Son! Nothing happened to the daughter don't worry... - Experiences of Satsangis -sachi shiksha hindi

बेटा! कुछ नहीं हुआ बेटी को, फिक्र न करो… -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत

प्रेमी राजू सिंह इन्सां सेवादार पण्डाल समिति पुत्र स. गुरदेव सिंह गांव धालीवाल वास जखेपल जिला संगरूर से पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपनी बेटी पर हुई अपार रहमत का वर्णन करता है:-

मैं करीब 35 वर्षाें से डेरा सच्चा सौदा से जुड़ा हुआ हूं। डेरा सच्चा सौदा से जुड़े होने के कारण प्यारे सतगुरु की हमेशा ही हमारे परिवार पर रहमत रही है। पूज्य गुरु जी ने मुझे अनेक मुसीबतों में से बचाया है तथा अनेक करिश्में दिखाए हैं। उनमें से एक करिश्मे का वर्णन कर रहा हूं:-

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अप्रैल 2002 की बात है। मैं रोजाना की तरह काम पर गया हुआ था। मेरे दो बेटे उम्र 12 साल, 10 साल तथा बेटी उम्र 7 साल आंगन में खेल रहे थे। खेल के दौरान मेरे बेटे की उंगली बेटी की आंख में लग गई जिससे आंख का डेला घूम गया अर्थात् काला हिस्सा पीछे चला गया। बेटी को उस आंख से दिखना बंद हो गया। पत्नी घबरा गई। जब मैं घर पहुंचा तो मुझे भी यह सब देखकर चिंता हो गई कि अब क्या होगा। मैं बेटी को लेकर गांव से करीब 5 किलोमीटर दूर चीमा मण्डी में डाक्टर से उसकी आंख दिखाने के लिए पहुंच गया। डाक्टर ने चैक-अप करके कहा कि आॅपरेशन करवाना पड़ेगा, नहीं तो आंख ठीक नहीं होगी। आॅपरेशन का खर्चा हजारों रूपयों में आएगा।

उस समय मेरे पास इतने रूपये नहीं थे कि मैं बेटी की आंख का आॅपरेशन करवा सकता। मैं बेटी को लेकर वापिस घर आ गया। पत्नी द्वारा पूछने पर मैंने कहा कि मालिक के नाम का सुमिरन करके दवाई देंगे, धीरे-धीरे बेटी ठीक हो जाएगी। रात को खाना खाने के बाद मैं सोने के लिए लेट गया, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैं सोचने लगा कि मालिक (परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) यह क्या दु:ख लग गया। हालांकि मुझे सुमिरन की लगन तो पहले से ही थी। मैं अकसर समय निकाल कर सुमिरन करता रहता था।

उस रात मैं सुमिरन करने के लिए बैठ गया तो कुल मालिक (हजूर पिता जी) के आगे अरदास, विनती की कि हे मेरे मुर्शिद, मेरी बेटी पर रहमत करो। सुमिरन करते-करते आधी रात गुजर गई, इसी दरमियान मुझे नींद आ गई। जब दिन चढ़ा तो मैंने उठकर अपनी बेटी को देखा, उसे चाय पिलाई। फिर मैंने अपना मुंह बेटी सुखविंद्र कौर इन्सां की खराब आंख पर रखकर एक दम सांस अंदर को खींच लिया (जैसे अपने कभी कभी पानी खींचने के लिए या ड्रम में से तेल निकालने के लिए पाईप से सांस अन्दर खींचते हैं)। मैंने तीन-चार बार जोर से इस तरह किया तो देखते ही देखते आंख बिल्कुल ठीक हो गई, जिस तरह कि पहले थी। मेरी पत्नी यह देखकर आश्चर्य चकित रह गई तथा खुशी में मुझसे पूछने लगी कि जी! ऐसे कैसे किया आपने! तो मैने अपने परिवार में बताया कि मेरे सुमिरन करने के बाद जब मुझे नींद आ गई तो स्वपन में पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां आए।

जैसे जैसे मैंने किया है, यह सब कुछ मुझे पूज्य हजूर पिता जी ने प्रैक्टिकली कर के दिखाया तथा वचन किए, ‘बेटा! कुछ नहीं हुआ बेटी को, उसकी आंख बिल्कुल ठीक है, फिक्र न करो।’ कुछ दिनों के उपरान्त मैं फिर चीमा में बेटी की आंख का चैकअप करवाने गया तो वही डाक्टर कहने लगा कि यह लड़की वो नहीं है। इसकी आंख तो बिल्कुल सही है। डॉक्टर की बात सुनकर मुझे हंसी आ गई तथा मैंने अंदर ही अंदर मालिक सतगुरु का लाख-लाख शुक्राना किया, जिन्होंने मेरी बेटी की आंख ज्यों की त्यों लौटा दी। मैं साध-संगत को बताना चाहता हूं कि अपना गुरु बड़ा डाहढा (महान)है, जिसकी रहमत व दया मेहर का जिक्र बोलकर या लफ्जों में नहीं किया जा सकता।

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