नए घर में सामंजस्य बनाए नई बहू
जब लड़की जवान होती है तो अपने आस-पास शादी शुदा कपल्स (जोड़ों) को खुश और मस्त देखती है, तब उसके मन में भी शादी के बारे में कई विचार आते हैं। जब वह शादी की उम्र तक पहुंचती है तो हजारों अरमान संजोए होते हैं उसने अपने छोटे से दिल में पति के लिए, पति के माता-पिता और भाई-बहन के लिए, पर वह विवाह के बाद नए घर में प्रवेश करती है तो उसके मन में सपनों के साथ कुछ डर भी होता है। उसे लगता है कि कैसे वह नए परिवेश में अपना सामंजस्य बिठा पाएंगी। ऐसे में नई दुल्हन से अनजाने में कुछ चूक हो जाए तो यह छोटी-सी चूक कलह का कारण बन जाती है, इसलिए वधू को बहुत सोच समझ कर, विचार कर कदम उठाने चाहिएं, ताकि वह घर वालों से सामंजस्य स्थापित कर पाए।
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मिल बांट कर काम करें
अगर लड़की कामकाजी है तो दोनों मोर्चे बिना मदद के संभालना कठिन है। ऐसे में आप जल्दी टूट जाएंगी। टूटने का अर्थ है ‘परिवार में तनाव’। आप संयुक्त परिवार में शादी करवा कर जा रही हैं और नौकरी भी करती हैं तो शादी के शुरू में ही परिवार में उतनी मदद करें जितनी आप से आसानी से हो सके, नहीं तो पार्ट टाइम या फुल टाइम सर्वेन्ट रख कर परिवार में शांति बना कर रखें। विवाह करवा कर आपको पति के साथ कहीं दूसरे शहर में रहना है तो काम का बंटवारा कैसे करें, यह आप अपने पति से डिस्कस कर सकती हैं। निर्णय बैठकर करें ताकि बाद में बेवजह झगड़ा न हो।
दोनों परिवारों में तुलना न करें
कभी भी दो परिवारों में तुलना न करें। इस बात का ध्यान रखें कि दोनों परिवारों की परिस्थितियाँ, रहन-सहन के तरीके, आय के साधन, परिवार में सदस्यों की संख्या अलग-अलग होने के कारण समानता होना कठिन होता है।
यदि आपके मायके में किसी चीज़ पर दिल खोल कर खर्च होता हो और ससुराल में न होता हो, तो इस बात का रौब न मारें। बल्कि स्वयं को उस वातावरण में ढालने का प्रयास करें। मायका आपका बिता हुआ कल था, और यह आपका वर्तमान है, इस बात को दिमाग में रखें।
गुस्से में निर्णय मत लें:-
परिवार में कुछ छोटी-मोटी बात हो जाती है और आपको वो बात बुरी लगती है और आप गुस्से में आकर कुछ भी निर्णय ले लें तो यह गलत है। गुस्से में लिया निर्णय प्राय: गलत होता है और बात को बिगाड़ देता है। फिर जीवन-भर अफसोस करने से बेहतर है कि संभल कर निर्णय लें। बात की गहराई तक जाएं और मन शांत होने पर उस बात पर पुनर्विचार करें।
यह सबसे जरूरी है कि लड़की अपने सास-ससुर को अपने माँ-बाप की तरह समझे। जिस तरह से जब कोई गलती हो तो माँ लड़ती है, वैसे ही सास भी अगर कुछ कहती है तो अन्यथा न लें।
स्वयं को तैयार रखें
- नए परिवार में यदि आपको शादी के बाद साथ रहना है या अलग, इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार रहें। कई बार लड़कियां अकेले दूसरे शहर में जाते हुए घबराती हैं। इसलिए अपने मन को तैयार रखें ताकि बाद में परेशानी न हो।
- नए परिवार में जाने से पहले परिवार के किसी भी सदस्य के बारे में कोई पूर्व धारणा न बनाएं। बल्कि वहाँ जाकर परिवार के सभी सदस्यों से सहृदयता पूर्वक व्यवहार करें।
- परिवार के सदस्यों के जन्मदिन, विवाह की सालगिरह की तारीख को याद रखें। ऐसे मौकों पर छोटे-छोटे उपहार भी दें ताकि परिवार में अपनापन महसूस हो सके।
- यदि आप संयुक्त परिवार में हैं और आप दोनों कामकाजी हैं, और कभी-कभार किसी कारणवश आपको घर देर से आना हो इसकी सूचना परिवार में जरूर दें। माता-पिता को सम्मान दें, छोटे भाई या बहन हों तो उन्हें भरपूर प्यार दें। कभी-कभी उनके साथ पिकनिक या सिनेमा भी जाएं।
- घर के काम के प्रति अपना फर्ज निभाएं। माता-पिता बीमार हों तो छुट्टी लेकर उनका ध्यान रखें। यदि आप नए घर में बेटी बनकर फर्ज़ निभाएंगी तो वो भी आपको अपनी बेटी की तरह ही भरपूर प्यार देंगे। -नीतू गुप्ता
डेरा सच्चा सौदा की पावन मर्यादा
- परिवार में कभी कलेश वगैरह न हो, इसलिए डेरा सच्चा सौदा में निश्चित मर्यादा के अनुसार नवयुगल युवक-युवतियां दिलजोड़ माला (एक-दूसरे को) पहनाकर शादी करते हैं। ऐसे नवयुगलों के लिए पूजनीय गुरु सच्चे रहबर संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र वचन हैं कि लड़का-लड़की दोनों ही अपने-अपने परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्यों के स्वभाव के बारे में पहले ही एक-दूसरे को पूरी व सही जानकारी दे दें ताकि लड़की जब नए घर में प्रवेश करती है तो वह सभी से यथासंभव सामंजस्य बैठा सके और इसी तरह लड़का अपनी ससुराल में आए तो उसे भी कोई झिझक वगैरह न हो।
- लड़का-लड़की एक-दूसरे के माता-पिता व बुजूर्गों का अपने माता-पिता से भी बढ़ कर सत्कार करे व छोटों से नि:स्वार्थ प्यार करें और सबसे आवश्यक है कि दोनों का एक-दूसरे पर दृढ़-यकीन होना बहुत ही जरूरी है। यह यकीन अपने आप नहीं आता, इसे बनाना पड़ता है, कमाना पड़ता है। आपसी यकीन न होने के कारण ही आजकल ज्यादातर परिवार टूटते हैं। पूज्य गुरु जी की समाजहित में ये कुछ हिदायतें नव-युगलों को पहले दिन ही समझा दी जाती हैं।
वर्णनीय है कि रोजाना दर्जनों शादियाँ यहां डेरा सच्चा सौदा में रूहानी सत्संगों, नामचर्चाओं में होती है और अब तक यही पाया गया है पूज्य गुरु जी के इन पावन वचनों को फॉलो करने से परिवारों में पूर्ण तालमेल व खुशियां देखी-सुनी गई हैं।