्ति निस्तेज रहता है। राग पीलू से संबंधित गीत सुनने से लाभ पाया जा सकता है। मृदंग और ढोलक से उत्साह का संचार होता है। बीमारियों का इलाज अब केवल दवाइयों से ही नहीं, बल्कि अपरंपरागत उपचार विधियों से भी किया जाने लगा है। सुगंध, स्पर्श से लेकर संगीत द्वारा भी बहुत सी बीमारियों का इलाज किया जाने लगा है।
बहुत से शोधों के उपरांत चिकित्सा विज्ञान भी यह मानने लगा हैं कि प्रतिदिन 20 मिनट अपनी पसंद का संगीत सुनने से रोजमर्रा की होने वाली बहुत-सी बीमारियों से निजात पाई जा सकती है। ध्वनि तरंगों के माध्यम से भी उपचार संभव है। संगीतज्ञ सारंग देव ने संगीत के सात सुरों को शरीर के सात अंगों से जोड़ा और इसके मुताबिक संगीत तैयार करने की कोशिश की। जिसमें उन्हें काफी सफलता भी मिली। म्यूजिक थेरेपी से इलाज के लिए ऐसे संगीत का इस्तेमाल किया जाता है जिससे व्यक्ति को चैन मिल सके। इलाज के दौरान संगीत सुनते-सुनते कई बार लोगों को रोना भी आ जाता है लेकिन बाद में वे हल्का महसूस करते हैं।