दुपट्टे कैसे-कैसे
दुपट्टे की खूबसूरती और उपयोगिता के कारण पारंपरिक दुपट्टे आधुनिकीकरण के दौर में आज भी बेहद लोकप्रिय और चलन में हैं। इनकी खासियत यह है कि पारंपरिक परिधान के साथ ही नहीं, बल्कि वेस्टर्न ड्रेसेज जैसे जींस, केपरी, लॉग स्कर्ट के साथ भी ये खूब चल रहे हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फैशन जगत में ये अपनी खास पहचान बना चुके हैं।
दुपट्टों (Dupatta) का एक बदला रूप छोटे स्कार्फ के रूप में सामने आया है। इन्हें पारंपरिक व आधुनिक दोनों ही तरह की पोशाकों के साथ पहना जा रहा है। युनीसेक्स के जमाने में इसे ओढ़ने में लड़के भी पीछे नहीं है। अपनी बार्डरोब कलेक्शन में वे इसे शामिल करते हैं। जींस, शेरवानी, कुर्ता के साथ तरह-तरह के डिजाइनर स्टॉल सजीले युवकों की पहली पसंद बन चुके हैं।
यदि दुपट्टों का ओरिजन देखें तो पहले ये साड़ीनुमा अच्छे खासे बड़े हुआ करते थे।
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एक लंबे चौड़े टुकड़े की तरह ये शरीर के अग्र भाग को ढंकने के लिए ओढ़े जाते थे। ओढ़े जाने के कारण ही इन्हें ओढ?ी नाम दिया गया। बाद में इन्हें चुनरिया या चुन्नी भी कहा जाने लगा। देश के अलग-अलग प्रांतों में इन्हें विभिन्न तरीकों से ओढ़ा जाता रहा है। एशियाई संस्कृतियों में ये लंबे समय से हैडस्कार्फ के रूप में प्रचलित रहा है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में ये दुपट्टे के रुप में खासे लोकप्रिय हैं बल्कि उनका खास पहनावा ही दुपट्टे के बगैर अधूरे हैं। बांग्लादेश में इन्हें ओमा कहा जाता है।
दुपट्टों के फैशन में तेजी से बदलाव आता है। कभी बड़े भारी-भरकम दुपट्टों को बहार देखने को मिलती है तो कभी बारीक शिफोन, जॉर्जेट आदि के लाइट वेट दुपट्टे से ही फैशन बाजार सजा होता है।
अगर सुविधा की बात की जाए तो नथिंग लाइक छोटे दुपट्टे। जहां इन्हें कैरी करना आसान होता है इन्हें कई तरह से स्टाइलिश बनाकर पहना जा सकता है। गले के चारों ओर मफलर की तरह लपेट लेने से ये खास स्टाइलिश लुक देता है। इधर-उधर फैलकर अटकने, स्कूटर के पहियों या कार के दरवाजे में फंसने का खतरा भी नहीं रहता।
यह कहना गलत न होगा कि दुपट्टा दक्षिण एशियाई पोशाक का एक खूबसूरत हिस्सा है। यह नम्रता और डेकोरम के साथ ही सम्मान का चिन्ह है। पारंपरिक रूप में तो यह वास्तव में ही नारी की लज्जा का आभूषण रहा है। दुपट्टे के साथ ही आज फ्युजन के जमाने में ये स्कार्फ और स्टॉल के रूप में सामने आया है। स्कार्फ का प्रयोग कॉलेज स्टूडेंट शौक के साथ धूप हवा ठंड पोल्युशन से बचाव के मद्देनजर रख भी कर रही है। अब तो यह उनका फैशन स्टेटमेंट बन गया है। सच पूछा जाए तो आधुनिक फैशन की दौड़ में दुपट्टा अपने इंद्रधनुषी रंगों से पूरा रंग जमाए है। ये कभी भी आउटडेटेड होगा ऐसा बिल्कुल नहीं लगता है। नारी के नारीत्व का प्रतीक जो है यह। यह अपने पूरे ग्रेस से नारी की सैक्स अपील में इजाफा करता उसके मुख्य गुण शर्मोहया को हाइलाईट जो करता है।
दुपट्टों की डिमांड देखते हुए इसका अच्छा-खासा मार्केट है। इनमें बहुत-सी वैरायटी देखने को मिलती है। हर प्रांत की अपनी खासियत होती है।
- पंजाब के फुलकारी कढ़ाई के बेहद खूबसूरत दुपट्टे।
- हिमाचल प्रदेश में स्कार्फ धातु के नाम से जाने जाते हैं।
- वेस्टबंगाल में बालूचरी और कांथा दुपट्टे
- उत्तर प्रदेश के बनारसी और जरी के दुपट्टे
- गुजरात में बांधनी और ब्लॉक प्रिंट की ओढी
- राजस्थान की टाई एंडडाई और लहरिया कलरफुल चुनरी
- साउथ ईस्ट तट के इलाकों में कलम से बनाया गया कलमकारी प्रिंट
- उड़ीसा के खास टसरसिल्क के बार्डर वाले दुपट्टे
- मध्यप्रदेश में चंदेरी और महेश्वर के माहेश्वरी दुपट्टे
- आंध्र के मंगलगिरी दुपट्टे