बाल कथा: क्रिसमस का उपहार
क्रि समस के दिन करीब थे। सभी अपने रिश्तेदारों के लिए अच्छे कपड़े और उपहार खरीद रहे थे। इन दिनों शैफी बहुत उदास थी। उसके मन में भी अच्छे कपड़े पहन कर शहर घूमने की इच्छा थी परंतु यह सब होता कैसे?
शैफी के पिता गुजर गए थे। सिर्फ उसकी मां थीं, जो सिलाई-कढ़ाई करके घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलाती थी। शैफी की मां बहुत दिनों से बीमार थी। काफी रुपए उनके इलाज में खर्च हो चुके थे। अब उनके पास थोड़े रूपए ही बचे थे। शैफी उन रुपयों से कुछ अगरबत्तियां खरीद लाई, फिर वह यह सोच अगरबत्तियां बेचने घर से निकली कि शायद इन्हीं से कुछ रुपए बच जाएं।
सड़क पर खूब चहल-पहल थी। खिलौने और गिफ्ट की दुकानों पर बहुत भीड़ थी। गिफ्ट की दुकानों पर बच्चों की लंबी कतार थी। सभी बच्चे गिफ्ट खरीदने को आतुर थे। शैफी सड़क के किनारे खड़ी हो कर अगरबत्तियां बेचने लगी परंतु उसकी नजर गिफ्ट की एक दुकान पर थी। दुकान के बाहर कांच की अलमारी में सजे उपहार उसे इतनी दूर से भी अच्छी तरह दिखाई पड़ रहे थे। उससे रहा नहीं गया। वह दुकान की ओर चल पड़ी।
अब वह अलमारी में सजे रंग-बिरंगे उपहारों को देख रही थी। उसे सांता क्लॉज वाला गिफ्ट बहुत पसंद आया। वह उसे अपनी बीमार मां को उपहार में देना चाहती थी। उसे दुकान में प्रवेश करने से डर लग रहा था क्योंकि उसकी कमीज फटी हुई थी और उसके पैरों में टूटी चप्पलें थी, फिर भी वह हिम्मत कर भीतर चली गई।
दुकानदार बहुत व्यस्त थे। रंगीन नरम कपड़े पहने हुए बच्चे उनसे उपहार खरीद रहे थे। दुकानदार अपने नौकरों से कह रहे थे, ‘उस हीरे वाले उपहार को ढूंढ़ो। वह हमारे लिए बहुत जरूरी है वरना हमे बहुत घाटा होगा।’ यह सुनते ही कुछ नौकर इधर-उधर हीरे वाले उपहार को ढूंढ़ने लगे।
शैफी को देखते ही दुकानदार ने पूछा, ‘हां, बताओ तुम्हें क्या चाहिए?’
‘सांता क्लॉज।’ शैफी धीरे से बोली।
‘अच्छा, तो वह सांता क्लॉज….।’ कहते हुए दुकानदार सांता क्लॉज वाले डिब्बे को ले कर आया।
‘यह लीजिए आपका उपहार। कीमत सिर्फ दो सौ रुपए’, दुकानदार ने उसे डिब्बा देते हुए कहा।
‘दो सौ रूपए!’ शैफी चौंकी क्योंकि उसके पास तो सिर्फ पचास ही रुपए थे। दुकानदार समझ गए कि इस लड़की के पास पूरे पैसे नहीं हैं। उन्होंने रूखे स्वर में कहा, ‘जब खरीदने की औकात नहीं थी तो यहां हमारा समय बर्बाद करने क्यों आ गई हो? अब जाओ यहां से।’
शैफी की आंखों से आंसू निकल आए। सिर झुकाए वह वहां से बाहर निकल आई। तभी उसे एक हीरे जैसी छोटी-सी चीज जमीन पर पड़ी दिखाई दी। उसे याद आया कि दुकानदार अपने नौकरों से हीरे वाला उपहार ढूंढने को कह रहे थे, उसने हीरे वाला उपहार उठा लिया। उसे ले कर वह दुकानदार के पास गई।
‘हां……हां…… यही तो वह कीमती उपहार है जो खो गया था।’ दुकानदार ने उसे देखते ही कहा, ‘तुमने मुझे बर्बाद होने से बचा लिया। यह लो तुम्हारा ईनाम।’ इतना कह कर दुकानदार ने कुछ रूपए शैफी को देने चाहे।
‘यह तो मेरा फर्ज था। मैं मेहनत से धन कमाना चाहती हूं, इस तरह नहीं।’ कह कर शैफी जाने को हुई।
दुकानदार सोचने लगा कि मैंने इसे बुरा-भला कहा, फिर भी इसने ईमानदारी दिखाई। गरीब है मगर पैसे लेने से इंकार कर रही है। उसने उसे रूकने को कहा। फिर शैफी के पास जाकर बोला, ‘मुझे माफ कर दो बेटी, मैंने तुम्हारी गरीबी का मजाक उड़ाया। तुम यह इनाम न लेना चाहो, न लो कोई बात नहीं। मुझे तुम जैसी एक ईमानदार सहायक की जरूरत है। क्या तुम कल से इस दुकान में नौकरी करोगी?’
शैफी की आंखें भर आईं। सिर हिला कर वह चलने को हुई तो दुकानदार ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘तुम अपना उपहार भूल गई। यह लो सांता क्लॉज और एक हजार रुपए मिठाई खाने और कपड़े खरीदने के लिए।’
वह कुछ बोल पाती, इससे पहले ही दुकानदार बोले, ‘यह ईनाम नहीं है, यह तो मेरी ओर से तुम्हें क्रि समस का उपहार है जैसे एक पिता अपनी प्यारी बेटी को देता है।’
शैफी की आंखों से आंसू गिर पड़े। दुकानदार की आंखें भी नम थीं।
-नरेन्द्र देवांगन