जमीं का मिलन है आसमां से करने खुदा चल आया 103वां पाक-पवित्र अवतार दिहाड़ा (25 जनवरी) विशेष
मोस्ट वैल्कम या खुदा! मोस्ट वैल्कम या खुदा! तेरे खुश कदमों से यह जमीं, यह आसमां नूरो-नूर है। रूहें पाक दीदार से गद्गद् हैं। नूरे-पाक से कायनात असीम सरूर में है। हर दिशा में खुशनुमाई है। बेइन्तहा खुशगवारी है। सृष्टि के कण-कण में, हर जीव प्राणी में एक ला-जवाब रंगत छा गई है। तेरे आने का इन्तजार रूहों को शौदाई कर रहा था।
कोई बहुत समय से और कोई आज से शौदाई है। हमारी खुशनसीबी है जो हमें (रूहों को) आप जी के मुबारिक दीद हुए। हमारी खुशियों का अब पारावार नहीं रहा। अपने अजीम-तरीन खुदा-पाक को पाकर हम आहला दर्जे के हो गए हैं। अजीजा हस्ती को निहार-निहार कर हम भी निखर गए हैं। हमारा तन-मन खुदा परस्ती में डूब गया। ओ मेरे अजीमुशान शहनशाह! हमारी आरजुओं का आज मुकम्मल मुकां मिल गया है। हमारी रंगीन आरजुओं को अपने करम से प्रवान कर लिया है। नूरानी दीद की हसरतें गुलो-गुलजार हो गई हैं। रंगीन ख्वाहिशें ताब-ओ-खाश से आज लबालब हैं।
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हमारी शोख मुरादें बरकतों से भर गई हैं। तेरे पाक आगमन से रूहों का रोम-रोम पाकीजगी को पा गया है। खलकत में तेरे शबाब का नशा छा गया है। चारों ओर आज वसले खुदा का खुमार है, जनून है। ऐ खुदामंद, मेरे रहनुमा-शाह सतनाम जी दातार! तेरे जैसा प्रीतम रहबर दो जहां में नहीं है। हमारी खुशकिस्मती है कि खुदा रूप में हमें आपका मिलाप हुआ।
हमें दो जहां के सनम मिल गए हैं। अब हमारा वक्त-ए-मुबारिक सनमपरस्ती में समा गया है। दिल का कोना-कोना शोरे शगल में गुम है। वैराग्यमयी नजरें हुस्र-ए-अलमस्त में रमी हुई हैं। खुशमदगी की यह बेला नूरानी ताब में चूर है।
लम्हा-लम्हा पुरनूर है। फिजा भी नूरी लो से रौनकजदा हो गई है। हवाओं में भी तेरी आशिकी के मजमें लगे हैं। आर्जूमंद यह जमीं, यह आसमां नूर की फुहारों में खुश-ब-तर है। बंदा अपने खुदा की बंदगी में मशगूल है। हर जुबां उसकी सिफ्त में तरीन है। बस्ती-बस्ती में अजीमों जशन के अफसाने हैं। मुकद्दस 25 जनवरी की नूरानी बहारें हैं। आबोहयात के सुरमई चश्में बह रहे हैं। हे मेरी रुह के सौदागर! मेरे मौला! हमारी मुबारिकबाद कबूल फरमाओ जी। पाकचरणों में खालस सजदा प्रवान होवे। सद शुत्र मेरे खैरवाह! सदशुत्र पीर-ओ-मुर्शिद। आज 25 जनवरी पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का पावन अवतार दिवस है।
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पवित्र जीवन की एक झलक
परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज खुद करन-करावनहार, परम पिता परमात्मा स्वरूप धुरधाम से सृष्टि पर अवतरित हुए। आप जी के आदरणीय पिता जी का नाम पूजनीय पिता सरदार वरियाम सिंह जी और पूजनीय माता जी का नाम पूजनीय माता आस कौर जी था। आप जी गांव श्री जलालआणा साहिब तहसील कालांवाली जिला सरसा (हरियाणा) के रहने वाले थे। आप जी के दादा सरदार हीरा सिंह जी सिद्धू इलाके के जाने माने जैलदार साहिब थे। आप जी सिद्धू वंश से संबंध रखते थे। आप जी अपने पूजनीय माता-पिता जी की इकलौती संतान थे। पूजनीय माता-पिता जी ने आप जी का शुभ नाम सरदार हरबंस सिंह जी रखा था। पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने अपने अपार रहमो करम से आप जी को ‘सतनाम’ बना दिया और आप जी का शुभ नाम सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रख दिया।
आप जी के पूजनीय माता-पिता जी साधु-फकीरों की बहुत सेवा करते और परम पिता परमात्मा की भक्ति में लीन रहते। इस शहनशाही परिवार के पास दुनियावी पदार्थाें की कोई कमी नहीं थी, परन्तु अठारह वर्षाें से संतान प्राप्ति, इतने बड़े खानदान के वारिस की प्राप्ति की इच्छा पूजनीय माता-पिता जी को हर समय सताती रहती। एक बार उनका मिलाप परमात्मा के एक सच्चे फकीर से हुआ। वह जितने दिन भी श्री जलालआणा साहिब में रहा, भोजन-पानी पूजनीय माता-पिता के पास उनके घर में आकर ही किया करते थे। एक दिन उस फकीर बाबा ने पूजनीय माता पिता जी की सच्ची सेवा भावना से खुश होकर कहा कि भाई भक्तो! आप की सेवा से हम खुश हैं।
तुम्हारी सेवा परम पिता परमात्मा को मन्जूर हुई है। वह तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी करेगा। तुम्हारे घर कोई महापुरुष जन्म लेगा। इस तरह उस सच्चे फकीर बाबा की दुआ से मालिक स्वरूप पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 25 जनवरी 1919 को अवतार धारण किया। पूजनीय माता-पिता जी की खुशियों का कोई पारावार नहीं रहा। उनकी 18 वर्ष के लम्बे इन्तजार के बाद पुत्र रत्न के रूप में संतान प्राप्ति की प्रबल इच्छा पूरी हुई। पूरे गांव में थाल भर-भरकर (समय के अनुसार) बताशे, शक्कर बांटी गई। सारे इलाके में से जो भी कोई जरूरतमंद, गरीब दरवाजे पर आया, सब की झोलियां अनाज, गुड़ इत्यादि से भर दी गई। सारा वातावरण खुशी में झूम उठा था। शाही परिवार को चारों ओर से बधाईयां मिल रही थी। सच्चे दातार जी के शुभ आगमन पर वह फकीर भी लम्बी यात्रा करके पूजनीय माता-पिता जी को बधाई देने पहुंचा। उसने हार्दिक बधाई देते हुए कहा, भाई भक्तो! तुम्हारे घर खुद रब्बी जोत प्रक्ट हुई है।
इन्हें पूरे प्यार से रखना है। ये तुम्हारे पास ज्यादा समय नहीं रहेंगे, 40 साल के बाद उस मालिक के काम के लिए चले जाएंगे, जहां से, जिस उद्देश्य के लिए (सृष्टि तथा मानवता के उद्धार के कार्याें के लिए) ये आए हैं। आप जी के अति पूजनीय माता आस कौर जी बहुत दयालु तथा धार्मिक विचारों के धनी थे। वह एक बहुत सहृदय, मिलनसार, नम्र स्वभाव तथा मानवीय गुणों से सम्पन्न थे।
धन-धन पूजनीय माता-पिता का ऋणि है संसार जी।
जोत इलाही घर है आई लिया अवतार सतगुरु दातार जी।
जिनके हर कोई खुशियां मनावे लगे बख्शिशों के अम्बार जी
नूरी बचपन:-
बचपन से ही आप जी का अलौकिक स्वरूप इतना सुन्दर, मनमोहक था कि जो भी देखता बस देखता ही रह जाता। गांव का ही एक शख्स झींवर जो घर में पानी भरा करता था, एक बार आप जी पालने में लेटे हुए थे, वह पालने के पास खड़ा होकर एक टक आप जी को निहारने लगा। नजर हटाने को दिल ही नहीं करता था। इस तरह काफी देर से खड़े उस शख्स को पूजनीय माता जी ने देख लिया। माता जी ने एक काला टीका आप जी के बाल स्वरूप चेहरे पर लगा दिया कि मेरे लाल को किसी की नजर न लग जाए। तो उस भाई ने कहा कि माता जी, मैं किसी गलत भावना से नहीं निहार रहा था। आप जी के लाल के स्वरूप में से मुझे हमारे महापुरुषों के दर्शन हो रहे थे।
आप जी बचपन से ही खास हस्ती के रूप में जाने जाते थे। आप जी का बचपन मधुरता से लबरेज था। आप जी की मीठी-मीठी बातें दिलकशी का नजारा बन जाती। आप जी का व्यवहारिक ज्ञान अपने हमउम्र साथियों से हट कर कहीं अधिक प्रभावशाली था। आप जी का बचपन पूजनीय माता जी की पवित्र छत्र-छाया व नेक संस्कारों में ही बढ़ा-फूला था क्योंकि आप जी अभी छोटी आयु में ही थे कि आप जी के पिता जी इस फानी दुनिया से रुखसत हो गए थे। इसलिए आप जी का पालन-पोषण पूजनीय माता जी तथा आप जी के पूजनीय मामा सरदार वीर सिंह जी (मालिक के चरणों में ओड़ निभा गए सतब्रह्मचारी सेवादार) द्वारा किया गया था।
पूजनीय माता जी के नेक पवित्र संस्कारों का प्रभाव था कि आप जी का ध्यान दुनियादारी की बजाए परमार्थ तथा धर्मार्थ की तरफ अधिक था। बचपन से ही आप जी अपने दोस्तों, मित्रों, हमजोलियों, सहपाठियों तथा लाचार गरीबों के प्रति अति शुभ-चिंतक थे। आप जी की पढ़ाई-लिखाई मंडी कालांवाली के सरकारी स्कूल में ही पूरी हुई। आप जी अपने जरूरतमंद सहयोगियों की हर तरह से मदद करते थे। आप जी की ऐसी परोपकारी भावना से वह सहपाठी ही नहीं, बल्कि स्कूल का पूरा स्टाफ भी प्रभावित था।
पूजनीय माता जी के शुभ धार्मिक विचारों से आप जी का लगाव बचपन से ही गुरुओं, महापुरुषों की वाणी पढ़ने तथा सुनने की तरफ अधिक था। बचपन में ही जरूरतमंद परिवार की मदद करना, फसल चरते पशुओं, पक्षियों को न हटाना इत्यदि जैसी आप जी की अनेक परोपकारी कार्यों की उदाहरणें हैं। बड़े होने पर आप जी एक कुशल धर्म प्रचारक के रूप में भी जाने जाते थे। आप जी ने अपने गांव में श्री गुरुद्वारा साहिब बनाने में अहम भूमिका अदा की। गांव श्री जलालआणा साहिब के मौजिज शख्शियत होने के कारण हर कोई सार्वजनिक कार्य आप जी की राय-मशवरे से ही किया जाता था।
ईश्वर की खोज:-
आप जी शुरू से ही ईश्वर से मिलाप के लिए यत्नशील थे जो कि आप जी का मुख्य उद्देश्य था। आप जी साधु-महात्माओं से अक्सर चर्चा भी किया करते। सच्चे गुरु को मिलने की तड़प आप जी को हर समय लगी रहती। जहां भी किसी महात्मा के बारे आप जी को पता चलता, आप जी वहीं पहुंच जाते। परन्तु कहीं से भी कोई तसल्ली बख्श जवाब न मिलता, अंतर-हृदय की संतुष्टी न होती।
प्यारे मुर्शिद जी का मिलाप:-
आप जी की ईश्वर के प्रति सच्ची लग्न तथा अंदरूनी तड़प का ही नतीजा था कि आप जी की भेंट पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज से हुई। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा सरसा में पूजनीय बेपरवाह जी के नूरी दर्शन किए तथा सच्ची सत्संग सुनी। आप जी असीम सुकून से भर गए। नूर का नूर से ऐसा मिलन हुआ कि आप जी उन पर फिदा हो गए। शहनशाह मस्ताना जी के मिलाप से आप जी अंदर-बाहर से पूरी तरह संतुष्ट हो गए। किसी भी शंका-शुबा की कोई गुंजाइश शेष नहीं रही थी। आप जी उसी दिन से ही पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के हो गए।
नामदान:-
आप जी पूजनीय बेपरवाह जी के कई वर्षों तक सत्संग सुनते रहे। हालांकि कई बार आप जी ने नाम-शब्द लेने की भी कोशिश की, परन्तु पूजनीय सार्इं जी आप जी को हर बार यह कह कर नाम लेने वालों में से उठा देते कि ‘अभी आप को नाम लेने का हुक्म नहीं, जब समय आया, सार्इं सावण शाह जी के हुक्म से खुद बुला कर, आवाज देकर नाम देंगे। आप सत्संग करते रहो।’ 14 मार्च 1954 को घूकांवाली में पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने सत्संग के बाद आवाज लगाई, बुलाया कि ‘हरबंस सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) आप जी चलकर अंदर हमारे मूहडेÞ के पास बैठो।
आज रात आप को दाता सावण शाह जी के हुक्म से नाम की दात मिलेगी।’ मूहडेÞ के पास जगह न होने की वजह से आप जी पीछे ही नाम अभिलाषी और जीवों के पास बैठ गए। पूजनीय सार्इं जी जब अंदर आए तो आप जी को आवाज लगाई, आप जी को मूहड़े के पास बिठा कर वचन फरमाया कि ‘आज तुम्हें स्पैशल नाम देंगे।’ बेपरवाह जी ने वचन फरमाया कि ‘आप को इसलिए पास बिठा कर नाम देतें हैं कि आप से कोई काम लेना है। आप को जिंदाराम का लीडर बनाएंगे जो दुनिया को नाम जपाएगा।’
पवित्र गद्दी नशीनी:-
आप जी के रूप में पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज को अपना सच्चा वारिस मिल गया था। पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी की सख्त से सख्त परीक्षा ली। आप जी से अपने हवेली नुमा मकान को तुड़वाया तथा और भी कई सख्त परीक्षाएं ली। पूजनीय सार्इं जी की दया-दृष्टि में आप जी ने अपने मुर्शिद के हर हुक्म को खुशी-खुशी सत्वचन कहकर माना। पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को अपना उत्तराधिकारी बनाते हुए 28 फरवरी 1960 को डेरा सच्चा सौदा का वारिस बनाया। इस मुबारिक वक्त पर सरसा शहर में आप जी का जलसा निकाला और पूरे धूम-धाम से गुरुगद्दीनशीनी की पाक-पवित्र रस्म अदायगी मुकम्मल की।
इस शुभ अवसर पर पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी बारे साध-संगत को मुखातिब होते हुए फरमाया, ‘खण्डों-ब्रह्मण्डों के जिस सतनाम को दुनिया जपती-जपती मर गई, वो ताकत आज हमने जाहर कर दी है। ये (पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज) वो ही ताकत है जिसके सहारे सभी खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े है। दाता सावण शाह जी के हुक्म से हमने इन्हें अर्शों से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है। कोई इनके पीठ पीछे से भी दर्शन कर लेगा, मौज उसे भी नरकों में नहीं जाने देगी।’ इस तरह पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज 28 फरवरी 1960 के दिन आप जी को अपनी बेइन्तहा इलाही ताकत के रूप में प्रक्ट करके करीब दो महीने बाद अर्थात 18 अप्रैल 1960 को खुद ज्योति-जोत समा गए।
आप जी अपने मुर्शिद-ए-कामिल शाह मस्ताना जी महाराज की पावन हजूरी में उनके हुक्मानुसार डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर बतौर दूसरे पातशाह विराजमान हुए और दिन-रात रूहों के कल्याण के लिए जुट गए। आप जी ने पहला सत्संग 10 जून 1962 को गांव झुम्बा भाई का में किया और इस तरह जगह-जगह, गांव-गांव जाकर सत्संग करते रहे। परन्तु गद्दीनशीनी के तीन वर्ष बाद रूहों की प्रबल तड़प, जीवों की सच्ची पुकार को मंजूर करते हुए आप जी ने 18 अप्रैल 1963 से नाम शब्द देना शुरू किया। आप जी ने साध-संगत व समाज की भलाई के लिए अत्यंत यत्न किए। आप जी के बेइन्तहा यत्नों से लाखों रूहों का कल्याण हुआ।
आप जी ने 18 अपै्रल 1963 से 26 अगस्त 1990 तक 11 लाख से अधिक जीवों को नाम-शब्द देकर भवसागर से पार किया। आप जी ने 23 सितम्बर 1990 को पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह विराजमान करके डेरा सच्चा सौदा को महान गुरु की बख्शिश की। आप जी लगभग 15 महीने पूजनीय गुरु जी के साथ साध-संगत में मौजूद रहे। उपरान्त आप जी 13 दिसम्बर 1991 को कुल मालिक की अखण्ड ज्योति में ज्योति जोत समा गए।
डेरा सच्चा सौदा बना एक मिसाल:-
डेरा सच्चा सौदा रूपी वह नन्हा सा पौधा जो पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने लगाया था, पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने जिसे अपने 30-31 वर्ष के अनथक यत्नों से सींचा, सुंदर बाग सजाया, आज पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पवित्र रहनुमाई पूरे विश्व को अपनी सच्चाई, अपने इलाही व अलौकिकता रूपी अमृतमयी मीठे फल, ठंडी-मीठी छाया (अपना अद्वितीय प्यार) से खूब सराबोर कर रही है। डेरा सच्चा सौदा पूजनीय गुरु जी के मार्ग दर्शन में रूहानियत तथा मानवता का विश्व-प्रसिद्ध प्रतीक बन चुका है।
विश्व भर में छ: करोड़ से अधिक साध-संगत डेरा सच्चा सौदा की पवित्र शिक्षाओं पर चल रही है। डेरा सच्चा सौदा के मानवता भलाई के कार्याें की आज विश्व भर में धूम मची हुई है। साध-संगत डेरा सच्चा सौदा द्वारा चलाए 135 मानवता भलाई के कार्य दिन रात कर रही है।
पवित्र जनवरी का पूरा महीना डेरा सच्चा सौदा में भण्डारे की तरह चहल-पहल रहती है जो 25 जनवरी के शुभ अवतार दिवस के पावन भण्डारे पर और भी रौनक से लबरेज हो जाती है। खुशियों का मेला रूहों को अलौकिक प्यार से मस्त बना देता है। हर कोई नई उमंग, जवां तरंग में मदमस्त हुआ इसकी महक मे डूब जाता है। बेइन्तहा खुशियों, मौजों की यह सरस बेला मुबारिक हो। शुभ 25 जनवरी मुबारिक हो।