Heirs of unclaimed - Sachi Shiksha

unclaimed न तो उसका किसी से कोई खून का रिश्ता-नाता है, न ही किसी से जान-पहचान। फिर भी वह ऐसा काम करता है जिसे करने में अपने भी शायद पीछे हट जायें। श्रवण कुमार के देश में वह ऐसा श्रवण कुमार हैं, जो बुजुर्गों को खून के रिश्ते से बढ़कर चाहता है और उनकी सेवा करने को खुद का सौभाग्य समझता है।

रवि कालरा नाम के इस शख्स को मिलेनियम सिटी गुरुग्राम में रियल श्रवण कुमार के नाम से जाना जाता है।
पूत से कुपूत बनी औलाद के तिरस्कार का पात्र बने बुजुर्गों के लिए जिंदगी का आखिरी पड़ाव मुश्किलों से भर जाता है। औलाद अपने माँ-बाप को बोझ समझने लगती है। ऐसे हालातों में इन बेबस लोगों को घर से बाहर निकाल दिया जाता है, न जानें वे किन परिस्थितियों में जीवन की आखिरी सांसें गिन रहे होते हैं। सड़कों के किनारे बुजुर्गों, लाचारों की दुर्दशा देखकर रवि कालरा का दिल पसीज गया।

ऐसे असहाय लोगों की मदद को उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। वर्ष 2008 में उन्होंने द अर्थ फाउंडेशन नाम से इंटरनेशनल संस्था (गुरुकुल) (गुरुग्राम-फरीदाबाद रोड पर गांव बंधवाड़ी) में बनाई, जहां लाचार, अंगहीन व असाध्य बीमारियों से पीड़ित लोग जो सड़कों पर आवारा घूमने को विवश हैं, ऐसे लोगों को इस गुरूकुल में लाकर उनकी सार-संभाल की जाती है और उपचार मुहैया करवाया जाता है।

रवि कालरा स्वयं गुरुग्राम, फरीदाबाद व दिल्ली की सड़कों से लाचार लोगों को उठाते हैं और अपने गुरुकुल में लेकर आते हैं। अपने हाथों से उनको नहलाना, शरीर की सफाई करना, गले-सड़े अंगों की सफाई करके उनकी मरहम-पट्टी करना रवि कालरा की दिनचर्या में शामिल हो चुका है। रवि कालरा उन चुनिदा व्यक्तियों में से एक हैं जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दीन-दुखियों एवं गरीब लोगों की सेवा में समर्पित किया हुआ है।

रवि कालरा बताते हैं कि लावारिस लोगों से उनका आश्रम भरा पड़ा है। कभी 50 लोग उनके आश्रम में थे, जोकि अब 450 का आंकड़ा पार कर चुके हैं। बहुत अधिक बीमार और बुजुर्ग लोगों की मौत भी हो जाती है। कई बार उन्हें सड़कों के किनारे लाशें भी मिलती हैं। यह बात सुनकर आप चौंक जायेंगे कि रवि कालरा अब तक 6000 से अधिक लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं। अंतिम संस्कार के बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए वे उनका पिंड दान तक करते हैं।

उन्होंने बताया कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली के साथ उनका यूनिक कॉन्ट्रेक्ट हुआ है, जिसके तहत एम्स उन्हें रोजाना 30-40 लावारिस लाशें अंतिम संस्कार के लिए सौंपता है। हजारों लावारिस लोगों का उपचार करके उन्होंने उनके परिजनों से भी मिलवाया है।

आधी रात को सड़कों पर देखे जा सकते हैं कालरा

अपनी दिनचर्या में रवि कालरा आधी-आधी रात को सड़कों पर जाकर ऐसे लोगों को ढूढ़ते हैं जो लाचार, मानसिक रूप से बीमार, सड़े-गले या जिन लोगों को कीड़े पड़े हुए होते हैं। उन लोगों को वह सड़कों से लाकर अपने गुरुकुल में सेवा करते हैं। रवि कालरा बताते हैं कि वैसे तो देश श्रवण कुमारों से भरा है, लेकिन कलयुग के ये श्रवण कुमार अपने मां-बाप को मरने के लिए छोड़ देते हैं। उदाहरण देते हुये वे बताते हैं कि एक बेटा अपने कोमा में गये पिता को लेकर उनके आश्रम में आया और उन्हें दाखिल करने की बात कही।

जब उसे कहा गया कि वह संपन्न घर से है, क्यों न अपने पिता का उपचार कराये? जब उसे मना किया गया तो उसने अपने पिता को एक किराये का घर लेकर उसमें बंद करके उसमें चूहे छोड़ दिये और खुद अमेरिका रवाना हो गया। एक और किस्सा सुनाते हुए रवि बताते हैं कि एक बेटे ने तो प्रॉपर्टी लेने के लिए अपने पिता को 10 साल से एक ही कमरे में बंद करके रखा था। वे कहते हैं कि 21वीं सदी और टेक्नोलॉजी के दौर में इंसान पत्थर दिल होता जा रहा है। रिश्तों को बोझ मानने लगा है।

ध्वनि प्रदूषण पर भी खूब किया है काम

रवि कालरा ध्वनि प्रदूषण दूर करने का अभियान भी व्यापक पैमाने पर चलाते हैं। इसके अंतर्गत उन्होंने लगभग एक लाख से भी अधिक वाहनों के पीछे लिखे-हॉर्न प्लीज संकेतों को मिटाया और एक वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। उनकी इस लग्न के परिणाम स्वरूप उन्हें हॉन्ंिकंग मैन आॅफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है।

नि:स्वार्थ मानव कल्याण सेवा के खातिर रवि कालरा को वर्ष 2012 में सरदार वल्लभ भाई पटेल इंटरनेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।

– संजय कुमार मेहरा

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