Antibiotics

Antibiotics एंटीबायोटिक: जादुई गोली या बढ़ती मुसीबत?

मौसम बदलते ही कभी-कभी गले में खराश, खाँसी, बुखार और सिर भारी होने जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। ऐसे में अक्सर हमारा पहला ख्याल क्या होता है? ‘अरे! पिछली बार डॉक्टर ने जो नीली-पीली गोली दी थी, उससे आराम मिल गया था… शायद अभी भी बची हो।’

हम मेडिसिन कैबिनेट खोलते हैं, बची हुई एंटीबायोटिक निकालते हैं और बिना सोचे-समझे खा लेते हैं। हमें लगता है कि यह हर बीमारी की जादुई गोली है। लेकिन क्या यह सच है?

सच्चाई यह है कि बिना जरूरत और बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक लेना न केवल बेअसर हो सकता है बल्कि खतरनाक भी है। यह आदत हमें वैश्विक संकट (एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस) की ओर धकेल रही है।


कई लोग बिना डॉक्टर की जाँच के पुरानी बची दवा खा लेते हैं। जबकि हर बीमारी में वही दवा नहीं दी जाती। पिछली बार गले के इन्फेक्शन के लिए काम करने वाली दवा इस बार पेट के संक्रमण पर असर नहीं करेगी। गलत एंटीबायोटिक लेने से फायदा नहीं होता, बल्कि नुकसान ही होता है।

वायरस और बैक्टीरिया:

सब पर एंटीबायोटिक नहीं चलता। यह सबसे बड़ी गलतफहमी है कि एंटीबायोटिक सर्दी-जुकाम में भी असर करती है। सर्दी, खाँसी, फ्लू ज्यादातर वायरस से होते हैं और ज्यादातर एंटीबायोटिक सिर्फ बैक्टीरिया पर काम करती है।

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जब वायरस के लिए एंटीबायोटिक ली जाती है तो:

  • वायरस नहीं मरता।
  • दवा शरीर में बेवजह घूमती रहती है।
  • अच्छे बैक्टीरिया नष्ट हो सकते हैं और बचे हुए बैक्टीरिया को ‘सुपरबग’ बनने का मौका मिलता है।
  • सर्दी-जुकाम 5-7 दिनों में अपने आप ठीक होता है, लेकिन हम अक्सर दवा को श्रेय दे बैठते हैं।

सुपरबग’ कैसे बनता है?

मान लीजिए, शरीर में लाखों बैक्टीरिया हैं। एंटीबायोटिक लेने पर कमजोर बैक्टीरिया मर जाते हैं। कुछ ‘जिद्दी’ या ‘कवच वाले’ बैक्टीरिया बच जाते हैं। ये तेजी से बढ़ते हैं और भविष्य में वही दवा उन पर असर नहीं करती। इन्हीं ताकतवर बैक्टीरिया को सुपरबग्स कहा जाता है। ये डॉक्टरों के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।

Antibiotics एंटीबायोटिक न्यूक्लियर बम जैसा असर:

एंटीबायोटिक सिर्फ बुरे बैक्टीरिया नहीं मारती। यह अच्छे बैक्टीरिया को भी नष्ट कर देती है। इसके दुष्प्रभाव हैं:-

  • पेट की गड़बड़ी, उल्टी, पेट दर्द।
  • दस्त (डायरिया) : गुड बैक्टीरिया खत्म होने से आंतों का संतुलन बिगड़ता है।
  • फंगल इन्फेक्शन – अच्छे बैक्टीरिया खत्म फंगस हावी इन्फेक्शन, मुंह में थ्रश (जीभ पर सफेद परत जमना)।
  • एलर्जी – हल्की खुजली या चकत्तों से लेकर खतरनाक एनाफिलेक्सिस, जिसमें साँस रुकने का खतरा।

इतने बड़े जोखिम सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें लगा ‘एक गोली से क्या फर्क पड़ जाएगा’।

Antibiotics क्या करें? समाधान क्या है?

डॉक्टर की सलाह जरूरी:

डॉक्टर ही तय करते हैं कि बीमारी वायरल है या बैक्टीरियल। कौन सी दवा सही है, डोज और अवधि कितनी हो।

सर्दी-खाँसी में एंटीबायोटिक न लें:

इसके बजाय करें पर्याप्त आराम, पानी, सूप, तरल पदार्थ लें, भाप और गरारे करें। बुखार व दर्द के लिए डॉक्टर की बताई दवा लें।

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एंटीबायोटिक कोर्स पूरा करें:

2-3 दिन में आराम मिलते ही दवा बंद करना गलत है। इससे कमजोर बैक्टीरिया मरते हैं और मजबूत वाले बचकर सुपरबग बन जाते हैं।

दवा शेयर न करें:

आपके लिए दवा सही है, लेकिन वही दवा किसी और के लिए नुकसानदेह हो सकती है। किसी की बची दवा कभी न लें।
एंटीबायोटिक्स चिकित्सा की अनमोल खोज हैं, लेकिन इन्हें सिर्फ जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से, सही दवा और पूरा कोर्स लेना ही सुरक्षित है।