It is important to respect the frontline warriors - editorial

जरूरी है फ्रंटलाईन योद्धाओं का सम्मान -सम्पादकीय
देश में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है। मई महीने में यह लहर लाखों जिंदगियां निगल गई। कई राज्यों में तो घर के घर ही खत्म हो गए। क्योंकि यह लहर ग्रामीण क्षेत्र में पहाड़ बन कर टूटी है।

जिसका किसी को अंदाजा भी न था। गावों में लापरवाही व इलाज की पूर्ण व्यवस्था न होने से इस लहर ने कहर बरपाया। क्योंकि ग्रामीण लोग उचित तरीके से चैकअप व उसके बाद ईलाज में लापरवाही करते रहे। जिससे लोगों को कीमती जानें गंवानी पड़ी। सेनेटाइजिंग, डिस्टेसिंग, मास्क व जांच इत्यादि व टीकाकरण के प्रति उदासीन रवैये से कोरोन फैल गया जिससे कई गांवों में हालात बद से बदतर होते गए। मध्य मई के बाद कोरोना का संक्रमण तो कम होने लगा मगर मृत्यु दर में कमी ना आई जिससे कोरोना की दहशत ज्यों की त्यों बनी हूई है।

सरकारों की ओर से इस लहर को रोकने के भरसक प्रयास किए गए। लोगों को टीकाकरण , व्यापक डिस्टेसिंग के लिए प्रेरित किया गया। गावों में विशेष टीमें भेजी गई ताकि ग्रामीणो का नियमित चैकअप करके उन्हें सही ईलाज दिया जाए। इसी कड़ी के तहत लॉकडाऊन करके संक्रमण की चेन को तोड़ा गया जिससे संक्रमण की दर में कमी भी देखी गई। लोगों ने भी सावधानीपूर्वक सरकार व प्रशासन के साथ पूरा सहयोग किया ताकि इस महामारी के प्रकोप को रोका जाए। हालांकि इन सब प्रयासों के बावजूद भी मौत का खौफ बना रहा। शमशान घाटों में जलती चिताओं के भयावह दृश्य देख लोग सहम गए।

इतनी भयावहता को देख जहां लोग घरों में ही दुबक गए, दिलो-दिमाग में एक दहशत ने जहां वीरानगी पैदा कर दी, वहीं ऐसे डर व खौफ के बीच डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत उन लोगों के लिए खुलकर सामने आई जो इस मुसीबत का सामना करके लोगों को बचा रहे थे, लोगों को संभाल रहे थे। जिनमें पुलिस प्रशासन के लोग, डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ और एम्बुलेंस के ड्राईवर जो अपनी जान जोखिम में डाल पीड़ितों की सेवा-संभाल में लगे हुए थे।

क्योंकि हर किसी को अपनी जान की पड़ी थी। और इन लोगों की ओर किसी का ध्यान नहीं्र गया, कि ऐसे वक्त में वो भी हैं जो अपने घर-परिवार बाल-बच्चों की परवाह किए बगैर कोरोना पीड़ितों की जान बचाने में जुटे हुए हैं। हालांकि लोगों की जान बचाते हुए कई डाक्टर व पुलिस प्रशासन के अधिकारी भी इसकी चपेट में आ गए लेकिन उनका जज्बा गजब का रहा है। ऐसे फ्रंट लाईन योद्धा जिन्हें कोरोना वारियर्स कहा गया, इनका ख्याल किया डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने। पूज्य गुरु जी ने गत 29 अप्रैल को अपनी चिट्ठी के माध्यम से जहां साध-संगत की कुशल क्षेम जानी और कोरोना से बचाव हेतु गाईडलाईन भेजी वहीं कोरोना वारियर्स की सेहत का भी फिक्र किया और उनके हौसला अफजाई के लिए स्पैशल तौर पर लिखा गया।

पूज्य गुरु जी की पावन प्रेरणा से साध संगत ने इसको अभियान की तरह चलाया। कड़-कड़ाती धूप व कोरोना के दहशत भरे साये के बीच समाज सेवा में खड़े पुलिसकर्मियों, डाक्टरों व पैरामेडिकल सदस्यों तथा ऐम्बुलेंस ड्राईवरों को फल-फ्रूट, दवाईयां व नींबू पानी आदि देकर उनको सेल्यूट किया। उनके साहसिक कदम की सराहना की। साध-संगत ने पूरे देश में ही नहीं, विदेशों में भी इस अभियान को चलाकर पूज्य गुरु जी के पावन वचनों पर फूल चढ़ाए। साध-संगत ने इन योद्धाओं का पूरा हौंसला बढ़ाकर ऐसा उदाहरण पेश किया जो बेमिसाल है। इन कोरोना वारियर्स को संदेश दिया कि ऐसी घड़ी में हम आपके साथ हैं। हम आपकी सेवा को तत्पर हैं।

यही नहीं, साध-संगत ने हर जगह ब्लड डोनेट किया। प्रेमीजन पीड़ितों की मदद में डटकर सामने आए। उनके लिए नि:शुल्क एम्बुलेंस की व्यवस्था करके अस्पतालों से शवों का अंतिम संस्कार भी किया। अपनी जान की परवाह किए बगैर सेवादार दिन-रात मानवता की इस सेवा में जुट गए। अपने सतगुर के वचनों पर अमल करते हुए साध संगत ने दु:ख की इस घड़ी में समाज को निस्वार्थ सेवा भाव का ऐसा संदेश दिया कि आमजन भी वाह-वाह कह उठा। ऐसी सेवा भावना संजीवनी से कम नहीं है। लोगों को प्रेरणा मिली। जन-मानस में हौसले की उमंग पनप उठी। ऐसे ही कई जगह और भी सेवा भावना की मिसालें सामने आई। जिससे इन्सानियत को बल मिला और डेरा सच्चा सौदा का यही मूल संदेश है कि इन्सानियत को बल मिलता रहे। हमदर्दी की भावना कभी खत्म न हो।

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