वर्षों की रिसर्च के बाद तैयार की बैंगन की बेहतर प्रजाति
जो खेत से कमाती हूं उसे खेती में लगा देती हूं। मेरा मानना है कि खेती में मालिक-कर्मचारी ढांचा न होकर, पारिवारिक रिश्ते होने चाहिए। लोग मुझे जन्मजात प्रेरणास्त्रोत इसलिए कहते हैं, क्योंकि अपनों के लिए जीने के लिए निजी जरूरतों को नजरअन्दाज करना और साथी किसानों के दु:ख-सुख को अपना बनाना मेरी जीवन शैली है।
-लक्ष्मी लोकुर, किसान।
कर्नाटक के बेलगाम जिले की 47 वर्षीय लक्ष्मी लोकुर ने बैंगन की स्थानीय प्रजातियों पर वर्षों काम करते हुए बेहतर प्रजाति तलाशी। उन्हें सिटा ने 2011 और महिन्द्रा समृद्धि ने 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया। लक्ष्मी लोकुर का जन्म कर्नाटक के बेलगाम जिले के किट्टूर गांव में 1974 की 9 जनवरी को हुआ। पिताजी चिदंबर और मां नलिनी स्वास्थ्य विभाग में काम करते थे। पिताजी का स्वास्थ्य ऐसा नहीं था कि अकेले खेत संभाल सके, इसलिए मां-पिताजी के लिए नवाचारी खेती को अपनाया।
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इन सबके बीच विवाह के लिए सोचने का समय ही नहीं मिला और अब किसानों को कृषि नवाचारों में पारंगत करने, सप्ताह के आखिर में अंग्रेजी बोलना सिखाने, 18-19 वर्ष की उम्र से घर में काम करने वाले सहयोगी की 9 वर्ष की आयु तक की तीन बेटियों और एक बेटे की शिक्षा जैसे कामों में समय फुर्र हो जाता है। वे बताती हैं कि दादाजी अंबन्ना करीब आठ दशक पहले खेती में नवाचारों के लिए जाने जाते थे। 2002 में लोग अकाल के कारण पलायन कर रहे थे पर मैंने पारिवारिक कारणों से नवाचारी कृषि को चुना। इसके लिए बेलगाम की केएलई सोसायटी स्कूल आॅफ ट्रेनिंग एंड रिसर्च से डिप्लोमा लिया। वहां लड़के ही पढ़ सकते थे।
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मेरी जिद के कारण मुझे प्रवेश देना पड़ा। कन्नड़ मराठी, हिन्दी और अंग्रेजी अच्छा बोल लेती हूं।
खेत बने प्रयोगशाला

बैंगन की उन्नत किस्म

इसके फल गुच्छों में ज्यादा लंबे होते हैं। पहली छंटाई बरसात से पहले और दूसरी सर्दी कम होने पर करती हूं। एक कलगी पौधे से तीन पौधों जितनी उपज मिलती है। साथ ही 3-4 वर्ष फलते-फूलते हैं। मैंने बैंगन और केले की मिश्रित इन्टरक्रॉपिंग की। मोनोक्रॉपिंग मुझे पसंद नहीं। इसलिए 15 किस्मों के बैंगन उगा रखे हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से हरा बैंगन लाभकारी है। बगैर भाप के उबाला जा सकता है।
अन्य नवाचार

सम्मान
































































