दशहरे का मेला श्याम और उसके साथी बड़े खुश थे क्योंकि उनका पसंदीदा त्योहार दशहरा आने वाला था। सब मेले में जाने की बातें कर रहे थे कि पिंकी कहीं से दौड़ती हुई आई।
उसने उदास स्वर में कहा, ‘दोस्तों, मैंने मम्मी-पापा को बातें करते हुए सुना था। पापा कह रहे थे कि इस बार गांव में दशहरे का मेला नहीं लगेगा।‘
‘क्यों नहीं लगेगा मेला?‘ सब बच्चे हैरानी से एक साथ बोले।
‘क्योंकि रामलीला के संचालक रामलाल जी को गांव के लोगों ने महंगाई के कारण पैसा देने से मना कर दिया है।’ पिंकी ने कहा।
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सब बच्चे दुखी होकर बैठ गए। तब श्याम ने कहा, ‘चलो, रामलाल जी के पास चलते हैं।‘
सब बच्चे अपनी साइकिलों पर रामलाल जी के घर चल दिए। सबने उनसे एक स्वर में कहा, ‘अंकल, इस बार आप दशहरे का मेला क्यों नहीं लगवा रहे हैं?‘
रामलाल जी ने बच्चों के सिर पर हाथ फेरकर कहा, ‘बच्चो, मैं तो अब बूढ़ा हो चुका हूं। लोगों से चंदा इकट्ठा करना अब मेरे बस की बात नहीं है। इसलिए मैंने मना कर दिया है।‘
‘अंकल, आपको कितने पैसे इकट्ठा कर दें तो आप मेले का आयोजन करवा सकते हैं?‘ गुरमीत ने पूछा।
‘कम से कम दस हजार रूपए इकट्ठे हो जाएं तो बाकी का इंतजाम मैं कर लूंगा क्योंकि सरपंच जी ने कहा है कि जितना चंदा गांव वालों से इकट्ठा होगा, उतना ही चंदा वह खुद देंगे।‘ रामलाल जी ने कहा।
बहुत दिनों से सब बच्चों ने दशहरा और दीवाली के लिए गुल्लक में पैसे जोड़ने शुरू कर दिए थे। सबने अपनी गुल्लक तोड़कर देखी लेकिन कुल मिलाकर केवल तीन हजार रूपए ही इकट्ठे हो पाए थे। ये पैसे लेकर वे रामलाल जी के पास पहुंचे तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए।
उन्होेंने कहा, ‘बच्चो, तुम्हारा त्याग देखकर मेरा दिल खुशी से झूम रहा है। अब दशहरा जरूर मनाया जाएगा चाहे मुझे कितने ही पैसे क्यों न खर्च करने पड़ें।‘
दशहरे का दिन भी आ गया। रामपुर गांव में आज हर तरफ खुशी का माहौल था। श्याम सुबह से ही मेले में जाने की तैयारी में लगा हुआ था। वह सोच रहा था कि मेले में जाकर सबसे पहले झूला झूलंूगा, मिठाई खाऊंगा और तीर-कमान खरीदूंगा आदि-आदि।
आखिर इंतजार की घड़ी भी खत्म हुई और श्याम को उसके मम्मी-पापा दशहरे का मेला दिखाने के लिए ले गए। श्याम ने बड़ी लंबी-चौड़ी फेहरिस्त बना रखी थी कि उसे मेले में जाकर क्या-क्या करना है और क्या-क्या लेना है। सबसे पहले उसने मम्मी-पापा से झूला झूलने की फरमाइश की। अपने पिता से वह पैसे लेकर झूला झूलने के लिए चला गया।
वह झूला झूलकर वापस अपने मम्मी-पापा के पास जा ही रहा था कि मेले में भगदड़ मच गई। सब लोग इधर-उधर भाग रहे थे। एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचकर उसने मम्मी-पापा को ढूंढ़ा पर उसे कोई नजर नहीं आया। श्याम उदास हो गया।
मेले में हुई इस भगदड़ से बहुत से लोग घायल हो गए थे। तभी उसने एक छोटे बच्चे को भीड़ में कुचलते देखा। श्याम ने आव देखा न ताव उस बच्चे को उठाने में लग गया। बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को भीड़ से बचाया। वह कुचलने के कारण बहुत गंभीर रूप से घायल हो चुका था।
श्याम बड़ी मुश्किल से बच्चे को लेकर मेले से बाहर आया। बाहर भी अफरा-तफरी थी। सबको सिर्फ अपनी पड़ी थी। किसी तरह श्याम बच्चे को लेकर पुलिस बूथ तक पहुंच गया। पुलिस ने बच्चे को अस्पताल में भर्ती करवा दिया। तुरंत सहायता मिलने के कारण बच्चे की जान बच गई।
उधर श्याम के मम्मी-पापा उसे मेले में ढूंढ रहे थे। जब पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें फोन करके उनके बेटे की बहादुरी की दास्तान सुनाई तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए।
श्याम को भी दशहरे का मजा खराब होने का अफसोस न था। उसे खुशी हो रही थी कि उसने आज किसी की जान बचाकर जो खुशी पाई, वह मेले में मिलने वाली खुशी से बड़ी थी। नरेंद्र देवांगन