वचन सुनकर घर पहुंचा तो समझ आई पूरी बात
सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी जोगिन्द्र सिंह रंधावा इन्सां गली नं. 6 बीबी वाला रोड भटिंडा (पंजाब) से परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की हुई अपार रहमत के बारे में बताते हैं कि सन् 1980 की बात है। डेरा सच्चा सौदा की कालोनी कल्याण नगर में मकानों का निर्माण कार्य चल रहा था।
उस समय मैं गुरु नानक थर्मल प्लांट बठिंडा में नौकरी करता था और वहीं पर अपने बाल-परिवार के साथ रहता था। गर्मी की छुट्टियों में बच्चे अपनी मम्मी के साथ ननिहाल, गाँव माही नंगल मिलने के लिए चले गए। पीछे मैं अकेला रह गया तो मैंने सोचा कि क्यों ना मैं डेरा सच्चा सौदा सरसा में सेवा करके आऊं।
उसी दिन में सरसा पहुँच गया। अगले दिन सुबह उठते ही मैं सेवा करने के लिए सेवादारों के साथ कल्याण नगर चला गया। चिणाई (राज) मिस्त्री को र्इंटें व गारा पकड़ाने की सेवा मुझे मिली। हम सेवा में जुटे हुए थे, तभी पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज वहाँ पर साध-संगत व सेवादारों को दर्शन देने के लिए पधारे। पूज्य परमपिता जी मिस्त्री भाइयों को काम समझा कर, वहीं पास में सजी शाही कुर्सी पर विराजमान हो गए।
उस समय सेवादार प्रेमी कर्म सिंह जी झुम्बा वाले पूजनीय परमपिता जी के पास खड़े थे। शहनशाहों के शहनशाह परम पिता जी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कर्म सिंह को मुझे बुलाने के लिए कहा। जब मैं सच्चे पातशाह जी के पास आया तो घट-घट के जाननहार सतगुरु जी ने मुझे भटिंडा जाने के लिए वचन फरमाया।
सेवादार कर्म सिंह ने भी मुझे कहा कि आप अभी हाथ-पाँव धोकर इसी गाड़ी से भटिंडा चले जाओ। मेरे मन ने मुझे ख्याल दिया कि मैंने छुट्टी ली हुई है और बच्चे अपने ननिहाल गए हुए हैं तो मैंने वहां जाकर क्या करना है। मैं तो सेवा करने के लिए ही यहां आया हूँ। मैंने इस दुविधा में सच्चे पातशाह जी के चरणों में अर्ज कर दी कि पिता जी, आज तो रविवार है, शाम की गाड़ी चला जाऊँगा।
परन्तु सच्चे सतगुरु जी ने हुक्म फरमाया, ‘भाई, अभी इसी गाड़ी से भटिंडा चला जा।’ मैं पूजनीय परमपिता जी के हुक्मानुसार उसी समय रेलवे स्टेशन पर चला गया और रेलगाड़ी द्वारा भटिंडा पहँुच गया।
जब मैं थर्मल कालोनी में अपने क्वार्टर पर पहुँचा तो मेरे बच्चे क्वार्टर में पहले से ही पहुँचे हुए थे। मेरी पत्नी ने बताया कि छोटा बेटा हरप्रीत बहुत ज्यादा बीमार हो गया था। इसकी हालत बहुत गंभीर थी। उसने पूजनीय परमपिता के चरणों में सहायता के लिए अरदास करने हुए ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा लगाया।
इसके बाद वह बच्चे को डाक्टर के पास ले गर्इं। डाक्टर ने दवाई दी, जिसके बाद वह धीरे-धीरे होश में आ गया। और उपचार के लिए बेटे को किसी दूसरे डाक्टर को दिखाना होगा। धन्य है मेरा सतगुरु, जो अपने जीव की पल-पल संभाल करता है।
यही असल कारण था, जिसके लिए सतगुरु जी ने मुझे ऐन मौके पर भेज दिया। सतगुरु जी के उपकारों का वर्णन मैं कैसे कर पाऊंगा। धन्य-धन्य है मेरा मुर्शिद मौला।
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