आज का युग भले ही पाश्चात्य सभ्यता को अपनाता जा रहा है परन्तु फिर भी कुछ ऐसे रीति-रिवाज हैं जो सदियों तक ज्यों का त्यों बरकरार रहेंगे। उन्हीं में से एक है विशिष्ट परिधान पहनने की प्रथा जो अभी तक यथावत है जैसे-विशिष्ट त्योहार, पूजन, दीवाली, ईद, लोहड़ी, पोंगल आदि सहित शादी विवाह आदि खुशी के फक्शनों में जरीयुक्त लंहगा, चुन्नी, साड़ी, सलवार कमीज आदि का पहनना, यह बदस्तूर जारी है।
अभी भी लगभग हर धर्म या सम्प्रदाय में विवाह के अवसर पर अपनी जातिगत विशेषताओं वाली जरी की पोशाकें पहने महिलाओं के समूह दिखाई दे जाते हैं। इस महंगाई के युग में इनकी कीमत सुरसा के मुंह की भांति बढ़ती ही जा रही है, इसलिए जरी की पोशाकें एक बार ही लोग खरीद पाते हैं लेकिन यदि इन्हें संभाल कर रखा जाए तो इन्हें लंबे समय तक पहना जा सकता है।
अब बात यह आती है कि फैंसी व भारी कामदार वस्त्रों को हिफाजत से किस प्रकार रखा जाए कि उनकी आयु चौगुनी हो? इसी से संबंधित कुछ बातों की जानकारियाँ यहाँ दी जा रही हैं।
- आप भारी काम का फैंसी कपड़ा जब भी खरीदने जाएं, हमेशा दिन में ही जाएं तथा हमेशा शोरूम के बाहर लाकर उस कपड़े का रंग, चमक देखकर ही खरीदें। रात को अथवा शो रूम में ज्यादा तेज लाइटों के प्रकाश में कपड़े के रंग व चमक का सही-सही पता नहीं चल पाता।
- जब भी भारी जरी के कपड़े खरीदें, उनके अस्तर के लिए मैचिंग अच्छा कपड़ा भी खरीदें। कई बार अस्तर हल्के कपड़े का होने पर शीघ्र ही फट जाता है। इसी प्रकार जरी की या फैंसी साड़ी खरीदते समय ही मैचिंग फाल, पेटीकोट व ब्लाउज भी खरीद लेना चाहिए।
- जरी के कपड़े जब भी पहनने हों, हमेशा एक दिन पहले निकालकर हैंगर पर टांगकर अलमारी में रख लें। जब साड़ी पहननी हो तो पेटीकोट, ब्लाउज भी निकाल लें। अगर सलवार-कमीज पहननी हो तो चुन्नी निकाल कर रख लें।
- भारी साड़ियों को पहनने से पूर्व फाल अवश्य लगा लें। फाल को धोकर तथा प्रेस (आयरन) करके उपयुक्त, मजबूत व रंग न छोड़ने वाले धागे से ही लगाएं।
- जब आपको महंगे व लंबे समय तक रखने हेतु वस्त्र खरीदने हों तो एक ही दुकान पर जाकर मुंहमांगा दाम न देकर कम से कम 2-3 दुकानों पर घूमकर कपड़े के लेटेस्ट डिजाइन, मूल्य, किस्म, कौन-सा कपड़ा ज्यादा प्रचलन में है, आदि की जानकारी हासिल कर विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें। हो सकता है, पहली दुकान पर जाकर जो कपड़ा आपने पसंद का खरीदा, वह पुराने फैशन का या आउटडेटेड हो या फिर उस दुकानदार ने कीमत अधिक आंकी हो। अत: व्यय करने से पहले थोड़ा घूमकर देख लेना अच्छा होता है।
- काम में लाने के बाद इन कपड़ों को बदन से उतारते के तुरंत बाद तह कर लेने की गलती न करें, क्योंकि शरीर के पसीने की बदबू अंदर ही अंदर दब कर दुर्गन्ध पैदा कर देती है।
अत: कपड़ों को खोलकर पहले पसीने को सुखा लें। बिना पसीना सुखाए रखने पर उसमें फफूंदी आ जाती है तथा कभी-कभी बड़े-बड़े धब्बे भी बन जाते हैं। - कुछ समय पहनने के बाद ही साड़ियों व पोशाकों पर हल्की सी सलवटें पड़ जाती हैं,
अत: साड़ी पर तो चरक कराना उपयुक्त है जबकि सिले हुए वस्त्रों पर प्रेस कराना चाहिए। यदि प्रेस खुद ही कर रहे हों तो उल्टी तरफ से पतला कपड़ा रखकर ही प्रेस करें। - जरी के वस्त्रों को कभी भी खुला न रखें और न ही अखबार में ही लपेटकर रखें। वायुमंडल में पायी जाने वाली नमी व अखबार में प्रयुक्त काली स्याही जरी के कपड़ों को काला कर देती है।
- जरी के फैंसी या भारी वस्त्रों को अत्यंत सतर्कता से पहनें। जहां तक संभव हो, कम से कम पिनों को लगाएं। लहंगा चुनरी सेट में, चुनरी या साड़ी के पल्लू को अंदर से दबाना चाहिए। इन वस्त्रों को पहनकर कभी भी सुगंधित पदार्थ का सीधा छिड़काव न करें वरना उसका रसायन जरी के धातु को काला कर देगा।
- अगर जरी के वस्त्रों में हल्का-सा भी दाग-धब्बा लग जाए तो उसे तत्काल हल्के हाथ से छुड़ाने की कोशिश करें। ज्यादा अच्छा होता है कि रूई के फाहे को शैंपू या किसी लिक्विड डिटरजेंट में भिगोकर पहले पानी में निकाल लें व फिर धब्बे पर हल्के हाथों से मलें।
- कभी भी किसी भी प्रकार के चमकयुक्त कपड़ों में नैपथलीन न रखें और न ही अन्य किसी प्रकार के तेज गंधयुक्त कीटनाशक पदार्थ के संपर्क में आने दें, क्योंकि नैपथलीन व तेज गंधयुक्त कीटनाशक पदार्थ में प्रयुक्त होने वाले रसायनिक तत्व जरी को काला कर देते हैं।
- अधिकतर जरी के वस्त्र अंदर की तरफ से गंदे होते हैं,7 जैसे साड़ियों की फाल, घाघरा अंदर की तरफ से व ब्लाउज बांहों पर से तथा ओढ़नी सिर पर से साड़ियों की फाल धोने की बजाय पुरानी व गंदी फाल आहिस्ता-आहिस्ता निकाल लें ताकि वस्त्रों से धागे न खिंचें और न ही छेद मोटे हों व फाल धोकर पुन: प्रयोग कर सकते हैं।
– पूनम दिनकर