जान से प्यारा है तिरंगा हमारा

सबका देश हिंदुस्तान
तिरंगा गौरव शान
इसकी शान लाख गुणा बढ़ाएंगे।
भेद-भाव मिटाकर हम
मिलकर उठाएं कदम
मीत बनकर सब बुराइयों के
छक्के छुड़ाएंगे।
जिएंगे मरेंगे मर-मिटेंगे देश के लिए।।
-पूज्य गुरु जी

देश में 75 वां स्वतंत्रता दिवस धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। हम अपनी आजादी के साढ़े 7 दशक पूरे कर चुके हैं। आजादी का यह गौरवशाली इतिहास देश के चहुंमुखी विकास का गवाह है। हम आजाद हुए, हम आबाद हुए और जमीं से लेकर आसमां तक हमने अपना रूतबा दिखाया है। आज पूरी दुनिया हिंदोस्तान का लोहा मानती है। जो आजादी हमें सैंकड़ों कुर्बानियों के साथ वीरों ने सौंपी उसका संरक्षण हम भारतवासियों के लिए पहला फर्ज है। हर भारतवासी अपने देश की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता की गरिमा को बनाए हुए है। देश की आन-बान-शान के लिए जान की बाजी लगाना भी बड़ी बात नहीं है।

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संत-महापुरूषों का भी देश की आजादी में अपना महत्व रहा है, क्योंकि उनके लिए भी पहले अपना देश होता है। आजादी के इस पावन दिवस को जिस प्रकार इस बार बढ़-चढ़कर कर मनाया जा रहा है। सरकार की ओर से स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हो जाने पर इस बार विशेष उत्सव का आयोजन करके आम जन मानस को इसमें भागीदार बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसी मकसद से इसके लिए ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ नाम से कैंपेने चलाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। पूरे देश में ‘हर घर तिरंगा’ की लहर चल रही है। डेरा सच्चा सौदा की ओर से भी इसके आयोजन में बढ़-चढ़कर भाग लिया जा रहा है। डेरा अनुयायियों को पहले ही पूज्य गुरु जी की ओर से हमारे राष्टÑीय ध्वज तिरंगा को घर-घर फहराने का आह्वान किया गया है।

इस बार गुरु पूर्णिमा वाले दिन 13 जुलाई को पूज्य गुरु जी की ओर से किए गए आह्वान सदका साध-संगत अपने-अपने घरों में तिरंगा लहरा रही है। पूज्य गुरु जी का देशभक्ति का यह संदेश हर किसी को राष्टÑहित के प्रति जां निसार की भावना पैदा करने वाला है। राष्टÑभावना से ओत-प्रोत हर कोई गुरु जी का लाख-लाख बार शुक्रिया कर रहा है, क्योंकि हर अनुयायी के लिए यह भी रूहानियत के नजारों का गुलिस्तां है। समूह साध-संगत का जज्बा अपने आप में बेमिसाल है। देश की खातिर मर-मिटने को हर समय तैयार रहने वाले ऐसे नागरिक हैं, जो देश की खुशहाली के लिए, समाज को साफ-सुथरा बनाने व स्वच्छ दिशा देने में जुटे हुए हैं। समाज के सच्चे हितैषी ऐसे नागरिकों पर सबको फख्र है। और ऐसे नागरिकों को अपने सतगुरु पर गर्व है, जिन्होंने उनको ऐसे मार्ग पर चलना सिखाया, मानवता की प्रेरणा दी है।

आजाद रहने की ललक तो परिंदे को भी रहती है, हम मनुष्यों को तो इसकी एवज में जान की बाजी भी लगानी पड़े तो किसी का इंतजार नहीं किया जा सकता। यही ललक तो थी, जिसने हमारे वीर-सपूतोंं के जेहन में कुर्बान होने की लौ जगाई थी। इसी लौ की लाट पर परवाने झूम-झूम कर न्यौछावर हो गए। परवानों का यह कारवां 1857 से लेकर 1947 तक यानि अपनी मंजिल पा लेने तक अनवतरत चलता रहा और जिंदगियों की बाजी लगाता रहा। सैंकड़ों अनमोल जिंदगियां इस गर्दोगवार में खार हुई हैं। खेलने-कूदने वाली नाजुक सी उम्र वाले लाल भी इसी ललक में दुश्वारियों की राह चल पड़े। उनका यही शगल था, कि बस अब आजाद होना है!

अपनी किस्मत अपने हाथों लिखनी है। सरफरोशी की तमन्ना थी, यही चाह थी, यही लगन थी कि अब जमीं भी अपनी हो, आसमां भी अपना हो। उनके ऐसे जूनुनी जज्बातों का अंदाजा रामप्रसाद ‘बिस्मल’ द्वारा रचित गीत की इन लाइनों से ही मिल जाता है:- ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले। वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। इलाही वह दिन भी होगा, जब देखेंगे राज्य अपना, जब अपनी ही जमीं होगी और अपना ही आसमां होगा।।’ आजादी की इस राह में महान योद्धाओं, शूरवीरों के साथ-साथ कवियों ने भी अपनी रचनाओं से उनके जोश को कम न होने दिया और अपने आप को मिटा गए। इन उपरोक्त लाइनों से मालूम होता है कि उनके अरमान कितने विस्फोटक थे! उनके जज्बात कितने क्रांतिकारी थे! अंतत: उन्होंने खून का कतरा-कतरा बहा दिया और गुलामी की जंजीरों को तोड़कर जमीं भी अपनी कर ली और आसमां भी अपना हो गया। आज हमें अपने देश पर नाज है। हम सीना ठोक कर कह सकते हैं ये आसमां भी अपना है, ये जमीं भी हमारी है। दुश्मनों को हमारी ललकार है कि हमारी जमीं पर कदम रखने का दुस्साहस ना करे।

किसी की नजर ना लगे:-

जिस देश की धरा पर गंगा सी अमृत धारा और आसमां में हिमालय की लहकती आबो-हवा हो, उस देश के बाशिंदे होना हमारी खुशकिस्मती है। यहां की विविध रंगीन संस्कृतियां, सुर-सुरीली भाषाएं, बोलियां इतर है। यहां के स्वाभिमानी, मनमौजी रहवासी इक माला के मोती हैं। हम हिंदवासी हिन्द के होनहार वीर हैं। हमें इसकी सरहदों से प्यार है। इसकी मिट्टी में हमारी जान बसती है। इसके लिए जान की बाजी लगा देने को वीर तैयार रहते हैं। सरहदों पर बैठे वीर-सपूत, गर्वीली माओं के लाल अपना बलिदान देकर भी हमारी आजादी पर आंच नहीं आने देते! हमारी भुजाओं में ही बल है कि हम अपनी आजादी पर आंच तो क्या आने देंगे, बल्कि दूसरों की आजादी के लिए भी कदम पीछे हटाने वाले नहीं हैं! पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराना इसका स्पष्ट जीता-जागता उदाहरण भी है।

वहीं आजकल भुटान की सीमाओं की जिम्मेवारी हम अपने कंधों पर उठाए हुए है, जिसके लिए डोकलाम सरहद पर चीनी सैनिकों के सामने हम दीवार बन खड़े हैं! वीर सैनिकों के ऐसे जज्बे को सलाम है! आजादी का यह महान दिवस हमें यही प्रेरणा देता है कि हर नागरिक सजग-सतर्क रहे ताकि हमारी आजादी पर कोई अपनी बुरी नजर डालने की हिमाकत ना कर सके! अंग्रेजों की गुलामी की जकड़न से आजाद हुए हमें पूरे 75 वर्ष बीत गए हैं और इन वर्षों में देश ने हर क्षेत्र, चाहे टेक्नोलॉजी, प्रौद्योगिकी है या शिक्षा, खेल, अंतरिक्ष अथवा कोई भी क्षेत्र ले लीजिए, दुनिया में हमारे मुल्क का नम्बर है। स्वतंत्रता के इस शुभ अवसर पर यही कामना है कि देश का हर शख्स देश की तरक्की में बढ़चढ़ कर सहयोग करे।
-साभार।

अब 24 घंटे शान से फहराइये तिरंगा

अब भारतीय झंडा संहिता, 2002 के भाग-दो के पैरा 2.2 के खंड (11) के अनुसार, जहां झंडा खुले में प्रदर्शित किया जाता है या किसी नागरिक के घर पर प्रदर्शित किया जाता है, इसे दिन-रात फहराया जा सकता है। इसी तरह, झंडा संहिता के एक अन्य प्रावधान में बदलाव करते हुए कहा गया कि राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काता और हाथ से बुना हुआ या मशीन से बना होगा। यह कपास/ पॉलिएस्टर/ ऊन/ रेशमी खादी से बना होगा। बता दें कि तिरंगा फहराने के भी कुछ नियम हैं।

  • झंडे की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 का होना चाहिए। केसरिया रंग को नीचे की तरफ करके झंडा लगाया या फहराया नहीं जा सकता।
  • झंडे को कभी पानी में नहीं डुबोया जा सकता। किसी भी तरह फिजिकल डैमेज नहीं पहुंचा सकते। झंडे के किसी भाग को जलाने, नुकसान पहुंचाने के अलावा मौखिक या शाब्दिक तौर पर इसका अपमान करने पर तीन साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
  • झंडे का कमर्शियल इस्तेमाल नहीं कर सकते। किसी को सलामी देने के लिए झंडे को झुकाया नहीं जाएगा। अगर कोई शख्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसका वस्त्र बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद आर्म्ड फोर्सेज के जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे का अपमान माना जाएगा।
  • तिरंगे की यूनिफॉर्म बनाकर पहनना गलत है। तिरंगे को अंडरगार्मेंट्स, रुमाल या कुशन आदि बनाकर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
  • झंडे पर किसी तरह के अक्षर नहीं लिखे जाएंगे। राष्ट्रीय दिवसों के मौके पर झंडा फहराए जाने से पहले उसमें फूलों की पंखुड़ियां रखने में कोई आपत्ति नहीं है।
  • किसी कार्यक्रम में वक्ता की मेज को ढकने या मंच को सजाने में झंडे का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। गाड़ी, रेलगाड़ी या वायुयान की छत, बगल या पीछे के हिस्से को ढकने में यूज नहीं कर सकते।
  • किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या उससे ऊपर या उसके बराबर नहीं लगाया जा सकता।

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