आह ले बेटा, तेरा सोना!
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी जगदीश राये इन्सां पुत्र श्री शाम लाल मानसा शहर जिला मानसा(पंजाब) से पूज्य गुरु जी की अपार रहमतों का वर्णन करता है: सन् 1998 की बात है कि मुझे पैसे की जरूरत पड़ गई। मैंने कुछ लोगों से पैसा माँगा परन्तु कहीं से न मिला। मैंने अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए अपने घर पर पड़ा अढाई तोले सोना बेचने का निर्णय ले लिया। मैंने यह सोना अपनी जेब में डाला और अपनी गैस वैलडिंग की दुकान पर चला गया।
जब मैंने अपनी जेब में सोना देखा तो सोना न मिला। मैंने सोचा कि शायद सोना घर पर ही रह गया। शाम को घर पर जाकर देखा तो सोना कहीं पर न मिला। मैं बहुत परेशान हो गया। उस समय घर पर और कोई चीज नहीं थी जिसे बेचकर पैसा बन जाता। सारा परिवार दु:खी हो गया। उस दिन घर पर न रोटी नहीं बनी। हम ऐसे ही सो गए। रात के अढ़ाई बजे मुझे जाग आ गई। मेरे सामने पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का स्वरूप लगा हुआ था। मैंने पूज्य पिता जी के चरणों में अरदास की- पिता जी! मेरा सोना गुम हो गया है।
और कोई इन्तजाम नहीं है पैसे का। आप कृपा करके मेरा सोना ढूँढ दो। मैं फिर से सो गया। दयालु सतगुरु पिता जी ने रहमत की। शहनशाह मस्ताना जी, परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज और हजूर पिता जी तीनों पातशाहियों ने दर्शन दिए। शहनशाह मस्ताना जी ने कपड़ा उठाया, फिर परम पिता जी ने जाली उठाई और हजूर पिता जी ने सोना उठा कर मुझे पकड़ाते हुए फरमाया,‘आह ले बेटा! तेरा सोना!’ मुझे अत्यन्त खुशी हुई कि सोना मिल गया। इतने में मेरी आँख खुल गई। मन ने ख्याल दिया कि यह तो सपना था। मैं फिर से उदास हो गया।
मैं उदासी में ही अपनी दुकान पर चला गया। मेरा मन बहुत दुखी था। मैं दुकान की सफाई करने लगा। मैंने दुकान के औजार साफ करने के लिए कपड़ा उठाया तो कपड़े के नीचे जाली पड़ी थी। जब मैंने जाली उठाई तो जाली के नीचे सोना पड़ा था। सोना पा कर मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा। मैंने उसी समय दुकान बंद कर दी और पूज्य गुरु जी का धन्यवाद करने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा पहुँच गया। पूज्य गुरु जी का लाख-लाख बार धन्यवाद किया।