अपनी खुशी स्वयं ढूंढनी पड़ती है : ‘खुशी’ का नाम सुनते ही बुझे हुए बेजान चेहरों पर रौनक दिखाई देने लगती है। खुशी कौन नहीं चाहता। घर में खुशी बनाए रखने के लिए हर व्यक्ति मेहनत करता है। घर-परिवार मानव समाज का वह अंग है जहां व्यक्ति का जीवन शुरू होता है और समय के साथ बीत जाता है। कोई भी व्यक्ति कितना भी परेशान और व्यस्त क्यों न हो, उसे अपने घर आकर ही शांति का अनुभव होता है।

किसी परिवार में सुख-शांति तभी तक रहती है जब उस परिवार में बड़ों का आदर होता हो। साथ ही साथ अपनापन, प्यार, हंसी-खुशी तथा सब का दु:ख आपस में बांट लेने की भावना हो। जहां पर कहकहों की कमी न हो, वही घर आदर्श माना जाता है लेकिन सब घरों में ऐसा आदर्श जीवन देखने को नहीं मिलता।

वर्तमान व्यस्त जिंदगी में कुछ घर ऐसे भी हैं जहां लोग सवेरे उठते हैं, नाश्ता करते हैं और काम पर निकल जाते हैं। शाम को जैसे-तैसे घर पहुंच कर रात का खाना खाने के बाद अपना बाकी सुबह तक का समय बंद कमरे में निकाल देते हैं। ऐसे घर होटलों की तरह हो गए हैं, जहां पर लोग सिर्फ ठहरने आते हैं।

इन घरों में हमेशा मनहूस माहौल छाया रहता है जिससे किसी अपरिचित को घुटन महसूस होती है। बच्चे सहमे-सहमे से, अपने-आप में खोये से रहते हैं। वे धीरे-धीरे कुंठाग्रस्त (ढीठ) हो जाते हैं। यही कुंठा व अकेलापन उन्हें जिंदगी भर भोगना पड़ता है। ऐसे परिवारों के बच्चे कई बार गलत राह पकड़ लेते हैं। वे घर के ऐसे माहौल से बचने के लिए घर से बाहर जाते हैं और बुरी संगत में फंस जाते हैं।

कुछ बच्चों के मां-बाप दोनों ही नौकरीपेशा होते हैं। वे अपने काम में काफी व्यस्त रहते हैं। सवेरे उठे, तैयार हुए और निकल गए। शाम को थके हारे घर वापिस आये, मशीन की तरह खाने-पीने का काम निबटाया और सो गए! ऐसा ही लगभग सभी नौकरी-पेशा लोगों के साथ होता है।

पूरा हफ्ता इस मशीनी दिनचर्या में कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। रविवार को भी काफी काम निबटाते रहते हैं। इस व्यस्तता भरी जिंदगी में वे अपने बच्चों के प्रति पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते।

वैसे उन्हें अपनी ‘आया’ और ‘ट्यूटर’ पर पूरा विश्वास होता है,

अत: बच्चों के लिए ज्यादा वक्त निकालने की उन्हें कभी जरूरत ही नहीं महसूस होती। इस तरह उनके बच्चों का बचपन ‘आया’ के साथ बीत जाता है।

लापरवाह माता-पिता की वजह से कॉलेज में जाकर बच्चे कई बार गलत संगत में पड़ जाते हैं। वे नशीले पदार्थों का सेवन करने लगते हैं। मां-बाप को कुछ पता नहीं होता कि उनका बच्चा क्या करता है, कहां जाता है। उनकी आंखें तब खुलती हैं जब वे देखते हैं कि उनका बच्चा घर में मदहोश पड़ा है। या जब आस-पड़ोस में दबी-दबी जुबान से कटाक्ष भरी चर्चा होने लगती हैं।

अब वे दिन-रात उसकी चिंता में डूब जाते हैं और बच्चे का इलाज कराते रहते हैं। इस प्रकार मां-बाप की लापरवाही और घर के अकेलेपन के मनहूस माहौल में बच्चे की जिंदगी खराब हो जाती है। अगर बच्चों पर पहले से ध्यान दिया जाए तो न तो घर से बाहर जाकर बिगड़ेंगे और न ही बुरी संगत में पड़कर अपना भविष्य चौपट करेंगे।

ऐसी परेशानियों से बचने के लिए घर का वातावरण खुशगवार होना जरूरी है। ऐसा सुखद वातावरण जिससे घर में प्रसन्नता छाई रहे और मन-मस्तिष्क स्वस्थ रूप से विकसित हो।

यदि आप चाहती हैं कि आपका घर इस घुटनपूर्ण जिंदगी से आजाद रहे और घर में खुशहाली छाई रहे तो अपने घर में खुशी के लिए

निम्न फार्मूले अपनाएं:-

  • घर तथा बाहर के कार्य हो सके तो आपस में मिलकर करें। खुशी की बात को परिवार के साथ मिलकर बांटें।
  • संयुक्त परिवार प्रक्रि या को अपनाएं। जहां भी घूमने जाएं, अपने परिवार को साथ लेकर जाएं। यह नहीं कि सास-ससुर, मां-बाप, भाई-बहन को छोड़कर अपने बच्चों के साथ चले जाएं।
  • बच्चों को उपेक्षित न करें। बच्चों की जरूरतों का पूरा ध्यान रखें। उनकी सही गलत मांगों के बारे में उन्हें बताएं। अपने बचपन को याद करें और उनके साथ दोस्त जैसे व्यवहार करें।
  • जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ जैसी तिथियों को जुबानी याद रखिए और उन्हें सरप्राइज देना न भूलें। पार्टी, पिकनिक जैसे प्रोग्राम बनाएं जिससे खुशी दुगुनी हो जाएगी।
  • शाम का खाना हमेशा एक-साथ बैठ कर खायें और इस बहाने अपनी प्राब्लम सबके सामने रखें, प्राब्लम का हल जरूर निकलेगा।
  • अकेले बैठकर उल्टे-सीधे विचारों को मन में न आने दें। परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर सांप-सीढ़ी, शतरंज जैसे खेल, खेल सकते हैं। इसी बहाने चाय-नाश्ता भी साथ करें।
  • सबकी पसंद का ख्याल रखें। खरीदारी के लिए सब लोग साथ जाएं। हां, इस दौरान गोलगप्पे, आईसक्रीम इत्यादि खाना न भूलें।
  • वेलेण्टाइन डे जैसे त्यौहारों पर परिवार के सदस्यों को गिफ्ट देना न भूलें।
  • कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेते वक्त बच्चों, बड़ों सभी की राय जरूर लें, भले ही सलाह छोटी हो या बड़ी।
  • अगर परिवार में कोई सदस्य चिड़चिड़े स्वभाव का है तो उसे डांटें या झिड़कें नहीं, उसे प्यार से समझायें। स्नेह के रूप में टॉफी-चाकलेट भी दे सकते हैं।
  • अतीत की बातों को बिल्कुल न दोहरायें। हमेशा वर्तमान को सुंदर बनाएं, भविष्य सुंदर दिखेगा।
  • सप्ताह में रविवार के दिन स्पेशल रेसिपी बनाकर परिवार के सभी सदस्यों को जरूर खिलायें।
  • परिवार में किसी भी सदस्य के बीमार होने पर उसकी हर प्रकार से सेवा करें जब तक वह पूर्ण रूप से स्वस्थ न हो जाएं।

मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए प्रात: काल परिवार के सदस्यों के साथ ‘प्राणायाम’ जरूर करें।
– सुरेश कुमार सैनी

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