jangal mein mangal kiya daataar - Sachi Shiksha

संपादकीय
परम पिता शाह सतनाम जी धाम, जो दुनिया में रूहानियत व इन्सानियत की शिक्षा के रूप में विख्यात हो चुका है, 27 वर्षाें का सुनहरा सफर जो अद्भुत है, अभूतपूर्ण है। डेरा सच्चा सौदा सरसा विश्वपटल पर किसी पहचान का मोहताज नहीं है। सरसा शहर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर शाह मस्ताना जी आश्रम, जिसे डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने स्थापित किया और सरसा शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर गांव शाह पुर बेगू व नेजिया खेड़ा के बीच स्थित परम पिता शाह सतनाम जी धाम अपनी रूहानी चमक से पूरी दुनिया को चमका रहा है।

शाह सतनाम जी धाम का निर्माण पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अपने पावन सानिध्य व रहमोकर्म से सन् 1993 में करवाया जो अपने आप में बेमिसाल है। शाह सतनाम जी धाम का निर्माण दुनिया के सामने एक ऐसा चमत्कार है जिसे हजारों लोगों ने अपनी आंखों से होते देखा है और आज भी इसकी गौरव -गाथा उनके दिलो-दिमाग में बसी हुई है जो अविस्मरणीय है। क्योंकि यह एक ऐसा निर्माण-कार्य था जिसके बारे कोई कल्पना भी नहीं कर सकता, बनाना तो दूर की बात थी। यह निर्माण आसमान से तारे तोड़ने जैसा ही था। यही कारण है कि आज भी लोग जब इस निर्माण के बारे सुनते हैं तो दातों तले उंगली दबा लेते हैं।

सन् 1993 में जिस जगह पर शाह सतनाम जी धाम की स्थापना की गई है, वो एकदम सुनसान व बंजर इलाका था। ऐसा दृश्य था कि वहां रात को तो क्या भरे दिन में भी कोई जाने का नाम नहीं लेता था। इतना ऊबड़-खाबड़ व ऊंचा-नीचा की उधर एक कदम भी चलना मुहाल था। सुनसान व बंजरपन तो था ही, इससे भी इस जगह की डर वाली बात इस जगह पर 25-30 फुट उंचे बालू रेत के टीले थे।

यह ऐसी जगह थी कि इन्सान तो दूर पंछी-परिन्दे या जानवर भी नहीं दिखते थे। सरसा से चौपटा जाने वाली सड़क जो आज फोर लेन व सुन्दर दिखाई पड़ती है, यह भी एक छोटा सा लिंक रोड़ था जो गर्मियों के दिनों में हवा चलने से बालू रेत से ढक जाया करता और जो इक्का-दुक्का वाहन आता वो भी परेशानी में घिर जाया करते था। ना कोई आवाजाही, ना कोई फसल-खेती, ना कहीं पानी का कोई स्त्रोत। इधर आस-पास के लोग भी अपना जैसे-तैसे गुजर-बसर कर रहे थे। अपने बेबसी भरे हालातों को ही अपना भाग्य समझ जिन्दगी की गाड़ी हांक रहे थे। लेकिन जैसे कहा जाता है कि जब संत-सतगुर जहां कहीं अपने पावन चरण टिकाते हैं तो वो जगह नसीबों वाली हो जाती है और सोने की सुनहरी आभा को पा जाती है।

शाह मस्ताना जी महाराज ने गांव नेजिया खेड़ा में गांव वालों की प्रार्थना पर डेरा बनाया और शाह मस्ताना जी धाम से अक्सर ही नेजिया सत्संग करने जाया करते। बड़े-बुज़ुर्गाें के अनुसार एक दिन शहनशाह जी पैदल ही इसी सुनसान व ऊंचे-नीचे टीलों में से होकर जा रहे थे। इन टीलों पर एक जगह वन का पेड़ था जिसकी छाया में सार्इं जी कुछ देर के लिए रुक गए। सार्इं जी ने अपनी मौज में आकर इस जगह के लिए वचन फरमाए कि वरी देखना, यहां पर एक दिन खूब रौणक मेले लगेंगे। दुनिया-भर के फल-मेवे पैदा होंगे। यहां पर सचखण्ड का नजारा बनेगा। सार्इं जी के वचनों का उस समय किसी को विश्वास न आया। अब संत-वचनों के पूरे होने का समय आ गया था।

जब इस जगह की ओर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी ने अपना रहमो-करम फरमाया तो इस जगह के भाग जाग गए। लोगों के वारे-न्यारे हो गए। बेबस व असहाय लोग किस्मत के धनी हो गए। पूज्य गुरु जी ने अपने रहमो-करम से मई 1993 में इस जगह पर से टीले-उठाने का कार्य शुरू किया। इतने ऊंचे-ऊंचे रेत के टीले जब उठाए जाने थे तो लोगों को विश्वास नहीं था कि ऐसा भी हो जाएगा। क्योंकि यह सब मशाीनी न होकर श्रम शक्ति से किया जाना था।

और जब पूज्य गुरु जी ने सेवा-कार्य शुरू किया तो सैंकड़ों सेवादार इस सेवा-कार्य में जुट गए और कुछ ही दिनों में वो टीले उठा दिए गए। पूज्य गुरु जी स्वयं गर्मी व तपती लौ की परवाह किए बिना इन्हीं टीलों पर रहते और अपनी रहनुमाई व पावन मार्गदर्शन में हर काम करवाते। इसके बाद यहां पर निर्माण-कार्य शुरू किया गया और 30-31 अक्तूबर 1993 को पूज्य गुरु जी द्वारा यहां पर पहला सत्संग फरमाया गया। वो दिन और आज का दिन जो 27 वर्षाें का ऐसा अद्भुत व सुहाना सफर जिसकी जितनी महिमा की जाए कम है।

पूज्य गुरू जी ने जंगल में ऐसा मंगल कर दिखाया कि देखने वाले हक्के-बक्के रह गए। दुनिया की आस्था के केन्द्र परमपिता शाह सतनाम जी धाम के निर्माण की गाथा सुनकर शायद आज भी किसी को यकीन न आए लेकिन यह वास्तविकता है कि परम पिता शाह सतनाम जी धाम 27 साल पहले पूज्य गुरु जी ने लोगों के देखते-देखते अपने रहमो-करम से इस पवित्र धाम की स्थापना की।

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