रूह-ए-सरताज ले लिया अवतार जी :15 अगस्त विशेष
महापुरुषों की पवित्र वाणी में दर्ज है कि परमपिता परमात्मा अपना हर कार्य अपने अवतार संत-महापुरुषों के रूप में करता है। ‘संतां हत्थ सौंपी पूंजी’। चाहे कोई माने या न माने परन्तु यह सौ फीसदी सच है और यह भी बिलकुल सच है कि ईश्वर को मिलने का रास्ता जिसने भी बताया, जिसने उसके भगतों को ईश्वर से मिलाया वो माता की कोख से पैदा हुए एक संत ही थे।
वो परम दयालु संत जिसने हमें धर्मोें का पता बताया, जिसने हमें धर्म मर्यादा अनुसार उसपे चलना सिखाया, जिसने इन्सान को भगवान से मिलाया, वो कोई और नहीं, वो संत ही थे। अलग-अलग धर्माें की भाषा में उन्हें गुरु, सतगुुरु, पीर-फकीर, मुर्शिद-ए-कामिल आदि कुछ भी कहें। वाणी में आता है, ‘ब्रहम बोले काया के ओहले।।
काया बिन ब्रहम क्या बोले’ तो यह कहा जा सकता है कि पूर्ण गुरु, सतगुरु परम पिता परमात्मा में अभेद होते हैं। वो संत महापुरुष, पूर्ण गुरु जिसने परम पिता परमात्मा, अल्लाह, राम, गॉड को अपने अंतर-हृदय में प्रकट कर लिया है, जब जब भी वो धरत पर आए वो एक इन्सान ही थे। नाम चाहे कोई भी रखा गया।
एक माता की कोख से जन्मे इन्सान रूप ही थे। इस पवित्र रूहानी कड़ी के अंतर्गत परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का विस्तार पूर्वक वर्णन डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में दर्ज है। आप जी डेरा सच्चा सौदा के तीसरे गुरु, तीसरी पातशाही डॉ. एमएसजी के नाम से डेरा सच्चा सौदा के करोड़ों श्रद्धालुओं के दिल-ओ-जिगर में बसते हैं।
Also Read :-
- 25 जनवरी को जन्म दाता लीना
- भागां भरी ये 25 जनवरी सतगुरु शाह सतनाम जी पधारे, 102वें पावन अवतार दिवस (25 जनवरी) पर विशेष
-
जमीं का मिलन है आसमां से करने खुदा चल आया 103वां पाक-पवित्र अवतार दिहाड़ा (25 जनवरी) विशेष
Table of Contents
पवित्र जीवन झलक:-
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां राजस्थान के जिला श्री गंगानगर के एक अति पवित्र गांव श्री गुरुसर मोडिया तहसील सूरतगढ़ के रहने वाले हैं। आप जी के पूज्य पिता नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी गांव के बहुत बड़े लैंडलॉर्ड, बहुत बड़ी जमीन जायदाद के मालिक और गांव के परम आदरणीय नम्बरदार थे।
धन्य-धन्य अति पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां जिनकी पवित्र कोख से पूज्य सतगुरु जी ने अवतार धारण किया और वो वर्ष 1967 के 15 अगस्त का अति पावन दिवस सुनहरी अक्षरों में इतिहास में अंकित है। इस दिन स्वयं परम पिता परमेश्वर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में बंदी छोड़ बन कर आए। दूसरे शब्दों में स्वयं परम पिता परमेश्वर ने मानवता व सृष्टि के उद्धार के लिए पूज्य गुरु जी के रूप में मानस-चोला धारण किया। पूज्य गुरु जी अपने पूज्य माता-पिता जी की इकलौती संतान हैं। आप जी की महानता को सिद्ध करती अनेकों दिलचस्प घटनाएं हैं और जो आप जी के जन्म के साथ जुड़ी हुई हैं।
रब्बी जोत आएगी-23 वर्ष तक रहेंगे:-
गांव के संत बाबा त्रिवैणी दास जी का गांव में बहुत ज्यादा मान-सम्मान था। पूज्य बापू जी का उनके साथ बहुत प्रेम व सहचार था। 18 वर्ष बीतने को थे, संतान प्राप्ति के लिए पूज्य बापू जी उदास होकर जब भी संत बाबा त्रिवैणी दास जी से बात करते तो संत-बाबा पूजनीय बापू जी की अंदर की इस पीड़ा को भली-भांति समझते थे, और उन्हें हौसला देते कि आप के घर कोई ऐसा-वैसा बच्चा नहीं स्वयं परमेश्वर अवतार लेकर आएगा। हौसला रखिए, दिल छोटा मत कीजिए। वो जरूर आएगा। और इस प्रकार ईश्वर की अपार दया-मेहर और संत-बाबा की दुआ से पूज्य गुरु जी ने पूज्य माता-पिता यहां लगभग 18 वर्ष के बाद इकलौती संतान के रुप में अवतार धारण किया।
आप जी सिद्धू वंश से संबंध रखते हैं। आप जी के अवतार धारण करने पर संत-बाबा ने पूजनीय बापू जी को ढेर सारी बधाईयां दी कि परमेश्वर ने स्वयं आप जी के यहां अवतार धारण किया है। उन्होंने यह भी बताया कि ये आपके यहां 23 बर्ष तक ही रहेंगे और उसके बाद अपने उद्देश्य, समाज व सृष्टि और मानवता के उद्धार के कार्य के लिए उनके पास चले जाएंगे जिन्होंने इन्हें आपका लाडला बना कर भेजा है। पूजनीय बापू जी अपने खानदान का वारिस पाकर फूले नहीं समा रहे थे। उन्होंने अपनी इस खुशी को सारे गांव-वासियों से सांझा किया। आप जी अपने पूज्य माता-पिता जी के बहुत ही लाडले हैं, विशेषकर पूज्य बापू जी तो आप जी को अपने से एक पल भी दूर नहीं करना चाहते थे।
रब्बी निशानियां:-
पूज्य गुरु जी के नूरी बचपन की अनेक वर्णनीय अद्भुत घटनाएं वर्णनीय हैं जो आपके रब्बी स्वरूप को चरितार्थ करती हैं। आयु मात्र चार वर्ष की थी। पूजनीय बापू जी आप जी को अपने कंधों पर बैठाकर खेत में जा रहे थे। अचानक आप जी ने वहीं पास ही एक खेत की तरफ उंगली का इशारा करके पूज्य बापू जी से कहा कि इधर अपने खलिहान थे। सुनकर पूज्य बापू जी भी एकदम आश्चर्य चकित थे। परिवार के सांझे खलिहान तो वाकई किसी समय वहीं हुआ करते थे लेकिन वो बहुुत अरसा पहले की बात है, यानि पूज्य गुरु जी के जन्म से भी कई वर्ष पहले। फिर तुरंत संत-बाबा त्रिवैणीदास जी के वचन भी याद आ गए कि ये आपके घर स्वयं भगवान स्वरूप आए हंै।
बहुत अच्छी फसल हुई:-
पूज्य बापू जी अपनी कुछ जमीन हर साल ठेके पर दिया करते थे। इस बार जब वही ठेकेदार अगले साल के लिए ठेके की बात कर रहे थे तो पूज्य हजूर पिता जी ने (उसी बाल्यावस्था में) अपने पूज्य बापू जी से उस जमीन पर खुद काश्त करने को कहा। इस पर उन ठेकेदार भाइयों ने पूज्य बापू जी से आग्रह किया, विनम्रता से कहा कि आप जमीन नहीं देंगे तो हम खाएंगे क्या? हम तो भूखे मर जाएंगे।
तो पूज्य गुरु जी ने अपनी दूसरी साइड वाली जमीन का ठेका उन्हें देने को पूज्य बापू जी से कहा और पूज्य बापू जी ने उन्हें कहा कि ‘काका ठीक कहता है।’ आप लोग उस जमीन को ठेके पर ले लीजिए। वास्तव में पूज्य बापू जी ने अपने अनुभव से अपने लाडले के अंदर ईश्वरीय झलक को महसूस कर लिया था और इसीलिए पूज्य बापू जी अपने लाडले की हर बात पर सहमति जताया करते थे। इस हकीकत का राज भी संत त्रिवेणी दास ने पूज्य बापू जी को शुरू में ही बता दिया था।
उस वर्ष पूज्य बापू जी ने उस खेत में चनों की बिजाई करवाई। कुदरत का भाणा, उस वर्ष बारिश भी अच्छी हुई और उस बरानी जमीन पर उस वर्ष चनों की भरपूर फसल हुई। ईश्वरीय कृपा को प्रत्यक्ष में निहार कर पूज्य बापू जी का विश्वास अपने लाडले में और भी दृढ़ हो गया।
डिग्गी का पानी कभी खत्म नहीं हुआ:-
नूरी बचपन की एक ऐतिहासिक घटना और है। यहां जो कुछ भी वर्णन किया जा रहा है, ये किसी किस्से या कहानियों का हिस्सा नहीं है, बल्कि सौ फीसदी वास्तविकता, सच्ची घटनाएं है और श्री गुरुसर मोडिया में हर समकालीन शख्स इन घटनाओं की ठोक कर हामी भरता है। उन्हीं दिनों गांव में बरसाती पानी को एक बड़े आकार की गहरी पक्की डिग्गी में संग्रहित करने की चर्चा चली। बुजुर्गाें का सुझाव सराहनीय था। सभी ने इस बात पर अपनी सहमति जताई।
अपने इस उद्देश्य की स्वीकृति लेने या यूं कह लीजिए कि संत बाबा के वचन करवाने के लिए गांव के मुखिया लोग संत बाबा से मिले, ताकि इतना बड़ा कार्य सफलतापूर्वक पूरा हो। गांव के लगभग समस्त लोगों की संत-बाबा में पूरी आस्था थी, क्योंकि गांव वालों में मान्यता थी कि संत-बाबा जो भी कहते या करते हैं सारे गांव के हित में ही होता है।
संत-बाबा गांव वालों के इस सांझे फैसले से बहुत खुश थे, उन्होंने डिग्गी की खुदाई करने का जहां शुभ मुहूर्त (तिथि, वार, समय) बताया और यह भी कहा कि डिग्गी की खुदाई के कार्य का शुभारम्भ नम्बरदार साहिब के बेटे (पूज्य गुरु जी) से पहला टक लगवा कर करेंगे। वैसे तो सबकी सौ प्रतिशत सहमति थी, सत्यवचन कहा, लेकिन हो सकता है दो-चार व्यक्तियों ने शायद अपने मत के अनुसार कहा हो कि नम्बरदार का काका तो अभी बहुत नन्हा बालक है, कसी, फावड़ा कैसे उठा पाएगा। लेकिन संत त्रिवेणी दास जी ने जोर देकर अपने वचनों को दृढ़ता से कहा कि पहला टक तो आपां नम्बरदार के बेटे से ही लगवाएंगे।
डिग्गी की खुदाई से लेकर सारा कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। गांव में खुशी का माहौल था। प्रचलित प्रथा अनुसार गांव में गांव वासियों द्वारा सांझे तौर पर मीठे चावल आदि का यज्ञ किया गया। मीठे चावल सारे गांववासियों को खिलाए गए। इसी के चलते संत-बाबा ने यह भी वचन किए इस डिग्गी का पानी कभी खत्म नहीं होगा, चाहे कितना भी उपयोग होता रहे, क्योंकि इसका मुहूर्त अपने एक ऐसे महापुरुष, रब्बी, शख्सियत से करवाया है, जिसकी महान हस्ती का पता समय आने पर सबको मालूम होगा। और वाकई, गांववासी बताते हैं कि डिग्गी का पानी कभी भी खत्म नहीं हुआ।
ये हैं पूज्य गुरु जी के नूरी बचपन की कुच्छेक सच्चाईयां। इसके अतिरिक्त और भी ऐसी अद्भुत व दिलचस्प घटनाएं वर्णनित हैं, जो आप श्री गुरुसर मोडिया के परम आदरणीय गांववासियों से रू-ब-रू होकर जान सकते हैं।
कर्मठता की मिसाल:-
अब पूज्य गुरु जी की कर्मठता पर भी थोड़ा नजरसानी कीजिए। यह हम पहले ही बता आए हैं कि पूज्य गुरु जी का जन्म बहुत ही बड़े लैंडलॉर्ड परिवार में हुआ है। आप जी ने 7-8 वर्ष की आयु में ही पूज्य बापू जी के इतने बडेÞ जमींदारा कार्य को पूर्ण तौर पर ही संभाल लिया था। राजस्थान के इस एरिया में नहरें आर्इं! आप जी ने अपने सख्त परिश्रम से जहां पहले करीब 20 एकड़ में ही पानी लगता था, अब पूरी की पूरी जमीन को नहरी पानी लगता कर दिया। ट्रैक्टर तो आप जी ने 7-8 वर्ष की आयु में ही चलना शुरू कर दिया था। चाहे ड्राइवर सीट पर बैठे आप जी के पांव बे्रक, कलच पर नहीं पहुंच पाते थे।
कलच, बे्रक खड़े होकर दबाना पड़ता था लेकिन आप जी ने अपनी जमीन पर जितनी सख्त मेहनत की इसकी वास्तविकता सभी गांववासी अच्छे से जानते हैं और यह बात भी सभी जानते हैं कि जब से पूज्य गुरु जी ने पूज्य बापू जी के कृषि-कार्याें को अपने हाथों में लिया, फसल भी दौगुनी-चौगुनी और आमदन भी दोगुनी-चौगुनी होती गई। भले ही पूज्य बापू जी के कितने ही सीरी, नौकर आदि भी थे लेकिन खेतीबाड़ी के मुख्य कार्य पूज्य गुरु जी अपने हाथ से ही करते। पूज्य गुरु जी की सख्त कर्मठता की मिसाल यहां डेरा सच्चा सौदा दरबार में भी देखी जा सकती है।
आप जी के सख्त परिश्रम व प्रेरणा से ही डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम जी धाम की जमीनों को रेत के टीले उठाकर समतल किया गया। फिर कौन सा फल, सब्जियां या फसलें हैं जो पूज्य गुरु जी ने न उगाई हों। सेब जैसे फल और अखरोट, बादाम जैसे मेवे, और अन्य भी हर तरह के फल भी पूज्य गुरु जी ने खुद की मेहनत से यहां की जमीनों से लिए हैं। एक समय में एक ही जगह पर तरह-तरह के फल और तेरह-तेरह किस्म की सब्जियों की पैदावार इतने ऊंचे तापमान के चलते भी लेना किसी अचम्भे से कम नहीं है।
रब्ब ने रब्बी मौज को दिया रब्बी प्यार :-
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपने पास बैठाकर आप को नाम-शब्द, गुरुमंत्र प्रदान किया, उस समय आप जी की आयु 5-6 वर्ष की होगी। पूजनीय परम पिता जी को आप जी ने बचपन में ही परम पिता परमात्मा के रूप में पाया, उसी तरह पूजनीय परम पिता जी ने नाम-शब्द, गुरुमंत्र, के रूप में अपना ईलाही स्वरूप प्रदान कर आप जी को अपने भावी जानाशीन के रूप में पाया। पक्का सहारना आदि गांवों में जहां पूजनीय परम पिता जी का सत्संग होता आप जी अपने ट्रैक्टर-ट्राली में नाम वाले जीवों को लेकर जाते। इस तरह आप जी ने बहुत लोगों को पूजनीय परम पिता जी से नाम-शब्द दिलवाया। बड़े हुए, गाड़ी ली तो अपनी गाड़ी में नए जीवों को लेकर जाते।
इस तरह आप जी ने नाम-शब्द के द्वारा बहुत लोगों का उद्दार करवाया। जैसे-जैसे आप जी उम्र के पड़ाव में आगे बढ़ते गए मानव व समाज हितैषी कार्यांे का दायरा भी विशाल से और विशाल होता गया। विशेषकर डेरा सच्चा सौदा में आने के बाद हर समय मानवता की सेवा की दिन-रात चर्चा होती। पूजनीय परम पिता जी ने 23 सितम्बर 1990 को आप जी को डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी पर बतौर तीसरे पातशाह विराजमान किया और इस असलियत को पूरी दुनिया पर जग-जाहिर किया कि हम तुझमें तुम मुझमें। किसी के अंदर कोई शंका-भ्रम भी नहीं रहने दिया जब ये वचन किए कि हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे।
बढ़ने लगा रूहानियत व मानवता का कारवां:-
पूज्य गुरु जी 23 सितम्बर 1990 को डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर विराजमान हुए और इसके साथ ही समाज व मानवता भलाई के कार्याें ने रफ्तार पकड़ ली। एक तरफ जहां मालिक परम पिता परमात्मा का रूहानी कारवां दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला गया।
साध-संंगत लाखों से बढ़ कर करोड़ों में पहुंच गई, वहीं दूसरी तरफ डेरा सच्चा सौदा विश्व स्तरीय मानवता भलाई कार्य करके बच्चे-बच्चे के मन में घर कर गया। पूज्य गुरु जी के पवित्र मार्ग-दर्शन में डेरा सच्चा सौदा द्वारा चलाए जा रहे 142 मानवता भलाई के कार्याें से आज पूरा विश्व वाकिफ है।
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के 55 वें पावन अवतार दिवस (15 अगस्त) की सारी साध-संगत को लख-लख बधाई हो जी।