‘ये सच्चा हरद्वार है…’ डेरा सच्चा सौदा सच्चा हरद्वार, रामपुर थेड़ी, (रानियां) सरसा
‘ये आपका सच्चा हरद्वार है जो यहां पर आएगा, सभी की हाजरी लगेगी। यदि यहां की मिट्टी अंधा अपनी आंखों में डालेगा, वह सजाखा हो जाएगा।’ यह वचन फरमाते हुए पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज ने तुरन्त ही वचन को पलट दिया और फिर से फरमाया- ‘जो मिट्टी हुक्म से डाले, ऐसे नहीं।’
यह वाक्या उस समय का है जब पूज्य सार्इं जी रामपुर थेड़ी में सेवादारों द्वारा तैयार की जा रही डिग्गी पर अपनी पावन दृष्टि की रहमत बरसा रहे थे। ‘सच्चा हरद्वार’ में मौजूदा समय में बने सरोवर की जगह पर तब एक कच्ची डिग्गी बनी हुई थी। साध-संगत द्वारा यहां से मिटटी खोद कर डेरे की चारदीवारी की गई थी। पूज्य सार्इं जी ने संगत का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए एक के बाद एक कई वचन फरमाए और संगत को खुशी से मालामाल कर दिया।
सरसा जिले का एक छोटा सा गांव रामपुर थेड़ी जो रूहानियत के नजरीये से बहुत ही गैबी खजाना दबाए हुए है। बेशक यह गांव सरकारी फाइलों में सन् 1950 में बस गया था, लेकिन पूज्य सार्इं जी के पावन पदार्पण के बाद ही यह गांव पूरी तरह से आबाद हो पाया। सरकंडों की झुग्गियों व तिरपालों के नीचे जीवन-बसर करने वाले लोगों के लिए वह सवेर नई किरण बनकर आई जब पूज्य सार्इं जी ने यहां की धरती पर लोगों का भविष्य स्वर्णिम बनाने का वचन फरमाया- ‘मालिक का सुमिरन करना, सभी से प्रेम करना। यहां पर फार्म बन जाएंगे और आपके घरों में अनाज सम्भाला नहीं जाएगा। जिस को मस्ताना सेवाधारी का नाम मिल गया वह कैसे गरीब हो सकता है?’ ग्रामीण बताते हैं कि उस दिन के बाद गांव के हालात इस कदर बदलने लगे कि देखते ही देखते जो परिवार तंगहाली में जीवन गुजार रहे थे, वो अमीरों की श्रेणी में आने लगे। धन-धान्य की इतनी बरसात हुई कि आने वाली कुलों का भी उद्धार हो गया। गांव से जुड़े ऐसे ही रोचक प्रसंगों व प्रमाणों को संजोती सच्ची शिक्षा की मुहिम में इस बार ‘डेरा सच्चा सौदा सच्चा हरद्वार रामपुर थेड़ी’ से रूबरू करवा रहे हैं।
एक सत्संगी ने पूज्य सार्इं जी के चरण कमलों में अर्ज की कि बाबा जी, यहां पर जंगल ही जंगल हैं, खाने को अनाज तक नहीं होता, हम तो भूखे मर जाएंगे। यहां से जमीन बेचकर कहीं और जगह ले लेंगे। शाही हुक्म हुआ-‘नहीं वरी! किसी ने भी यहां से जमीन बेचकर नहीं जाना है, मालिक आपके लिए कोई बंदोबस्त करेगा।
यहां बाग बहारें लग जाएंगी, यहां फार्म बन जाएंगे, अनाज संभाल नहीं पाओगे।’ सार्इं जी ने इस तरह से अनेक खुशियां रामपुर थेड़ी के वासियों को बख्शिश में दी और थोड़ा समय का इंतजार करने को कहा। गांव के मुख्य सत्संगी रहे ज्ञानी करतार सिंह के 61 वर्षीय पुत्र जंग सिंह बताते हैं कि पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज ने रामपुर थेड़ी गांव में दरबार बनाने के लिए सन् 1954 के आस-पास मंजूर कर लिया था, लेकिन यह दरबार सन् 1958 में बनाकर तैयार हुआ। वे शुरूआती दिनों की बात ताजा करते हुए बताते हैं कि गांव में उस समय जगसिंह, मल्ल सिंह व ज्ञानी करतार सिंह ही सत्संगी थे। वे अकसर पूज्य सार्इं जी का सत्संग सुनने के लिए दूर-दराज तक जाया करते। बकौल ज्ञानी करतार सिंह, तीनों सत्संगी सेवा कार्य में भी काफी समय लगाते।
उनके दिल में एक टीस सी रहती थी कि काश! अपने गांव में भी डेरा सच्चा सौदा का दरबार हो, जहां संगत बैठकर गुरु की महिमा गाए। एक दिन ज्ञानी करतार सिंह और मल्ल सिंह सत्संग सुनने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार पहुंचे। उस दिन उन्होंने अपने दिल की अर्ज को शब्दों में व्यक्त करने की हिम्मत जुटा ली और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे कि शहनशाह जी! हमारे गांव रामपुर थेड़ी में भी डेरा बनाओ जी। यह सुनकर पूज्य सार्इं जी दो मिनट के लिए एकदम खामोश हो गए। फिर अचानक वचन फरमाया- ‘तुम्हारे लिए डेरा सच्चा हरद्वार दाता सावण शाह जी से मंजूर करवाया है।
तुसीं सिक्ख (गुरुभक्त) जो होए।’ बताते हैं कि उस समय पूज्य सार्इं जी ने ज्ञानी करतार सिंह और मल्लसिंह को तीन बकरियां बख्शिश की और उन बकरियां के गले में तीस-तीस रुपये के नोटों के हार डाले। और वचन फरमाया, ‘बई! यह तुम्हें लवेरी बकरियां दी। इनका दूध तुम्हारे से मुकेगा नहीं। जो हारों (माला)वाले रुपये हैं, उनका चाय-गुड़ ले लेना। जहां तुम डेरा बनाओ वहां जिंदाराम का डंका बजाना। यह सेवा केवल तुम्हारे लिए है और गैर प्रेमी से सेवा नहीं करवानी।’ इस प्रकार पूज्य सार्इं जी ने रामपुर थेड़ी को एक साथ दोहरी सौगात दी। डेरा भी मंजूर कर दिया और साथ ही उसका नामकरण भी कर दिया।
गांव के बुजुर्ग सत्संगी बताते हैं कि पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज ने यहां अलग-अलग समय में 6 सत्संग लगाए। पहली बार जब पूज्य सार्इं जी गांव में पधारे तो यहां के लोगों के पास रहने को पक्के मकान तक नहीं थे। उन दिनों लोग झोपड़ियां बनाकर रहते थे। जब ग्रामीणों ने घरों में चरण टिकाने की अर्ज की तो पूज्य सार्इं जी ने किसी को भी निराश नहीं होने दिया।
73 वर्षीय साधु सिंह बताते हैं कि उनका पारिवारिक पेशा बेशक ढोलक बजाना था, मेरे पारिवारिक लोगों ने जब घर चलने की प्रार्थना की तो सार्इं जी ने झट से हां कर दी। मुझे याद है, उस दिन पूज्य सार्इं जी घर पधारे तो हमारी झोपड़ी के तिरपाल को ऊपर उठाकर अंदर आए थे। पूज्य सार्इं जी को गरीब-नवाज की उपमा देते हुए वे बताते हैं कि सार्इं जी जितनी बार भी दरबार में आए, हर बार गांव में बहुत से घरों में स्वयं ही पहुंच जाते और परिवारों को खुशियों से मालामाल कर देते। सार्इं जी सन् 1960 में (अप्रैल से पूर्व) भी गांव में पधारे थे। उस दौरान पूज्य सार्इं जी ने रानियां दरबार में बहुत से सेवादारों को शाही खिताब देकर नवाजा था।
रामपुर थेड़ी का यह सौभाग्य ही रहा कि इस छोटे से गांव पर डेरा सच्चा सौदा की तीनों पातशाहियों ने अपार रहमतें लुटाई हैं। पूज्य सार्इं जी के बाद पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने भी यहां 5 सत्संगें लगाई। पूजनीय परमपिता जी पहली बार सन् 1963 में पधारे और दरबार में कच्चा-पक्का सुमिरन हॉल बनाने का वचन फरमाया। सेवादारों ने इस हॉल को अंदर से कच्चा और बाहरी साइड से पक्की र्इंटों से तैयार किया था। वर्तमान में भी यह हॉल अपनी आभा से आश्रम को रोशन कर रहा है। बुजुर्गों के बताए अनुसार, पूजनीय परमपिता जी ने सन् 1972 व 78 में रात्रि का सत्संग किया था। सन् 1990 में विशाल सत्संग फरमाया था, जिसमें नामदान भी दिया था।
तीसरी पातशाही पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने भी यहां पर तीन बार अपने पावन चरणों की छौह प्रदान की है। पूज्य हजूर पिता जी ने यहां दरबार में दो बार रूहानी मजलिस भी लगाई। इस दौरान दरबार में कई विस्तार-कार्य भी शुरू करवाए थे।
रामपुर गांव और थेड़ के बीच में चांद की मानिंद दूधिया रोशनी में चमकता डेरा सच्चा सौदा सच्चा हरद्वार आश्रम क्षेत्र के लोगों के लिए इन्सानियत का पैरोकार बना हुआ है। क्योंकि गांव की अधिकतर आबादी डेरा सच्चा सौदा से जुड़ाव रखती है, जिसके चलते यहां के लोग मानवता भलाई के कार्याें को हमेशा तरजीह देते हैं और एक-दूसरे के हर दु:ख-सुख को सांझा करते हैं।
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तीनों रूहानी बॉडियों के स्पर्श से तैयार हुआ आलीशान दरबार
अपने मुर्शिद जी के मुखारबिंद से डेरा बनाने की मंजूरी मिलने के बाद ज्ञानी करतार सिंह और मल्ल सिंह खुशी में फूले नहीं समा रहे थे। दोनों ने रामपुर थेड़ी पहुंचकर शाही हुक्म सारी साध-संगत को कह सुनाया। उधर साध-संगत में खुशी का संचार हो उठा। मानो उनकी दिली-रीझ बिन मांगे ही पूरी हो गई हो। डेरा बनाने की तैयारी के साथ-साथ जमीन की तलाश भी शुरू हो गई। ज्ञानी करतार सिंह की जमीन गांव के निकट थी। जहां पर करीब ढाई एकड़ में डेरा बनाने का निश्चय किया गया। बताते हैं कि सन् 1965 में जब गांव की चकबन्दी हुई तब इस्तेमाल में यह जगह गांव के लिए सांझी धर्मशाला के लिए अलॉट हो गई।
शुरूआत में पूज्य सार्इं जी के लिए तीन कमरे बनाए गए, जो कच्ची र्इंटों से बने थे। जीवन के 80 बसंत देख चुके हीरा लाल बताते हैं कि मेरी उम्र उस समय आठ वर्ष के करीब थी। डेरा में सबसे पहले दो या तीन कमरे बने थे, जो कच्चे ही थे। जबकि बाकी जमीन के चारों ओर कांटेधार झाड़ियों की बाड़ की गई। उन दिनों गांव के आस-पास के एरिया में जंगल बहुत था, जहां से काटकर यह झाड़ियां लाई गई थी। फिर बाद में कच्ची दीवारें तैयार की गई जो फट्टों की सहायता से निकाली गई थी। इस सेवा में गांव के सत्संगी भाई बहुत सहयोग करते। राजमिस्त्री करतार सिंह भी इसी गांव से रहे हैं, जिन्हें पूज्य सार्इं जी ने हैड मिस्त्री का खिताब दिया था।
उनकी सेवा करीब हर दरबार में रही, उन्होंने यहां पर भी मकान बनाने की खूब सेवा की। दरबार में उस समय एक ही मुख्य द्वार बनाया गया था जो पश्चिम दिशा की ओर था। बेशक डेरा बनाने का कार्य सन् 1958 में पूरा हो गया, लेकिन पूज्य सार्इं जी अपनी हर जीवोद्धार यात्रा के दौरान यहां कुछ ना कुछ निर्माण-कार्य अवश्य नए सिरे से शुरू करवाते रहते। पूज्य सार्इं जी मार्च 1960 में जब गांव में पधारे तो सच्चा हरद्वार में उस समय नौ हजार पक्की र्इंटें पड़ी थीं। उस समय रानियां में भी दरबार बन चुका था। बेपरवाह जी ने सेवादार ज्ञानी करतार सिंह को आवाज लगाई और आदेश फरमाया, ‘‘तुसीं सत्संग-घर बनाना पक्का और कच्चा, रानियां से अच्छा।’’ इस पर सेवादार ज्ञानी करतार सिंह ने अर्ज की, सार्इं जी! हम थोड़े प्रेमी हैं और गरीब हैं। पूज्य सार्इं जी ने उसकी बात को बीच में ही रोकते हुए फरमाया, ‘‘ऐसा वचन कभी भी नहीं कहना। तुसीं तां साहुकार हुए। गरीब है तो बिरला और टाटा, जिनके पास नाम-धन नहीं। जिसको मस्ताना ने नाम-धन दे दिया वह तो साहुकार है।’’ फिर फरमाया, ‘ज्ञानी! जो तूं इन आंखों से देखता है यह तो सब काल की माया है।
तुम्हारा इसमें कुछ भी नहीं। तुम्हारा है सतगुरु और नाम-धन। यह तुम्हारा साथी है दोनों जहानों में।’ इसके बाद सारी संगत ने इकट्ठे होकर डेरा पक्का करना शुरू कर दिया। पक्की र्इंटें कुछ तो पहले की पड़ी थी और शेष अन्य मंगवा ली और जरूरत अनुसार सामान भी लाया गया। इससे पूर्व दरबार के मध्य में मिट्टी खोद कर डेरे की कच्ची चारदीवारी की गई थी, जहां कच्ची डिग्गी बना दी गई। पूज्य सार्इं जी ने उस डिग्गी पर अपनी पावन दृष्टि डालते हुए फरमाया, ‘सुनो वरीे! वह जो हरिद्वार बना था, वहां पर शिव ने भक्ति की थी। ये आपका सच्चा हरिद्वार है जो यहां पर आएगा, सभी की हाजरी लगेगी।’ बाद में उस डिग्गी को सरोवर का रूप दे दिया गया। इसके बाद पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज सन् 1963 के करीब पधारे। उस दौरान डेरा का विस्तार कार्य फिर से शुरू हो गया।
पूजनीय परमपिता जी ने सुमिरन हॉल का निर्माण पूरा करवाया, जिसके बारे में पूज्य सार्इं जी ने वचन फरमाए थे। वहीं सच्चा हरद्वार का मुख्य द्वार, तेरावास के दो कमरे, ऊपर चौबारा, 10-12 अन्य कमरे, दूसरी तरफ एक बड़ा हाल, कुछ कमरों के आगे बरामदा भी बना दिया गया। सब कुछ इतने कम समय में तैयार हुआ कि देखने वाले दंग रह गए। कुछ ही दिनों में एक आलीशान दरबार की तस्वीर उभर कर सामने आ गई, जो हर आने-जाने वाले का ध्यान अपनी ओर खींचने लगी। आस-पास के गांवों के लोग भी इस दरबार में नियमित आने लगे और सजदा करने लगे।
सन् 1990 के बाद भी दरबार में काफी कुछ बदलाव देखने को मिला। पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अपनी नजरशानी में कई नए कार्य शुरू करवाए, जैसे संगत की सुविधा के लिए 80 गुणा 120 स्केयर फुट का शैड बनवाया, वहीं पूर्व दिशा की दीवार भी पक्की र्इंटों से तैयार करवाई, जो पहले फट्टों के द्वारा कच्ची बनाई गई थी। पूज्य हजूर पिता जी के दिशा-निर्देशन में यहां एक लंगर घर भी बनाया गया, जिससे यहां आने वाले सेवादारों व संगत को लंगर की सुविधा सुगमता से हासिल होने लगी।
पूज्य सार्इं जी जीप पर सवार होकर पहली बार पधारे दरबार
सच्चा हरद्वार के प्राथमिक चरण में तैयार होने पर ज्ञानी करतार सिंह अपने साथ दो अन्य सत्संगी भाईयों को लेकर डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में पहुंच गया। उस समय दरबार में महीने के आखिरी रविवार का सत्संग होना था। सत्संग की समाप्ति पर इन सत्संगी भाईयों ने पूज्य सार्इं जी के चरणों में अर्ज की कि सार्इं जी, रामपुर थेड़ी गांव में भी सत्संग फरमाओ जी। पूज्य सार्इं जी ने झट से सत्संग मंजूर कर दिया तो उन सेवादारों की खुशी का कोई ठिकाना ना रहा। वे खुशी-खुशी गांव लौटे और गांववासियों को इस बारे में बताया।
सत्संग की तारीख निश्चित होने का ग्रामीणों ने अपने-अपने तरीके से खूब जश्न मनाया। उधर आस-पास के गांवों में सत्संग को लेकर खूब मुनियादी कराई गई। बता दें कि यह इलाका नामधारी सिक्खों का है। सेवादारों ने स्वयं गांव-गांव जाकर नामधारी पंथ से जुड़े लोगों से भी सत्संग में पहुंचने की प्रार्थना की। ज्यों ही निश्चित दिन आया, बेपरवाह मस्ताना जी महाराज जीप से रामपुर थेड़ी आ पधारे। संगत ने बैंड-बाजों के साथ बड़े ही हर्षोल्लास से स्वागत किया। कोई भंगड़ा डाल रहा था, तो कोई गीत, तो कोई ढोल बजाए। मानो पूरी कायनात ही पूज्य सार्इं जी के स्वागत को आतुर हो गई थी। सत्संग आरम्भ हो गया। पहले सत्संग पर ही बड़ी संख्या में साध-संगत आई।
विशेषकर नामधारी समुदाय से जुड़े लोगों की संख्या बहुत थी। पूज्य सार्इं जी की आज्ञानुसार नामधारी संगत को आगे स्टेज के निकट बैठाया गया। सत्संग के दौरान पूज्य सार्इं जी ने अनेक विचित्र खेल दिखाकर लोगों को राम नाम की बात सुनाई। पूज्य सार्इं जी ने उस दिन बड़े जोश और मस्ती में आकर सत्संग फरमाया। फरमाया, ‘‘सुनो वरी! जो गुरु आपको गुरुमंत्र दे, उस मंत्र को श्रद्धा से खूब जपो। अन्तर-हृदय में गुरु का स्वरूप देखो। यदि अन्तर-हृदय में गुरु स्वरूप के दर्शन हों तो समझो गुरु पूरा है। यदि अन्तर-हृदय में स्वरूप दिखाई न दे तो समझो गुरु अधूरा है। जन्म न हार लैणा ऐवें भुलेखेआं विच फस के, इह मानस देह दुबारा नहीं मिलनी।’
अब दुबारा फिर गरीब मस्ताना 40 लाख योजन ऊपर जाए।’
सत्संग के पश्चात् पूज्य सार्इं जी नाम देने के लिए मूढ़े पर विराजमान हो गए। गेट बंद कर दिया गया। प्रेमी खुशी राम की ड्यूटी गेट पर थी। ज्ञानी करतार सिंह मूढेÞ के पास बैठा था। सार्इं जी ने कपड़ा ऊपर लिया और अन्तर्ध्यान हो गए। इतने में खुशी राम ने चुपके से नाम लेने वाले एक और जीव को अन्दर भेज दिया। सार्इं जी ने ज्ञानी करतार सिंह से पूछा, ‘ईश्वर, परमात्मा का सिंहासन 40 लाख योजन ऊँचा है?’ तो ज्ञानी जी ने हां में उत्तर दिया। फिर फरमाने लगे, ‘देखो बई! गरीब मस्ताना सेवाधारी 40 लाख योजन वापिस आया। बाद में खुशी राम ने एक जीव और अन्दर भेज दिया। अब दुबारा फिर गरीब मस्ताना 40 लाख योजन ऊपर जाए।’ शहनशाह जी उस जीव के लिए फिर अन्तर्ध्यान हुए और नाम की बख्शिश की। उस दिन 50 जीवों ने नाम-दान प्राप्त किया।
यहां पर जिन्दाराम का जाल तना हुआ है
एक दिन पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज अपनी मौज में विराजमान थे। तभी सत्संगी ज्ञानी करतार सिंह ने अपने मन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए पूछा कि पूज्य दातार जी, कुछ लोग गेहंू एकत्रित कर किसी जगह भिजवाने की बात कर रहे हैं और कह रहे हैं कि कभी भी कोई रौला हो सकता है इसलिए मदद करें। बता दें कि उस समय भी देश बंटवारे की आग में झुलस रहा था। सत्संगी की यह बात सुनकर पूज्य शहनशाह जी ने फरमाया- ‘जब रौला (लड़ाई-झगड़ा) पड़ जाए तो तुम सभी प्रेमियों ने सच्चा हरद्वार धाम में आ जाना, यहां पर जिन्दाराम का जाल तना हुआ है। न तो यहां पर बम्ब गिरे और न यहां पर गोली का फायर लगे। तुमने यहां पर बैठकर नाम का सुमिरण करना है। तुम्हारा सतगुरु तुम्हारे साथ है।’
…यहां पर तो फार्म बन जाएंगे!
पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज रामपुर थेड़ी में प्रवास के दौरान अकसर पास लगते थेड़ पर भजन-सुमिरन के लिए जाया करते थे। एक दिन सार्इं जी थेड़ पर विराजमान थे। वहां पर प्रेमी ने अर्ज की, सार्इं जी! हमारी धरती में कोई फसल नहीं होती। इस गांव की निचली सतह वाली भूमि में घग्गर का पानी फसलों को उजाड़ देता है। बाकी भूमि बंजर है। उसमें कोई उपज नहीं होती। जब प्रेमी भाई यह अर्ज कर रहा था उस समय पूज्य सार्इं जी का पवित्र मुख पूर्व-दक्षिण दिशा की ओर था। अपने दाएं हाथ से अपनी शाही सोटी को एक ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए फरमाया, ‘मालिक का सुमिरन करना, सभी से प्रेम करना। यहां पर फार्म बन जाएंगे और आपके घरों में अनाज सम्भाला नहीं जाएगा। जिस को मस्ताना सेवाधारी का नाम मिल गया वह भला कैसे गरीब हो सकता है?’ व्योवृद्ध हीरा लाल बताते हैं कि उस समय घग्गर नदी का पानी खुला फिरता था, बारिश के दिनों में यह पानी पूरे एरिया में फैल जाता था, जिसके चलते फसलें नष्ट हो जाती थी। उस दौरान यहां तारामीरा जैसी हल्की तेलीय फसलें ही होती थी। चारों तरफ जंगलनुमा पेड़ व झाड़ियां ही दिखाई देती थी। जैसे ही शाही वचन हुए उसके कुछ समय बाद घग्गर के पानी को सीमित क्षेत्र में बांधने की सरकारी योजना तैयार हो गई। जो जमीन कभी अनउपजाऊ और बंजर थी, वह अब सोना उगलने लगी थी। ऐसा समय भी आया जब यह क्षेत्र धान और गेहूं उत्पादन में हरियाणा प्रदेश में अव्वल रहा। उन दिनों जो सत्संगी यहां से जमीनें बेचकर कहीं ओर जाने की बातें कह रहे थे, उन्हें पूज्य सार्इं जी ने इस क्षेत्र को न छोड़कर जाने की सलाह दी। आज वही लोग सैकड़ों एकड़ भूमि के मालिक बने हुए हैं। रामपुर थेड़ी गांव ही नहीं, अपितु पूरा क्षेत्र अब धनाढय कहलाने लगा है।
सार्इं जी, भूत-प्रेत पीछे से आवाजें लगाते हैं!
73 वर्षीय साधू सिंह बताते हैं कि पूज्य सार्इं मस्ताना जी रामपुर थेड़ी में पधारे हुए थे। उस समय गांव में आबादी बहुत ही कम थी, जो लोग रहते थे वे भी झोपड़ी नुमा घरों में गुजारा कर रहे थे। पास में ही टीले नुमा थेड़ थी, बताते हैं कि उस समय थेड़ पर भूत-प्रेतों का वास माना जाता था, इसलिए लोग उधर बहुत कम ही जाया करते थे। खेतों में रात्रि के समय पानी लगाने के समय भी कुछ लोग मिलकर वहां जाते। थेड़ पर जहरीले सांप, बिच्छू जैसे जीव रहते थे।
एक दिन गांव की महिलाओं ने पूज्य सार्इं जी से अर्ज की कि बाबा जी, जब भी थेड़ पर जाती हैं तो भूत-प्रेत पीछे से आवाजें लगाते हैं, यह सुनकर बहुत डर लगता है। यह सुनकर पूज्य सार्इं जी एक बार मुस्कुराए, फिर फरमाया- चलो वरी, अज्ज वहीं सत्संग लगाते हैं। उस दिन सार्इं जी ने थेड़ पर सत्संग लगाया और वचन फरमाया कि भूत-प्रेत तो क्या, यहां के हर जीव-जंतु का भी उद्धार हो गया। सार्इं जी ने वहां गुरुमंत्र भी दिया। उसके बाद थेड़ के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा। आज वही थेड़ गांव का रूप धारण कर चुका है। यहां पर गुलबहारें खिली हुई हैं।
चल फिर तोली जा सारी उम्र
सत्संग के बाद एक दिन सार्इं जी दरबार से बाहर वाली साइड में आ गए, जहां फलों व मिठाइयों की बहुत सी रेहड़ियां लगी हुई थी। सार्इं जी जिस भी रेहड़ी के पास जाएं उसको कह देते कि बोल भई! सारी रेहड़ी की कितनी कीमत है, वह बता देते और उसका फल व मिठाई संगत में बांट देते। ऐसे करते-करते पूज्य सार्इं जी गुरबचन सिंह की रेहड़ी के पास आ पहुंचे, जिसने रेहड़ी पर जलेबियों का बड़ा सा ढेर लगाया हुआ था। सार्इं जी ने फरमाया- मांगो भई, जो कीमत मांगनी है, इक वारी च ही मंग ला, केहड़ा बारी-बारी तोलुगा। लेकिन वह बोला कि नहीं बाबा जी, मैं तो तोल-तोल कर ही बेचूंगा। सार्इं जी ने फिर से फरमाया- कहां सारा दिन तोलता रहेगा, इक बारी’च ही मंग ला जिन्हें पैसे मंगने हैं। लेकिन वह नहीं माना। आखिरकार पूज्य सार्इं जी के मुखारबिंद से वचन निकला कि, चल फिर तोली जा सारी उम्र। बताते हैं कि उक्त व्यक्ति जीवनभर रेहड़ी तक ही सीमित रह गया।
मनमोहक शाही अंदाज
बगीचे में आराम फरमाते हुए पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज। तस्वीर में शहनशाह जी की चरणपादुकाएं व डंगोरी भी नजर आ रही है।
यह दुर्लभ तस्वीर डेरा सच्चा सौदा सच्चा हरद्वार दरबार के सेवादारों द्वारा उपलब्ध करवाई गई।
दरबार में बने सुमिरन हॉल का मुख्य द्वार।
गजब: जब छोटे से ट्रंक (संदूख) से निकली 40 पगड़ियां और एक थान, फिर भी बंद ना होये
‘जद सानूं सत्संग दा पता चलदा तां बड़ी लग्न लग जांदी। मैं ते मेरी बैण (बहन) दोवां ने घरों भज्ज जाणा, ते सत्संग ’च पहुंच जांदियां सी। घर दे बुहे, लत्ते भी उंज ही छड जांदियां सी। बस दिल ’च इक ही गल्ल हुंदी कि बाबा मस्ताना जी दी सत्संग सुणनी है।’ यह वाक्या बताते हुए 75 वर्षीय माता लक्ष्मी देवी का चेहरा खुशी से दमक रहा था। उन्होंने बताया कि पूज्य बाबा मस्ताना जी जब रामपुर थेड़ी में सत्संग करने आए तो बड़े चोज दिखाए। बाबा जी की जीप में एक ट्रंक (छोटा बॉक्सनुमा संदूख)भी था, जिसमें कपड़े भरे हुए थे।
सत्संग दौरान सार्इं जी ने उस ट्रंक को स्टेज पर मंगवाकर सेवादारों को कपड़े बांटने शुरू कर दिए। सार्इं जी के पूछने पर बाबू खेम चंद ने 40 सेवादारों के नाम लिखवाए। उस ट्रंकी में से एक पगड़ी निकलें और बारी-बारी से सत्संगियों को बंधवा दें। एक प्रेमी ने सतगुरु की उपमा में शब्द बोला तो पूज्य सार्इं जी ने खुशी में आकर कपड़े का थान उसके सिर पर रख दिया। माता लक्ष्मी देवी बताती हैं कि देखने वालों के लिए यह हैरानीजनक था कि उस छोटी सी ट्रंकी में से 41 पगड़ियां और एक पूरा थान निकाला जा चुका था। हैरानी की सीमा तब तो और भी बढ़ गई जब कपड़ा बांटने के पश्चात उस ट्रंकी को बंद करने लगे तो वह बंद ना हो। एक सेवादार तो उस ट्रंकी के ऊपर भी चढ़ गया, लेकिन वह फिर भी कपड़े के दवाब के चलते बंद नहीं हुई। आखिरकार पूज्य सार्इं जी ने अपने हाथ का स्पर्श दिया तब कहीं जाकर वह ट्रंकी बंद हो पाई। तब पूज्य मस्ताना जी महाराज ने फरमाया, ‘यह दाता सावण शाह जी का अखुट खजाना है खत्म नहीं होगा।’ सार्इं जी की इस लीला को देख कर सब दंग रह गए।
लक्ष्मी देवी के अनुसार, पूज्य सार्इं जी सत्संग के दौरान नये-नये नोट बांटते, कभी कुत्ते के गले में नोटों की माला पहनाकर उसे भगा देते, माता-बहनों को भी नोट बांटते। उस दिन स्टेज पर विराजमान बाबा मस्ताना जी ने एक पुस्तक अपने हाथ में उठाई और उसमें से नए-नए नोट निकालने लगे। सार्इं जी ने इनमें से दो-दो नोट ढोल बजाने वालों को और बाकि अन्य लोगों को बांट दिए।
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज द्वारा पहनाए गए नोटों के हार के दुर्लभ नोट, जिन्हें सचखंडवासी हैड मिस्त्री करतार सिंह का परिवार संजोय हुए है।
दात के नोटों से ही चलता था खर्च, आज भी प्रेम से संजोय है परिवार
संत-महात्मा त्रिरकालदर्शी होते हैं, उनकी दूरदृष्टि आने वाले हर अच्छे-बुरे समय को भांप लेती है, लेकिन उसका पूरा भेद कभी नहीं खोलते। पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज ने आने वाले समय के बारे में भी काफी हद तक इशारा कर दिया था, लेकिन कोई उसे समझ नहीं पाया। ऐसे वाक्या के साक्षी रहे करतार सिंह के पौत्र गुरजीत सिंह बताते हैं कि पूज्य सार्इं जी के बारे मेें दादा जी बहुत सी बातें सुनाया करते। एक दिन उन्होंने बताया कि पूज्य सार्इं जी ने एक बार मौज में आकर वचन फरमाया था कि ऐसा समय भी आएगा, जब डेरा सच्चा सौदा पर आंधियां चलेंगी, झखड़ झुलेंगे। हर कोई गुरु बन बैठेगा, लेकिन बचेगा वही जो मौज के हाथ चढ़ेगा, नहीं तो नरकों में जाएगा।
पूज्य सार्इं जी ने करतार सिंह को हैड मिस्त्री का खिताब भी दिया था, क्योंकि वे राजमिस्त्री का कार्य करते थे। वर्तमान में गांव भंगीदास गुरजीत सिंह बताते हैं कि उन दिनों में दादा जी अकसर सेवा में ही रहते। कई बार दादी जी उनको लेने के लिए डेरा सच्चा सौदा दरबार में चली जाती तो पूज्य सार्इं जी उनको नोटों के हार पहना देते और वचन फरमाते कि इनको खुल्ला बरतना है। असल में उन नोटों से ही घर का पूरा खर्च चलता था, क्योंकि दादा जी का अधिकतर समय सेवा में ही गुजरता था। दात के रूप मेें मिले उन नोटों में से कुछ आज भी हमारे पास प्रेम निशानी के रूप में मौजूद हैं।
‘‘पुत्तर बस वाले ने किराया तो ज्यादा ले लिया, पर इसमें तुम्हारा पता नहीं कितना भला हो जाएगा।’’
पूज्य सार्इं जी उन दिनों रामपुर थेड़ी में पधारे हुए थे। सत्संग सुनने की तलब हर किसी को लगी रहती थी। कंबोज बिरादगी के कई गणमान्य लोगों ने एकत्रित होकर रानियां में सत्संग करवाने की बात रखी। श्रीराम कंबोज बताते हैं कि उस समय मेरे पिता बागराम सहित दर्जनभर लोग यह अर्ज लेकर रामपुर थेड़ी दरबार में पहुंचे। सार्इं जी उस समय तेरावास में विश्राम फरमा रहे थे। उन दिनों दरबार में हरबंस सिंह खजांची सेवादार हुआ करता था, उसका पूज्य सार्इं जी से बेहद प्यार था। जब उसे पता चला कि ये लोग पूज्य सार्इं जी को रानियां ले जाने के लिए आए हैं तो उसके मन में खोट जाग गया कि ये तो मेरे सार्इं जी को दूर ले जाएंगे। जब उन लोगों ने हरंबस सिंह से बाबा जी से मिलवाने की बात कही तो उसने कड़क सी आवाज में बोला कि नहीं, नहीं, सार्इं जी आज बहुत नाराज हैं, बहुत गर्म हैं किसी से भी नहीं मिलेंगे। यह सुनकर वे लोग घबरा गए कि अब तो शायद ही मिलना होए।
इसी उधेड़-बुन के बीच वे साइड में होकर बैठ गए। थोड़े समय बाद ही पूज्य सार्इं जी को थेड़ पर सत्संग करने के लिए जाना था। जैसे ही सार्इं जी तेरावास से बाहर आए तो उनसे मिलने के लिए ये लोग कभी आगे को आएं तो कभी पीछे को जाएं। पूज्य बाबा जी यह सब मंद-मंद मुस्कुराते हुए देख रहे थे। फिर उनकी ओर इशारा करते हुए वचन फरमाया- ‘आओ वरी! आगे आओ।’ करबद्ध प्रार्थना करते हुए उस प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि सार्इं जी रानियां में भी सत्संग करो जी। अज्ज करो तुहाड़ी मर्जी है, कल करो तुहाड़ी मर्जी है। पर सत्संग जरूर करो जी। पूज्य बाबा जी ने मजाकिया अंदाज में पूछा- ‘ऐसी बात है तो वरी, आगे क्यों नहीं आए, पीछे को क्यूं हट रहे थे, कदी खजांची दे दाबे थल्ले ता नहीं आ गए? कोई ना बेटा चलते हैं, तुम लोग साधन (वाहन) की व्यवस्था करो। थेड़ पर जा आएं फिर चलेंगे।’ श्रीराम कंबोज बताते हैं कि इसके बाद हमारे बुजुर्ग साधन करने के लिए रानियां वापिस आ गए, क्योंकि उन दिनों रानियां में एक ही बस थी जो सरसा शहर में आवाजाही करती थी। कुदरती वह बस चौंक पर ही खड़ी मिल गई।
जब इस बारे बात की तो उसने 20 रुपये किराया मांगा। हालांकि उस समय यह किराया बहुत था, लेकिन सबके दिल में सत्संग करवाने की लगन लगी हुई थी, सो हामी भर ली। बस लेकर रामपुर थेड़ी दरबार पहुंच गए। अर्ज की कि बाबा जी बस आ गई है। पूज्य सार्इं जी ने फरमाया-‘चलो भई, चलते हैं।’ पूज्य सार्इं जी के साथ काफी संगत भी बस में सवार हो गई। जब पूज्य सार्इं जी ने पूछा कि बस वाले ने कितना किराया लिया है तो सेवादारों ने बताया कि 20 रुपये। रास्ते में पूज्य सार्इं जी ने वचन फरमाया- पुत्तर, बस वाले ने किराया तो ज्यादा ले लिया, पर इसमें तुम्हारा पता नहीं कितना भला हो जाएगा। यानि सत्संग में बहुत से जीवों का उद्धार होने वाला था। इस प्रकार पूज्य सार्इं जी ने कंबोज बिरादगी का मान बढ़ाते हुए वहां सत्संग लगाया और लोगों को नाम दान भी दिया।
इसनूं लैके जाओ, ऐह सुमिरन में खरड़ पांदा है
हीरा लाल बताते हैं कि एक बार पूज्य सार्इं जी यहां दरबार में पधारे हुए थे। उस समय पूज्य सार्इं जी का उतारा चौबारे में था। रात्रि में सत्संग था। मेरे पिता जी मुझे भी साथ ले आए, चलो यह भी कोई वचन सुन लेगा। सत्संग चलता रहा, बाद में पूज्य सार्इं जी ध्यान मुद्रा में बैठ गए। मैं भी अपने पिता जी की गोद में बैठा-बैठा सो गया। मुझे नींद इतनी गहरी आ गई कि मेरे खुर्राटे लगने शुरू हो गए। खर्राटों की आवाज के कारण पूज्य सार्इं जी का ध्यान एकाग्र नहीं हो पा रहा था। हुक्म फरमाया- ‘इसनूं लैके जाओ यहां से, इह सुमिरन में खरड़ (ध्यान भटकाना) पांदा है।’ यह सुनकर वहां बैठी संगत बहुत हंसी और फिर मेरे पिता जी मुझे घर लेकर आ गए।
प्रेमियों के लिए यह सच्चा हरद्वार है
पूज्य सार्इं मस्ताना जी ने इस दरबार का सच्चा हरद्वार नामकरण करते हुए बहुत सारे वचन फरमाए थे। इस दरबार में बकायदा एक सरोवर भी बनाया गया है, जिसको लेकर रामपुर थेड़ी ही नहीं, अपितु आस-पास के गांवों के लोगों में गहरी आस्था है। 75 वर्षीय सांझा राम एवं हरनाम सिंह का कहना है कि दरबार में बने सरोवर की पवित्रता को लोग सजदा करते हैं। सत्संगी लोग अकसर अपने परिजनों के मरणोपरांत उनकी अस्थियों के विसर्जन के बाद यहां स्नान करने को उत्तम मानते हैं। पहली दोनों पातशाहियों के समय में ऐसी धारणा सत्संगियों के दिलों में बन गई थी कि यह हमारे लिए वास्तव में सच्चा हरद्वार है। किंतु पूज्य हजूर पिता जी ने इस रीत में बदलाव लाते हुए यहां स्रान बंद करवा दिया, कि कहीं लोग अंधविश्वासी न बन जाएं।
रूहानी ताकतों की एकसारता का जीवंत उदाहरण
पूज्य सार्इं जी और पूज्य हजूर पिता जी ने चखा है माता मेहरां बाई के हाथों से तैयार किए मक्खन का स्वाद
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने वचन फरमाए थे कि ‘हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे’। इसकी बानगी रामपुर थेड़ी में प्रत्यक्ष देखने को मिली, जब 90 वर्षीय माता मेहरां बाई ने बड़ी दिलचस्प बात सुनाई। मूलरूप से पाकिस्तान के बैलगंज क्षेत्र से जुड़ाव रखने वाला मेहरांबाई का परिवार आजादी के बाद भारत में आ बसा। वे बताती हैं कि उनकी शादी सत्संगी परिवार में हो गई, जिसके चलते 22 वर्ष की आयु से ही वह डेरा सच्चा सौदा की सेवा में लग गई। पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज से गुरुमंत्र लेकर मेहरां बाई की किस्मत तो जैसे और भी खिल उठी। हमेशा सेवा की लगन रहती। डेरा सच्चा सौदा में सेवा के दौरान उनके पति बूटा राम हमेशा सहयोग करते।
पूज्य सार्इं जी ने एक दिन अपनी मौज में आकर बूटा राम को बुलाकर एक गाय दात में दे दी और फरमाया कि आपके परिवार की सेवा बड़ी महान है। उस गाय को हम आदर सहित घर ले आए और खूब सेवा करने लगे। एक बार सार्इं जी ने मेरे पति को बुलाया और फरमाया कि ‘असीं बीमार हां, सानूं गऊ दा मक्खन ल्या के देयो’। बीमारी का तो बहाना था, शायद हमारा कोई बुरा कर्म काटना था।
यह बात जब मेरे पति ने घर आकर बताई तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा। मैं सुबह 3 बजे उठती और गाय के दूध को बिलोकर उससे मक्खनी तैयार करती। मेहरां बाई बताती हैं कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मैं सिर्फ पूज्य सार्इं जी का नाम ही जपती रहती। काफी दिनों तक मक्खन तैयार कर भिजवाया गया। पूज्य सार्इं जी बहुत प्रसन्न थे। एक दिन फरमाने लगे- वाह बई, तुसीं बड़ा मक्खन खवाया है, जद असीं तीजी बॉडी विच आवांगे, फिर तों मक्खन खावांगे। माता मेहरां बाई बड़े गर्व के साथ बात को आगे बढ़ाती हुई कहती हैं कि बाबा मस्ताना जी मुड़ तों आए होये ने हजूर पिता जी बण के। बता दें कि पूज्य हजूर पिता जी ने रूहानी रूबरू नाईट कार्यक्रम के शुरुआती चरण में माता मेहरां बाई से मक्खन मंगवाकर सारी संगत के सामने खाया था।
पूजनीय परमपिता जी ने यहां सन् 1990 में फरमाया सत्संग
संत महात्मा हमेशा जीव को काल के चक्र से बचाने के लिए ही जुगत बिठाते हैं। डेरा बनाना, वहां सत्संगें लगाना यह जीवोद्धार का ही एक माध्यम होता है। रामपुर थेड़ी गांव में बना डेरा सच्चा हरद्वार भी डेरा सच्चा सौदा की तीनों रूहानी ताकतों के पावन स्पर्श से समय-समय पर महकता रहा है। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह महाराज ने यहां पर सन् 1990 में विशाल रूहानी सत्संग किया था, जिसकी चर्चा आज भी क्षेत्र में सुनने को मिलती है। यह सत्संग साध-संगत के रिकार्ड इकट्ठ से भी जाना जाता है। गांववासी बताते हैं कि पूजनीय परमपिता जी ने जब यहां अपना 5वां सत्संग लगाया तो क्षेत्र में ऐसा प्रेम-प्यार का समुद्र उमड़ा कि सेवादारों के प्रबंध भी बौने साबित हो गए। आस-पास के गांवों से बड़ी गिनती में संगत पहुंची। रानियां तक जाम लग गया।
वाहनों की कतारें तो देखते ही बन रही थी। बताते हैं कि यह सत्संग सन् 1989 में होना निश्चित हुआ था, लेकिन बाद में कैंसल कर दिया गया। पूजनीय परमपिता जी ने एक साल बाद फिर से सत्संग मंजूर किया और रामपुर थेड़ी पधारे। उस दिन सत्संग में भजन ‘करदा नहीं जेहड़ा बंदा नाम दा वपार जी, बंदा अख्वाउण दा की ओहनूं अधिकार जी’ पर व्याख्या की और काल को जमकर लताड़ लगाई। पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया- ‘जो व्यक्ति इस जीवन में नाम का व्यापार नहीं करता, वह इन्सान कहलाने के लायक नहीं है। अपनी औलाद और पेट की भूख मिटाने के लिए तो पशु-पक्षी भी काम धंधा करते हैं, फिर इन्सान में क्या फर्क हुआ?’
पूजनीय परमपिता जी ने सत्संग दौरान कामी और क्रोधी लोगों को बड़ी लाहनतें दी, जिसके चलते सत्संग की समाप्ति पर बड़ी संख्या में लोगों ने गुरुमंत्र ले लिया। ग्रामीण क्षेत्र में ऐसा सत्संग शायद पहली बार हुआ था, तभी लोगों के जेहन में आज भी उसकी याद ताजा हो उठती है। बता दें कि पूजनीय परमपिता जी ने सन् 1972 व 78 में ज्ञानी करतार सिंह के घर रात्रि का सत्संग भी फरमाया था।
भगता ऐथों पासे हो जा, कंध डिगण वाली है!
सतगुरु अपने जीव की हर समय संभाल करता है, बस उसका अपने सतगुरु के प्रति विश्वास दृढ़ होना चाहिए। ऐसा ही एक वाक्या रामपुर थेड़ी में भी देखने को मिला। ज्ञानी करतार सिंह के पुत्र जंग सिंह बताते हैं कि वर्ष 1968-69 के आस-पास की बात है। उस दिन आंधी इतनी तेज थी मानो पेड़-पौधों को उखाड़कर अपने साथ ले जाएगी। उन दिनों डेरा सच्चा हरद्वार का मुख्य गेट कुछ समय पूर्व ही पक्का बनाया गया था। गेट के साथ गांव वाली साइड में लंबी दीवार भी निकाली हुई थी। उस दिन तेज आंधी के साथ बारिश भी जबरदस्त हो रही थी। इसी तूफान के बीच एक व्यक्ति बचता-बचाता हुआ उस दीवार की ओट (सहारा) लेकर खड़ा हो गया, ताकि आंधी के रूकने के बाद वह सुरक्षित अपने घर चला जाएगा। उधर आंधी थमने का नाम नहीं ले रही थी।
इसी दरमियान उस व्यक्ति को एक आवाज सुनाई दी कि ‘भई भगता! ऐथों पासे हो जा, ऐह कंध डिगण वाली है’। यह आवाज सुनकर वह एकदम चौंक उठा। तेज हवाओं से बचने के लिए उसके पास दीवार ही एकमात्र सहारा थी। तभी उसके मन में ख्याल आया कि अगर दीवार गिर गई तो उसका क्या बनेगा? यह सोचते हुए वह दीवार से थोड़ा दूर ही गया था कि इतने में दीवार धड़ाम से जमीन पर आ गिरी। जान बची तो लाखों पाए, उसे अहसास हुआ कि इस अदृश्य आवाज के पीछे अवश्य कोई ताकत छिपी है। उस ताकत का अहसास उसे पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का सत्संग सुनकर हुआ, जिन्होंने उसकी संभाल करते हुए जान बख्शी। स. जंग सिंह बताते हैं कि दीवार गिरने की घटना के बाद सभी सेवादारों ने गेट का नए सिरे से निर्माण करने का फैसला लिया। जिसके बाद एक भव्य गेट बनाया गया।
14 प्रकार के फलों की खुशबू से महकता है सच्चा हरद्वार
ढाई एकड़ भूमि में बना यह दरबार फलों की खुश्बू से भी महक रहा है। आस-पास के क्षेत्र में भी इस बात की चर्चा आम रहती है कि सच्चा हरद्वार दरबार में हर प्रकार के फलों के पौधे देखने को मिल जाते हैं, चाहे गर्मी हो या सर्दी। इस बारे में सेवादारों ने बताया कि दरबार की खाली भूमि पर 14 तरह के फलों के अलग-अलग पौधे लगाए गए हैं जिनमें संतरा, आडू, आम, अनार, जामुन, नींबू, चीकू, बेर आदि शामिल हैं। इनमें बहुत से पौधों से भरपूर फल भी हासिल हो रहा है। दरबार में सिंचाई के लिए नहरी पानी की व्यवस्था उपलब्ध है। पूज्य हजूर पिता जी के पावन दिशा-निर्देशन में यहां ट्यूबवैल भी लगाया गया है।
तीनों रूहानी बॉडियों के वचन हुए सत्य
‘यहां आलीशान गेट बनेगा’
सच्चा हरद्वार में एक दिन पूज्य सार्इं जी मूढे पर विराजमान थे, तभी मौज में आकर वचन फरमाया-यहां इतना आलीशान गेट बनेगा कि देखने वालों की पगड़ी ढह जाएगी यानि गेट की ऊंचाई इतनी ज्यादा होगी कि उसे देखने वाले दंग रह जाएंगे। सन् 1969 के करीब डेरा में दक्षिण दिशा में मुख्य गेट तैयार किया गया, जिसकी ऊंचाई किसी मीनार से कम नहीं है। पूजनीय परमपिता जी की पावन हजूरी में इस गेट का निर्माण-कार्य पूर्ण हुआ।
इस बारे रामामल इन्सां बताते हैं कि पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने भी दरबार के पश्चिम दिशा में एक ऐसे ही एक और शानदार गेट बनाने का वचन फरमाया था, जिसका अधिकतर कार्य पूरा हो चुका है। खास बात यह भी है कि इस गेट का नक्शा भी पूज्य हजूर पिता जी द्वारा पास किया गया है।
दरबार में बनाए गए लंगर घर व मुख्य द्वार का अंदरूनी दृश्य।
ऐसे पहुंचें दरबार
डेरा सच्चा सौदा सच्चा हरद्वार रामपुर थेड़ी दरबार सरसा-जीवन नगर मुख्य सड़क पर रानियां से लगभग 2 कि.मी. आगे मुख्य सड़क में से लिंक रोड पर स्थित है। यह सरसा शहर से पश्चिम दिशा में है।
सड़क मार्ग:
ऐलानाबाद से 20 किलोमीटर
डबवाली से 60 किलोमीटर
सरसा से 26 किलोमीटर
रेल मार्ग:
सरसा, ऐलनाबाद व डवबाली रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस स्टेंड से सर्विस उपलब्ध है।