Satguru does right what he does - Experiences of Satsangis

सतगुरु जो करता है ठीक ही करता है -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत

प्रेमी नरेश कुमार इन्सां ऐक्सीयन सिंचाई विभाग सरसा (हरियाणा) पुत्र श्री जीत राम इन्सां कल्याण नगर सरसा से परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार दया-मेहर का वर्णन करते हैं:-

यह बात सन् 1997 की है कि जब मेरा सी.ई.ई.टी. का रिजल्ट आया। यह टैस्ट तब इंजीयिरिंग में एडमिशन के लिए होता था। जिससे आॅल इण्डिया में गिने चुने इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन होता था। मैं गांव में पढ़ा-लिखा था। मैंने सन् 1990 में नाम लिया था। वैसे मेरे माता-पिता द्वारा बहुत पहले से नाम लेने की वजह से मैं बचपन से ही सतगुरु के चरणों से जुड़ा हुआ था। मैं बचपन से ही गांव की नाम चर्चा में पहले घड़ा, फिर ढोलक बजाना सीख गया। मैंने अपने माता-पिता के साथ अपने एरिया की कोई नामचर्चा नहीं छोड़ी। पहले परम पिता जी, फिर हजूर पिता जी का प्यार निरंतर हम पर बरसता रहा। मैंने 10+2 की पढ़ाई सफलता पूर्वक पूरी की।

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जब एडमिशन की डेट आई तो सुमिरन भी पहले से ज्यादा चलने लगा। क्योंकि मेरे कैरियर का सवाल था। मेरी माता भी घर पर सुमिरन करने लगी और मैं एन.आई.टी. कुरूक्षेत्र में एडमिशन के लिए लाइन में लग गया। मेरे साथ मेरे डैडी जी भी काफी चिंता में थे। उनका विश्वास मेरे पर नहीं, गुरु जी पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज और उनके स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां पर बहुत था। क्योंकि प्रवेश टैस्ट में मेरे अंक कुछ कम थे। मैं भी लाइन में लगा हुआ सुमिरन करता रहा। जितनी सीटें जिस कॉलेज में कम होती थी, टी.वी. स्क्रीन पर टेलिकॉस्ट हो रही थी। एक-एक सीट का रिजल्ट शो हो रहा था।

मैं एन.आई.टी. कुरूक्षेत्र की सिविल ब्रांच में एडमिशन लेना चाहता था। लेकिन जैसे ही मेरा नंबर आने वाला था, एन.आई.टी. कुरूक्षेत्र की सारी सीटें भर गई। यह टी.वी. पर टेलिकॉस्ट हो गया। मैं और मेरे डैडी ठण्डे से पड़ गए और पिता जी के वचन याद करने लगे कि सतगुरु जो करता है ठीक ही करता है। मैं लाइन से बाहर निकलने लगा तो मेरे डैडी को पिता जी ने अंदर से ख्याल दिया कि ऊपर स्टेज पर चढ़ कर हाजिरी लगानी चाहिए। कई बार लोग बाद में ये सीट छोड़कर कहीं और एडमिशन ले लेते हैं और वो सीट अगले कैण्डीडेट को मिल जाती है। मैंने डैडी की बात मान ली और स्टेज पर चढ़ गया। तो वहां ड्यूटी पर बैठे आदमी ने पूछा, जी! कहां एडमिशन लेना चाहते हो? उसने स्क्रीन पर प्राईवेट कॉलेजों की सीटें ही शो कर रखी थी।

जिस कॉलेज में मैं एडमिशन लेना चाहता था, उसकी सीटें तो पहले ही भर चुकी थी और टी.वी. स्क्रीन पर दिखा दी थी। मैंने उस आदमी से कहा कि मैं तो हाजिरी लगाने आया हूं। बाकी जहां मैं एडमिशन लेना चाहता हूं, वहां सीटस पहले ही फिल-अप हो गई हैं और वो सीटस भी उसी आदमी द्वारा शो की गई थी। वो मुझे कहने लगा कि आप कहां पर एडमिशन लेना चाहते हो? तो मैंने कहा कि मैं तो एन.आई.टी. कुरूक्षेत्र सिविल ब्रांच में एडमिशन लेना चाहता हूं। तो उसने कहा कि बस! इतनी बात है। अरे अभी एक सीट सिविल ब्रांच में पड़ी हुई है।

खुशी में एकदम मेरे मुंह से ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा निकला। मेरे डैडी ने सतगुरु का लाख-लाख शुक्र किया। हम एडमिशन के लिए पैसे भी नहीं लेकर गए थे क्योंकि एडमिशन इतना आसान नहीं था। पर हमें तो बस पिता जी का ही आसरा था। डैडी कहने लगे कि मैं पांच मिन्ट में पैसे लेकर आया, आप एडमिशन फारमिलटीज पूरी करें। मेरे आगे लाइन में 20-25 कैण्डीडेट थे और वो सभी भी यहां एडमिशन ले सकते थे। शायद वो यही सोचकर दूसरी जगह एडमिशन लेते रहे कि अब तो एन.आई.टी. सिविल ब्रांच में तो सीटें भर चुकी हैं। उनकी सोच तो पिता जी की वजह से थी क्योंकि पिता जी ने मुझे एडमिशन दिलाना था। पूजनीय हजूर पिता जी की कृपा से ही मुझे वहां दाखिला मिल पाया जहां मैं चाहता था, वरना असम्भव था।

यह तो वो ही हुआ जैसे कव्वाली में आता है:-

जेहड़ी सोचां उही मन्न लैंदा,
मैं किवें भुल्ल जावां पीर नूं।

मैं गुरु जी के अहसानों का बदला कैसे भी नहीं चुका सकता, बस धन्य धन्य ही कर सकता हूं। मैं आज जो कुछ भी हूं पूजनीय पिता जी, गुरु जी की कृपा से ही हूं। मेरी हजूर पिता जी के चरणों में यही अरदास है कि हमारे सारे परिवार को सेवा सुमिरन का बल बख्शो जी और ऐसे ही दया मेहर रहमत बनाए रखना जी।

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