सतगुरु जी की मेहर से बच गया सुरक्षित -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की दया-मेहर
प्रेमी पाला सिंह, गांव डसका, जिला संगरुर (पंजाब) से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-
वर्ष 1976 की 24 व 25 जुलाई को डेरा सच्चा सौदा सरसा में मासिक सत्संग था। मेरे बेटे केहर सिंह तथा अन्य पारिवारिक सदस्य सत्संग सुनने के लिए सरसा दरबार गए हुए थे। मैं खेत में बने कमरे में रहता था। 24 जुलाई दिन शनिवार को सारी रात बरसात होती रही। मैं हर रोज की तरह सुबह चार बजे उठकर मालिक सतगुरु के नाम का सुमिरन करने लग गया। कुछ समय बाद मुझे शहतीर के टूटने की आवाज सुनाई दी। मैंने देखा कि पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने अपनी लाठी से शहतीर को परे धकेल दिया है, जबकि इतना भारी वह लकड़ी का शहतीर जिसके सहारे कमरे की पूरी छत का भार था, ऐन मेरे ऊपर ही गिरना था। छत का मलबा मेरे पर गिर गया।
मैं जिस चारपाई पर बैठकर सुमिरन कर रहा था, उसकी दो बाहियां, तीन पावे और एक सेरवा टूट गया, परंतु मेरे सतगुरु ने मुझे जरा-सी भी चोट नहीं लगने दी। हालांकि मैं पूरी तरह से छत के मलबे में फंस गया था। उसके बाद हमारा ही एक बच्चा मेरे कमरे के पास आया। वह सारा सीन देखकर ऊंची-ऊंची रोता हुआ गांव की ओर दौड़ने लगा, तो मैंने ऊंचे से आवाज़ देकर उसको वापिस बुलाया और बताया कि मुझे कुछ नहीं हुआ है। मैं ठीक हूं। इस दौरान वहाँ आस-पास के खेतों के लोग इक्ट्ठे हो गए और उन्होंने मुझे मलबे से बाहर निकाला।
वे मुझे कहने लगे कि तू बच कैसे गया! हर कोई हैरान था कि छत गिर गई, चारपाई टूट गई, परंतु पाला सिंह को कुछ नहीं हुआ! जब मेरे लड़के सत्संग सुनकर वापिस घर आए तो मैंने उन्हें सारी बात बताई। मैंने कहा कि सतगुरु जी ने ही भाई तुम्हारी लाज रख ली है, नहीं तो लोगों ने कहना था कि आप तो सत्संगों में फिरते हैं और पीछे बुजुर्ग छत के नीचे आकर मर गया। मैंने अपने बच्चों को तागीद की कि मेरे बच्चो! अपने सतगुरु पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज का पल्ला कभी भी न छोड़ना, चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए। इतना बड़ा सतगुरु कहीं भी नहीं मिल सकता। वर्णनीय है कि यह करिश्मा उन्हीं दिनों में पूजनीय परमपिता सच्चे दाता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की पावन हजूरी में मौजूद सारी साध-संगत में भी पढ़ा गया था।
सतगुरु सच्चे दाता जी से प्रार्थना है कि हमारे परिवार पर अपनी अपार दया-मेहर हमेशा बनाए रखना जी कि हमारा सारा परिवार डेरा सच्चा सौदा में हमेशा जुड़ा रहे। मेरे बच्चों की सेवा का मानो यह फल है, जो मुझे सतगुरु-दाता जी ने इतने सारे मलबे में बिल्कुल सुरक्षित रखा और वह इतना भारी शहतीर जिसे सतगुरु जी ने एक तरफ फैंक दिया था। वरना तो मेरा चकनाचूर हो जाना था। मैं सतगुरु पिता के उपकार का कभी भी देन नहीं दे सकता जी।

































































