Lohri

जी भर के मनाएं लोहड़ी की खुशियां Lohri

लोहड़ी व मकर-सक्रांति पर्व नववर्ष के आरंभ में मनाया जाने वाला पहला पर्व है। यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें प्रथम और नवीनतम का अनोखा भाव समाया हुआ है। उत्तर भारत में नए साल के इस प्रथम पर्व को नव वधू व नवजात शिशु की पहली लोहड़ी के रूप में खूब हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

इस पर्व पर खुशियों का ऐसा आलम होता है कि रात्रि को लोहड़ी मनाते हुए पूरा परिवार एकजुट होकर नाचते-गाते हुए खुशियाँ मनाते हैं। इस पर्व की सबसे अधिक धूम पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व दिल्ली में रहती है। लोहड़ी का पर्व सुख-समृद्धि व खुशियों का प्रतीक है। लोग इस त्योहार को मिलजुल कर मनाते हैं और खुशियों के गीत गाते हैं।

लोकड़ी के अगले दिन मकर-सक्रांति का त्योहार भी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवेश करता है, जिसे बड़े दिनों की शुरुआत होना माना जाती है। मकर-सक्रांति पर पतंगबाजी का तो अपना अलग ही मजा है। साथ ही इस दिन को नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है और बड़े-बुजुर्गों के सम्मान में उन्हें कपड़े इत्यादि भेंट कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।

लोहड़ी के त्योहार को मनाने के लिए लोग एक विशेष लोहड़ी की आग जलाते हैं। इस आग में गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक, पॉपकॉर्न आदि अर्पित किए जाते हैं। लोग आग के चारों ओर नृत्य करते हैं और गीत गाते हैं। लोहड़ी का त्योहार एक खुशी और उत्सव का समय है। साथ ही यह एक ऐसा अनोखा मौका है, जहाँ लोग एक साथ आते हैं और नए साल का स्वागत करते हैं।

लोहड़ी शब्द में ‘ल’ का मतलब लकड़ी, ‘ओह’ से गोहा यानी जलते हुए सूखे उपले और ‘डी’ का मतलब रेवड़ी से होता है। इसलिए इस पर्व को ‘लोहड़ी’ कहा जाता है। लोहड़ी के बाद मौसम में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है और ठंडक का असर धीरे-धीरे कम होने लगता है।

लोहड़ी के दिन सुबह से ही रात के उत्सव की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं और रात के समय लोग अपने-अपने घरों के बाहर अलाव जलाकर उसकी परिक्रमा करते हुए उसमें तिल, गुड़, रेवड़ी इत्यादि डालते हैं। उसके बाद अलाव के चारों ओर शुरू होता है गिद्दा और भंगड़ा का मनोहारी कार्यक्रम, जो देर रात्रि तक चलता है।

लोहड़ी का त्योहार विशेष रूप से मुगलकाल में घटी एक घटना से जुड़ा है। यह दुल्ला भट्टी की याद में मनाया जाता है। इतिहास बताता है कि अकबर के जमाने में दुल्ला भट्टी नाम का एक डाकू था। बेशक वह डाकू था, लेकिन किसी जरूरतमंद की मदद करने में भी वह पीछे नहीं रहता था। एक बार एक गरीब ब्राह्मण की लड़की जिसका नाम सुंदर मुंदरिये था एवं जब उसकी शादी करने का वक्त आया तो गरीब ब्राह्मण ने दुल्ला भट्टी डाकू से फरियाद की।

दुल्ला भट्टी चूंकि मुस्लिम था, लेकिन वह दिल में कभी भेदभाव नहीं रखता था। जब बात अकबर बादशाह तक पहुँची कि सुंदर मुंदरिये की शादी में दुल्ला भट्टी आयेगा तो बादशाह ने शादी के दिन सब तरफ चौकसी बढ़ा दी। वायदे के मुताबिक अपनी बहन की शादी में दुल्ला भट्टी आया। कहा जाता है कि अपने साथ में शादी के ढेरों साजो सामान, चुन्नियां, कपड़े व जेवरात भी लाया। विदाई के बाद अकबर के सिपाहियों ने डाकू दुल्ला भट्टी को चारों ओर से घेर लिया।

जमकर लड़ाई हुई और अंत में दुल्ला भट्टी मारा गया। तब से यह घटना प्रेम व भाईचारे का प्रतीक बन गई कि दुल्ले ने अपनी बहन की शादी में जान तक दे दी और तब से लेकर आज तक इस प्रसंग के परिप्रेक्ष्य में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है एवं दुल्ला भट्टी की याद में यह गीत भी बड़े जोर-शोर व आदर के साथ गाया जाता है।

सुंदर-मुंदरिये हो।
तेरा कौन बेचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला हो,
सेर शक्कर पाई हो।
कुड़ी दे बोझे पाई हो, कुड़ी दा लाल पताका हो।
कुड़ी दा सालू पाटा हो। सालू कौन समेटे हो।

इस गीत को सभी एक साथ गाते हैं व बाद में ‘हो’ को जोर से उच्चारित करते हैं। लोहड़ी पर्व पर रात के वक्त आग जलाई जाती है व सभी लोग उसके इर्द-गर्द जमा होते हैं व खुशियों के गीत गाकर रेवड़ियां, मक्की के फुल्ले, खजूर आदि वितरित करते हैं। पंजाबियों में इस त्योहार पर जिस लड़के व लड़की की शादी की पहली वर्षगांठ हो, और भी खुशी से मनाते हैं, साथ ही घर में नवजात बच्चे होने पर भी परंपरागत तरीके से यह त्योहार मनाते हैं। हालांकि लोहड़ी का यह पर्व पूरे देश में मनाया जाने लगा है, लेकिन फिर भी लोहड़ी का असली मज़ा व धूम तो पंजाब, जम्मू कश्मीर व हिमाचल में ही देखने को मिलती है।

Lohri लोहड़ी मनाएं, सेहतमंद पकवान खाएं

लोहड़ी पर्व पर विशेष रूप से मूँगफली, गुड़-तिल के लड्डू, पॉपकॉर्न, गज्जक इत्यादि बड़े चाव से खाए जाते हैं। ये पकवान खाने में स्वादिष्ट होते हैं वहीं इनमें प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम आदि तत्व होते हैं। मूँगफली और तिल फैट के भी अच्छे स्रोत हैं। मीठे पदार्थों का बहुत सीमित मात्रा में ही उपयोग करें, केवल त्योहार पर मुंह मीठा करने जितना।

गुड़ की रोटी:

इस पर्व पर गुड़ की रोटी भोजन में शामिल की जाती है, साथ ही मक्के की रोटी और सरसों के साग को भी इन दिनों खूब खाया जाता है।

खिचड़ी:

मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाई जाती है, इसमें कई सब्जियाँ डाली जाती हैं। बाजरे की खिचड़ी, चावल-दाल की खिचड़ी बड़े चाव खाई जाती है।

गुड़-तिल के लड्डू:

संक्रांति पर तिल-गुड़ खाने की परम्परा है। कहीं लड्डू आटे और तिल के बनते हैं, तो कहीं गुड़ में तिल और मूँगफली डालकर। कुल मिलाकर यह प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम और विटामिन के अच्छे स्रोत बन जाते हैं। मधुमेह के रोगियों के लिए इस पर्व पर कुछ मीठा बनाना हो, तो मूँगफली और तिल का मीठा बना सकते हैं, जिसे बांधने के लिए अंजीर को भिगोकर-कूटकर इस्तेमाल करें।

जरूरतमंदों की मदद करें

पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां हमेशा यही संदेश देते हैं कि किसी भी पर्व को मनाने का सबसे उत्तम तरीका है कि आप परमार्थ करें। मकर संक्रांति को दान-पुण्य का दिन माना जाता है। इसलिए इस दिन आप जरूरतमंदों को राशन, कपड़े इत्यादि देकर खुशी मना सकते हैं।

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