वास्तविक प्रसन्नता
इसमें संदेह नहीं कि आर्थिक समृद्धि व भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति से भी हमें ख़ुशी मिलती है लेकिन उसकी एक सीमा है। प्रसन्नता का उत्कर्ष तो जीवन प्रवाह के संघर्ष में है। यात्रा का आनंद गंतव्य तक पहुँचने में नहीं यात्रा के मार्ग की दुर्गमता व कठिनाइयों में है। यदि यात्रा के मार्ग में केवल सुख-सुविधाएँ बिछी हों तो गंतव्य अथवा लक्ष्य नीरस प्रतीत होगा।
आनंद बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियों में नहीं अपितु रोजÞमर्रा की छोटी-छोटी चीजÞों और घटनाओं में ज्यादा है। लोग प्राय: खुश होने के लिए भविष्य का इंतजार करते रहते हैं। जीवन में एकमात्र बड़ी ख़ुशी या आनंद के इंतजार में, जो एकदम अनिश्चित और असंभव है, असंख्य छोटी-छोटी ख़ुशियों को नजÞरअंदाज कर देना कहां की बुद्धिमानी है? आओ जीवन के हर पल में हर क्षण में खुशी खोजें और आनन्द का उत्सव मनाएं।
जब व्यक्ति प्रसन्न होता है तो वह नाचता है, गाता है, गुनगुनाता है, हँसता है, मुस्कुराता है, हाथ मिलाता है तथा इसी प्रकार की अन्य चेष्टाएँ या क्रि याएँ करता है। प्रसन्नता की अवस्था में व्यक्ति अपने प्रियजनों के लिए उपहार खरीदता है अथवा किसी जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता के लिए आगे आता है।
जब व्यक्ति किसी भी वजह से प्रसन्न होता है तो वह अपनी प्रसन्नता दूसरों पर प्रकट करना चाहता है, दूसरों से बाँटना चाहता है तथा दूसरों के लिए कुछ करना चाहता है ताकि वे भी प्रसन्नता का अनुभव कर सकें और इस प्रकार अपनी प्रसन्नता को चिरस्थायी बनाना चाहता है।
प्रसन्नता की अवस्था में व्यक्ति की मनोदशा में सकारात्मक परिवर्तन आता है। अब यदि व्यक्ति सामान्य अवस्था में अथवा विषम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उन क्रि याओं को दोहराता है जिन्हें वह प्रसन्नता की अवस्था में दोहराता है तो भी उसकी मनोदशा पर सकारात्मक प्रभाव ही पड़ेगा। उपरोक्त किसी भी क्रि या के करने या दोहराने से व्यक्ति को स्वाभाविक रूप से प्रसन्नता होगी ही और प्रसन्नता का अर्थ है दबाव से मुक्त तनावरहित तथा चिंतारहित मनोदशा। ऐसी अवस्था में शरीर में स्थित अंत:स्रावी ग्रंथियाँ उपयोगी हार्मोंस उत्सर्जित कर हमें रोगमुक्त तथा स्वस्थ बनाती हैं तथा स्वस्थ व्यक्ति की जीवनीशक्ति के स्तर में वृद्धि कर उसे निरंतर आरोग्य प्रदान करती हैं।
अत: उपरोक्त क्रि याओं को अपनी आदत में शामिल कर लें, इनकी कंडीशनिंग कर लें। जब भी अवसर मिले नाचें-गाएँ, गुनगुनाएँ, हँसें और मुस्कुराएँ। इन क्रि याओं को दोहराने के लिए अवसर तलाश करें और यदि अवसर न भी मिले तो यूँ ही जब जी चाहे, एकांत एवं फुर्सत के क्षणों में इन क्रि याओं को दोहराएँ। जीवन में विषम परिस्थितियाँ आने पर या असफलता की अवस्था में भी उसमें कुछ न कुछ ख़ुशी खोजने का प्रयास कर उसे सेलिब्रेट करना चाहिये। यही प्रयास पुन: सफलता की ओर अग्रसर करने में सहायक होगा।
प्रसन्न रहने या होने की वजह तलाश करें। प्रसन्नता के क्षणों को ध्यानपूर्वक देखें और उन क्षणों में स्वाभाविक रूप से जो क्रि याएँ होती हैं, उन्हीं क्रि याओं को और चेष्टाओं को सामान्य मन:स्थिति तथा विषम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दोहराएँ। यह थोड़ा कठिन हो सकता है असंभव नहीं। इससे आपके जीवन में सफलता से प्रसन्नता तथा प्रसन्नता से सफलता का स्थायी वृत्त निर्मित हो जाएगा। इस वृत्त को टूटने मत दीजिए। इसके अभाव में प्रतिभाशाली होते हुए भी हमें अपेक्षित सफलता तथा सफलताजन्य प्रसन्नता प्राप्त नहीं होगी। बस प्रसन्न रहने का प्रयास करते रहें, सफलता अपने आप लौट आएगी। और एक सफल व्यक्ति प्रसन्न न हो ये हो ही नहीं सकता।
– सीताराम गुप्ता