बच्चों को सभ्यता-शिष्टाचार भी सिखाइए Teach children manners
‘आ गई चुडैÞल’ एक किशोर ने अपनी माँ के लिए ये अल्फाज़ बोले। अविश्वसनीय लगता है। केतन अपनी मां से इस तरह बात करता है, रीना ने एक दिन मुझे बताया। रीना मेरी प्रिय सखी है। वह एक सुलझी हुई उसूलों वाली महिला है। कभी न झूठ बोलती है, न किसी की व्यक्तिगत रूप से आलोचना करती है, लेकिन गलत बातों के प्रति हर बुद्धिजीवी की तरह उसमें भी आक्र ोश है।
केतन की मां चूंकि दिखने में ठीक-ठीक है और केतन स्वयं दिखने में सुंदर है, इसलिए उसने ये अल्फाज़ अपनी माँ को कहे। वैसे तो हर माँ को अपना बच्चा प्यारा लगता है लेकिन मिसेज सक्सेना यानी केतन की माँ उस पर ज्यादा ही लाड़ प्यार बरसाती है। नतीजन केतन बिल्कुल बिगड़ गया है। किसी को भी जो मुंह में आता है, बोलता है।
अपने उद्दंड व असभ्य व्यवहार के लिए क्या पूर्णत: बच्चे ही दोषी हैं? आंशिक रूप से यह जीन्स का खेल है वर्ना क्यों एक ही घर में एक वातावरण में पले बढ़े बच्चों में एक परोपकारी और दूसरा स्वार्थी स्वभाव वाला होता है लेकिन संस्कारों का भी अपना महत्व है बच्चे के विकास में। अच्छी शिक्षा, उचित लाड-प्यार, अनुशासन व थोड़ी सजा बच्चे के व्यक्तित्व के विकास के लिए जरूरी है।
कई बार माँ-बाप बच्चों को ऐशो-आराम की चीजें, अच्छा खाना पहनना देकर तथा नामी बोर्डिंग स्कूलों में भर्ती कराकर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। बच्चे क्या सोचते हैं, उनका फ्रैंड-सर्कल कैसा है, वे कहाँ क्या करते हैं? इन सबसे वे बेखबर रहते हैं।
बच्चे तो कच्ची माटी की तरह होते हैं। उन्हें चाहे जिस शक्ल में ढालने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा माँ-बाप की होती है। उसमें भी यह दायित्व पिता से ज्यादा माँ का होता हैं क्योंकि पिता ज्यादातर बाहर रहते हैं।
बच्चों को उनकी कमियों व गलत बातों के लिए सहानुभूतिपूर्ण तरीके से समझाना चाहिए। क्र ोधित होकर डांटना, फटकारना, मारना-पीटना उन्हें विद्रोही बना सकता है। एक दिन की बात है, दुकान पर कुछ सामान खरीदते हुए मैंने देखा कि सात-आठ साल का बच्चा किसी महंगी चॉकलेट को खरीदने की जिद्द कर रहा था। पिता ने गुस्से में वहीं पर चार लोगों के सामने बच्चे के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया। अब इस तरह का व्यवहार करने पर बच्चे से कितनी सभ्यता की उम्मीद की जा सकती है।
घर आए मेहमानों को आदर से बिठाना, अगर धूप में आए हैं तो उन्हें आते ही कम से कम पानी जरूर पिलाना, बड़े बुजुर्गों की मदद करना, उनकी बूढ़ी काया की हंसी नहीं उड़ाना, ये सब मामूली बातें हैं लेकिन कितनी अहम् हैं। बच्चे में इंसानियत का जज्बा हो तो वह कोई भी ऐसा काम नहीं करेगा, जिससे आपको कभी भी शर्मिन्दगी उठानी पड़े।
‘धन्यवाद’, ‘माफ करना’, ‘मेहरबानी करके’ सिर्फ ये शब्द बोल लेने से ही कोई बच्चा सभ्य नहीं बन जाता। सभ्य बनता है वह अपने आचरण से, अपने कार्यों से, अपनी अच्छाई व नेकदिली से। अच्छे संस्कार ही वह आंतरिक सभ्यता है जिसे हमें अपने बच्चों में कूट-कूटकर भरना है। तब न सिर्फ वे मिलने वालों का मन मोह लेंगे और उन्हें अपना बना लेंगे बल्कि जीवन पथ पर आसानी से बगैर किसी से झगड़ा या मनमुटाव किए अग्रसर होते रहेंगे। -उषा जैन ‘शीरीं’