Seven days barefoot camp fence

सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम

प्रेमी कबीर गांव महमदपुर रोही जिला फतेहाबाद से शहनशाह मस्ताना जी महाराज के एक अनूठे करश्मिे का वर्णन इस प्रकार करता है:-

कार्तिक 1955 की बात है। श्री चन्नण सिंह पूर्व सरपंच गांव बीर बडालवा जिला करनाल से जो कि मेरा बहनोई था, खेती करने के लिए गांव महमदपुर रोही में दो साल से रह रहा था। उसकी दस एकड़ जमीन महमदपुर रोही में थी। उस समय डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम की चारदिवारी बनी नहीं थी। बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के हुक्म से डेरे के चारों तरफ कांटेदार झाड़ियों की बाड़ लगाई जा रही थी।

मेरे बहनोई चन्नण सिंह के खेत में

बहुत-सी कांटेदार झाड़ियां थीं जिनको काट-काट कर खेत में ही जलाने के लिए ढेरियां लगाई हुई थी। उसने खेत को साफ करके जमीन में बुआई करनी थी। मैं डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम महमदपुर रोही के दो सेवादारों को साथ लेकर चन्नण सिंह के खेत में से कांटेदार झाड़ियों की ढेरियों को दो बैल गाड़ियों में भर कर डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम में ले आया और डेरे में बाड़ लगा दी। मैंने सोचा कि मेरा रिश्तेदार है, दूसरा उसने तो आग ही लगानी है इसलिए मैं उससे बगैर पूछे ही वह कांटेदार झाडियाँ डेरे में ले आया।

चन्नण सिंह प्रेमियों से बहुत ही ईर्ष्या किया करता था। वह दूसरे दिन एक बोतल शराब की पीकर डेरे की बाड़ उखाड़ने लगा। मैंने उसे रोका कि तू ऐसा न कर, तूने तो इसे आग में ही जलाना था। वह कहने लगा कि मैं तो इन्हें जलाऊंगा, पर डेरे में इनकी बाड़ नहीं लगने दूँगा। इतने में वहां पर बहुत सारे प्रेमी और आ गए। सभी ने कहा तूने तो जलानी ही हैं, तू बाड़ न उखाड़। पर वह नहीं माना। उसने सारी बाड़ जो कुछ देर पहले लगाई थी, उखाड़ कर झाड़ियां जलाने के लिए डेरे के बाहर की तरफ रख ली। प्रेमी उसे कहने लगे कि अब रात हो गई है, अब रात के समय तू इसे आग न लगा, सुबह लगा लेना। वह इस बात पर सहमत हो गया कि वह सुबह आग लगाएगा। सभी लोग अपने-अपने घरों को चले गए।

उस रात चन्नण सिंह एक ऊँची खाट पर सोया हुआ था। उसने खाट के पावों के नीचे र्इंटें लगा कर उसे ऊँचा किया हुआ था। आधी रात का समय था। उसे शहनशाह मस्ताना जी महाराज के नूरी स्वरूप में दर्शन हुए। शहनशाह जी के हाथ में लाठी थी। शहनशाह जी ने उसे लाठियां मारनी शुरू कर दीं। चन्नण सिंह जोर-जोर से चिल्ला रहा था और शोर मचा रहा था कि ‘सच्चे सौदे वाले बाबा जी मुझे पीट रहे हैं, मुझे छुड़ाओ।’ शहनशाह जी ने उसे लाठियां मार-मार कर खाट से नीचे गिरा दिया। अब चन्नण सिंह सर्व-सामर्थ सतगुरु जी से माफी मांग रहा था और कह रहा था

कि ‘बाबा जी! मुझे न मारो, मैं अभी बाड़ लगा दूँगा।’ शहनशाह जी ने उसे इस शर्त पर छोड़ दिया कि तूने सात दिन नंगे पांव डेरे की बाड़ करनी है।

चन्नण सिंह उठा और उसी रात को राम हलवाई से तेरह किलो मिठाई लेकर डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम में पहुंचा। उस समय 20-25 प्रेमी वहां अमरपुरा धाम में रहा करते थे। मैं भी डेरे में ही था। सबसे पहले उसने मेरे को आवाज लगाई। पहले उसकी आवाज भारी थी फिर पतली हो गई। उसने हम से माफी मांगी और सारी बात बताई। वह डर के कारण अभी भी कांप रहा था। उसने हम सभी को मिठाई खिलाई और कहा कि मैं नंगे पांव डेरे की बाड़ खुद लगाऊंगा और नाम भी लूंगा। सतगुरु जी के वचनानुसार उसने नंगे पांव सात दिन डेरे की बाड़ लगाई।

सात दिन बाद राजस्थान में नौहर के पास किकरांवाली गांव में शहनशाह मस्ताना जी महाराज का सत्संग था। हम चन्नण सिंह को लेकर वहां पहुंच गए। चन्नण सिंह ने दयालु सतगुरु जी से माफी मांगते हुए सारी बात बताई। दयालु शहनशाह जी ने चन्नण सिंह से सारी बात साध-संगत के सामने स्पीकर में बुलवाई। उसी दिन चन्नण सिंह ने शहनशाह जी से नाम-शब्द ले लिया।

उसके बाद प्रेमी चन्नण सिंह अपने गांव बीर बडालवा जिला करनाल से अपने साथ ढोल वाला व दो सौ आदमी लेकर डेरा सच्चा सौदा सरसा में आया। वहां सभी आदमी शहनशाह मस्ताना जी की हजूरी में बहुत नाचे और सब नाम ले गए। दयालु सतगुरु जी ने सब के गले में चार-चार रुपए की माला डाली और दो सौ रुपया ईनाम दिया और वचन फरमाए, ‘इन रूपयों की मिठाई लेकर गांव में लोगों को खिलाना।’

सतगुरु बड़ा दीन-दयाल है! वह बड़े-बड़े पापियों को भी पल में तार लेता है। सच्चा सौदा दर है माफी का, जो झुक जाता वह पा लेता है, सब भ्रम भुलेखे मिटा लेता है।

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