Love and compassion is mother

प्रेम और संवेदना है मां Love and compassion is mother
अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस सम्पूर्ण मातृ-शक्ति को समर्पित एक महत्वपूर्ण दिवस है। पूरी जिंदगी भी समर्पित कर दी जाए तो मां का ऋण नहीं चुकाया जा सकता। संतान के लालन-पालन के लिए हर दुख का सामना बिना किसी शिकायत के करने वाली मां के साथ बिताये दिन सभी के मन में आजीवन सुखद व मधुर स्मृति के रूप में सुरक्षित रहते हैं।

मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती। मां नाम है संवेदना, भावना और अहसास का। मां के आगे सभी रिश्ते बौने पड़ जाते हैं। मातृत्व की छाया में मां न केवल अपने बच्चों को सहेजती है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसका सहारा बन जाती है।

Love and compassion is motherसमाज में मां के ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जिन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की जिम्मेदारी निभाई। मातृ दिवस सभी माताओं का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। मां प्राण है, मां शक्ति है, मां ऊर्जा है, मां प्रेम, करुणा और ममता का पर्याय है। मां केवल जन्मदात्री ही नहीं जीवन निर्मात्री भी है। मां धरती पर जीवन के विकास का आधार है। मां ने ही अपने हाथों से इस दुनिया का ताना-बाना बुना है।

आॅल इंडिया इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंस (एम्स) में रुमेटोलॉजी डिपॉर्टमेंट में एचओडी डॉ. उमा कुमार कहती हैं कि इस वक्त हमें अपनी माताओं की फिक्र करनी होगी, चाहे वे घर पर रह रही हैं, या बाहर निकल रही हैं। हम उनकी पसंद का काम करें, ताकि वे खुश और निश्चिंत रहें। डॉ. उमा बता रही हैं कि आप कैसे और किन तरीकों से मां को सपोर्ट, मोटिवेट और अवेयर कर सकते हैं। और मांओं को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

मां से ऐसी बात न करें, जिससे उनमें निगेटिविटी आए

यह मदर-डे कोरोना के बीच गुजर गया। इसलिए आप मां के लिए इस बार पहली जैसी कई चीजें नहीं कर पाएंगे। ऐसे में इस बार मां को खुशी और सुकून देने के लिए कई नई चीजें एक्सप्रेस कर सकते हैं। मां को हाथ से लिखा हुआ कार्ड दे सकते हैं, उन्हें पूरे दिन काम से रेस्ट दे सकते हैं, आप उनके लिए कुकिंग कर सकते हैं, जो चीजें वो पसंद करती हैं, उसे कर सकते हैं। आज के दिन उनके साथ टाइम बिताएं, उनके साथ उनकी पसंद की मूवी देखें, उनसे मेमोरी शेयर करें, उनका बर्डन शेयर करें। इससे मां को खुशी मिलेगी, क्योंकि मां छोटी-छोटी चीजों से ही खुश हो जाती हैं।

बाहर से आने पर उनसे सीधे न मिलें

डॉ. उमा कहती हैं कि एक मां के नाते जो बच्चे लॉकडाउन के चलते घर से दूर फंस गए हैं। उनकी मां सबसे ज्यादा फिक्रमंद हैं। मां सब बच्चों का ख्याल करके चलती हैं, तो जो बच्चे उनके साथ हैं, जो बड़े हैं, जो छोटे हैं, इस वक्त उन्हें इन सभी की चिंता है कि कहीं इन्फेक्शन न हो जाए। मां बच्चों से बार-बार कह रही हैं कि बाहर से कोई चीज न लाएं। इसलिए उनकी बातों को आप मानें, इस वक्त थोड़ा कम खाएं, लेकिन प्रोटेक्शन रखें।

जहां तक हो सके बाहर न जाएं, बाहर से कोई चीज न लाएं। इस वक्त ओल्ड ऐज मदर की बहुत ध्यान रखने की जरूरत है, क्योंकि बुजुर्गों की कोरोना से मृत्युदर सबसे ज्यादा है। इसलिए समझदारी इस बात में है कि ऐसी मांओं के साथ रहने वाले लोग घर में सोशल डिंस्टेंसिंग का पालन करें। यदि आप बाहर से आते हैं तो सीधे आकर बुजुर्ग मांओं से न मिलें।

 

आसपास किसी से भेदभाव न करें

जो मां जरूरी सेवाओं में बाहर हैं, चाहे डॉक्टर्स हैं, पुलिस हैं या मीडिया पर्सन हैं। पहली बात तो ऐसी मांओं को फैमिली सपोर्ट की जरूरत है। उन्हें इमोशनली सपोर्ट की भी जरूरत हैं, क्योंकि वे खुद ही चिंतित हैं कि उनकी वजह से घर में कोई संक्रमित न हो जाए। इसलिए बतौर फैमिली ऐसी मांओं की पोजिशन को समझने को कोशिश करें।

उन्हें पॉजिटिव रखें। उनकी सेहत का भी ध्यान रखें। क्योंकि कई बार उन्हें खाने के लिए भी वक्त नहीं मिल पा रहा है। सोसायटी में रह रहे लोगों की भी जिम्मेदारी है कि ऐसी मांताएं जो उनके आसपास रहती हैं, उनके साथ भेदभाव न करें।

बल्कि उनका और ज्यादा रिसपेक्ट करें। ऐसे मांओं से जुड़ी फैमिली को भी सपोर्ट करें। इसके अलावा मरीजों के परिजन डॉक्टर, हेल्थ वर्कर्स से मिलने पर उन्हें महसूस कराएं कि वे उनके लिए अहम हैं। साथ ही उनसे दूर से ही बात करें, सैनेटाइजर का इस्तेमाल करें। ताकि उन्हें वायरस का खतरा न हो। उन्हें ब्लैकमेल करने की भी कोशिश न करें। प्रेग्नेंट और छोटे बच्चों की मांएं हाई रिस्क कैटेगरी में हैं, इन्हें इम्युनिटी बढ़ाने की सलाह देनी चाहिए।

बच्चों में अच्छी आदतें डालें

डॉ. उमा बताती हैं कि कुछ मांएं बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं, ऐसी मांओं को सुझाव है कि यदि जान है, तो सबकुछ है। यदि बच्चे का एक साल खराब भी हो जाता है, तो इससे कुछ नहीं होगा। सभी बच्चे एक पायदान पर हैं। मांओं को इस वक्त बच्चों को समय के उपयोग करने के लिए बोलना चाहिए। बच्चों को मोटिवेट करें, अच्छी आदतें डालने और अनुशासन सिखाने की कोशिश करें। यह वक्त भी गुजर जाएगा, बहुत दिनों तक रहने वाला नहीं है। इसलिए सबसे पहले बचना जरूरी है।

माइग्रेंट वर्कर्स मांओं को वॉलिंटिरी सपोर्ट की जरूरत

सबसे ज्यादा तकलीफ में माइग्रेंट लेबर्स हैं। इनमें तमाम मांएं भी हैं। सरकार, एनजीओ, सोसाइटी को चाहिए कि उन्हें खाना मुहैया कराएं। उन्हें बताएं कि जहां हैं, वहीं रहें। यदि मास्क नहीं है तो ऐसी मांओं को साड़ी या दुपट्टे को ही तीन बार मोड़कर मुंह पर लपेटने की सलाह दें।

बच्चे को खिलाने से पहले साबुन से हाथ धोएं। भीड़भाड़ से दूर रहें। यदि आपसे रास्ते में ऐसी कोई मां मिल रही है, तो उन्हें समझाएं कि क्या करें, क्या न करें। ऐसे लोगों को अभी वॉलिंटिरी सपोर्ट की जरूरत है। किसी को साबून दे दिया, कपड़े दे दिए, खाना दे दिया। उनके डर को निकालना जरूरी है।

कोरोना काल में मातृत्व दिवस की चंद तस्वीरें

Love and compassion is motherये तस्वीर महाराष्ट्र के औरंगाबाद के एक जिला अस्पताल की है। यहां 23 अप्रैल को एक कोरोना पॉजिटिव मां ने बच्चे को जन्म दिया था। कोरोना की वजह से दोनों को अलग-अलग वॉर्ड में रखा गया था। इसीलिए मां ने वीडियो कॉलिंग के जरिए अपने बच्चे को देखा। महाराष्ट्र पूरे देश में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है।

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Love and compassion is motherराजस्थान के बांसवाड़ा की जाकिया अब्दुल रहमान 13 अप्रैल को अस्पताल में भर्ती हुई थी। वो गंभीर रुप से कोरोना से संक्रमित थी। 5 मई को सिजेरियन डिलीवरी से उसे बेटी हुई। यह उसका पहला बच्चा था। लेकिन, 5 दिनों तक बच्ची को छूना तो दूर, जाकिया उसे देख भी नहीं पाई थी। 5 दिन बाद जब जाकिया ने अपनी बेटी को छुआ तो कहा कि मुझे जन्नत मिल गई। जाकिया ने बेटी का नाम सहर रखा है।

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Love and compassion is motherये तस्वीर राजस्थान के बांसवाड़ा की हैं। यहां के कुशलगढ़ के रहने वाले सैफुद्दीन अली, उनकी पत्नी जैनब, 4 साल की बेटी और माता-पिता सभी की कोरोना रिपोर्ट 9 अप्रैल को पॉजिटिव आई। लेकिन, 9 माह की जायरा की रिपोर्ट निगेटिव थी। नन्ही जायरा संक्रमित मां के बिना नहीं रह पा रही थी। इसलिए जैनब ने पूरी सुरक्षा के साथ जायरा को अपने पास ही रखा। जायरा की कई बार जांच हुई, लेकिन रिपोर्ट निगेटिव ही रही। ये शायद मां की अदृश्य ताकत ही थी, जिसने जायरा को बचाए रखा।

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Love and compassion is motherचंडीगढ़ पीजीआई में कोरोना संक्रमित 18 महीने की बच्ची के साथ 20 दिन तक एक ही बेड पर रहकर भी मां संक्रमण से बची रही। 18 माह की चाहत 20 अप्रैल को संक्रमित मिली थी। 17 दिन में तीन बार बेटी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। लेकिन, मां की रिपोर्ट हर बार निगेटिव रही। बाद में बेटी की भी रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद छुट्टी दे दी गई। पीजीआई इस पर रिसर्च करवाएगा कि इतने करीब रहकर भी मां संक्रमण से कैसे बची रही।

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Love and compassion is motherमां पहले बच्चों को खिलाती है, फिर खुद खाती है। ये तस्वीर इसका सटीक उदाहरण है। कोलकाता की ये तस्वीर 5 अप्रैल को ली गई थी। लॉकडाउन की वजह से मजदूरों और छोटे कामगारों का काम ठप हो गया। लेकिन, उसके बाद भी मां कहीं से खाना लेकर आई और अपनी दोनों बेटियों को दे दिया। बड़ी बेटी भी इतनी समझदार कि पहले अपनी छोटी बहन को खिला रही है।

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