लक्ष्य को बार-बार न बदलें
प्राय: ऐसा देखा जाता है कि व्यक्ति अपने द्वारा निर्धारित लक्ष्य पर अडिग नहीं रह पाते हैं। वे लक्ष्य को बार-बार अपनी सुविधानुसार बदलते रहते हैं। इससे लक्ष्य की प्राप्ति में लगे आत्मबल भी डगमगाने लगते हैं।
ऐसी प्रवृत्ति वाले लोगों को जीवन में अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बार-बार लक्ष्य बदलने की प्रवृत्ति के कारण उन्हें कदम-कदम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। फलस्वरूप वे किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने निर्धारित लक्ष्य को पाने के लिए सतत् प्रयास करते रहना चाहिए। बार-बार लक्ष्य बदलने से जो श्रम, ऊर्जा, समय, शक्ति पूर्व काम में लगाई थी, वह बेकार हो जाती है और नए कार्य के लिए पुन: नए सिरे से उतना ही श्रम, ऊर्जा, समय व शक्ति लगानी पड़ती है।

लक्ष्य का निर्धारण सोच समझकर करें। लक्ष्य निर्धारित करने से पूर्व खुद को जांच-परख लें। अपनी योग्यता क्षमता तथा रूचि पर विचार कर लें न कि किसी के दबाव, बहकावे या देखा-देखी में लक्ष्य का निर्धारण कर लिया। लक्ष्य निर्धारण के पश्चात् उसके प्रति समर्पण भी बहुत मायने रखता है। बिना समर्पण के लक्ष्य को पाना बेहद कठिन होता है। लक्ष्य निर्धारण में आत्मबल तथा आत्मविश्वास की अहम भूमिका होती है। आत्मविश्वास के अभाव में सफलता संदिग्ध हो जाती है।
व्यक्ति की सारी महत्त्वाकांक्षाएं आत्मविश्वास के बल पर ही पूरी होती हैं। साक्षात्कार में आपका आत्मविश्वास ही चयन का कारण बनता है। यही आपको कार्य करने की प्रेरणा देता है और कार्य में सफलता का मार्ग भी दिखलाता है। दु:ख और निराशा के समय आत्मविश्वास ही ढांढस बंधाता है, सांत्वना देता है और हमारी सुरक्षा करता है।
लक्ष्य निर्धारण से पूर्व सम्यक उदारवादी दृष्टि तथा लक्ष्य के प्रति सकारात्मक दृष्टि अपनाएं। किसी भी कार्य के प्रति आप उदारवादी दृष्टिकोण को अपनाएंगे, तभी उस विषय या लक्ष्य के प्रति न्याय कर पाएंगे। पूर्वाग्रह या संकीर्ण दृष्टिकोण को अपनाया तो उस विषय या लक्ष्य के प्रति न्याय कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
कई बार ऐसा भी होता है कि पूर्व निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति असंभव सी लगती है। ऐसी स्थिति में पूर्व निर्धारित लक्ष्य से संबंधित चीजों पर भी ध्यान देना चाहिए। यदि आप निर्धारित लक्ष्य को पाने में असफल हो गए हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उस कार्य को करने में आप असक्षम हैं बल्कि असफलता हमें यह बताती है कि कार्य प्रणाली में कहीं न कहीं कोई त्रुटि रह गई है।
आवश्यकता है कार्य प्रणाली में सुधार की, न कि असफलता पर बार-बार विचार करने की। असफलता पर बार-बार विचार करना उसकी पुनरावृत्ति को आमंत्रित करना है। अत: लक्ष्य निर्धारण से पूर्व उस पर बार-बार सोच विचार कर लें और लक्ष्य निर्धारण के उपरांत ही प्रयास आरंभ करें, तभी सफलता की मंज़िल को आप छू पाएंगे। -अनिल कुमार
































































