साहस और संकल्प से हर बुराई का अंत निश्चित Dussehra (Vijayadashami)
हर साल जैसे ही शरद ऋतु की ठंडी हवांए चलने लगती हैं, आसमान में पतंगें पड़ती हैं, तब यह संकेत होता है कि दशहरे का शुभ पर्व आ रहा है। यह त्यौहार केवल एक धार्मिक परम्परा नहीं, बल्कि सांस्कृति, नैतिक और सामाजिक मूल्यों का उत्सव है। दशहरा को विजयादशमी भी कहा जाता है। यह त्यौहार हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयां हों, यदि हम सत्य, धर्म और धैर्य के मार्ग पर चलते हैं, तो अंतत: विजय हमारी ही होगी। इस संसार में कहीं भी असत्य और पाप का साम्राज्य ज्यादा देर नहीं टिकता। यही है दशहरा त्यौहार की शिक्षा!
दशहरे का सांस्कृतिक पहलू यह भी है कि यह एक पर्व एक ही दिन अलग-अलग जगहों पर भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है, लेकिन फिर भी एकता देखने योग्य होती है। हर साल हमें आशा होती है कि दशहरे का त्यौहार जीवन से बुराइयों का अंत करेगा और समाज में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करेगा। दशहरे के दिन हम तीन पुतलों को जलाकर बरसों से चली आ रही परपंरा को तो निभा देते हैं, लेकिन हम अपने मन से झूठ, कपट और छल को नहीं निकाल पाते। हमें दशहरे के असली संदेश को अपने जीवन में भी अमल में लाना होगा, तभी यह त्यौहार सार्थक बन पाएगा।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी का चरित्र एक आदर्श चरित्र है। इसलिए सभी इस चरित्र और रामायण के अन्य पात्रों से शिक्षा लें। राजा दशरथ को एक आदर्श पिता के रूप में, भगवान राम को मर्यादा-पुरुषोत्तम व रघुकुल रीत रूपी वचनों का पालन करने के रूप में, भाई लक्ष्मण को बडेÞ भाई की भक्ति के रूप में, भाई भरत को बडेÞ भाई के प्रति समर्पण के रूप में, कौशल्या को आदर्श मां के रूप में, हमेशा याद किया जाता है। वहीं हनुमान जी की राम भक्ति, विभीषण की सन्मार्ग शक्ति, जटायु की पराक्रम सेवा और सुग्रीव की राम सहायता हमेशा अमर रहेगी। चारों वेद और सभी 6 शास्त्रों को कंठस्थ कर लेने वाले लंकापति राजा रावण को उसके पुतले के प्रतीक में इस बार फिर जलाया जाएगा। यह रावण सदियों से जलता आ रहा है। परन्तु फिर भी रावण हर साल जलने के लिए फिर सामने आ जाता है ! दरअसल, जितने रावण हम जलाते हैं उससे ज्यादा पैदा हो जाते हैं।
रामलीला मंचन के बाद दशहरे पर भले ही हम हर साल रावण जलाकर बुराई का अन्त करने की पहल करते हों, परन्तु यथार्थ में रावण का अन्त पुतलों को जलाने से नहीं होता। असली रावण तो हम सबके अन्दर विकारों के रूप में विराजमान है। काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार रूपी विकारों को जलाकर हम पावन बन जाएं तो भगवान राम की पूजा सार्थक हो जाएगी और रावण रूपी विकारों का भी अन्त हो जाएगा। इतना ही नहीं, रावण रूप में जो देश के गद्दार हैं, जो देश की शान्ति और इन्सानियत का हरण करने वाले रावण रूप में जो व्याभिचारी हैं, रावण रूप में जो भ्रष्टाचारी हैं, रावण रूप में जो हिंसावादी हैं, रावण रूप में जो घोटालेबाज हैं, रावण रूप में जो साम्प्रदायिकता का जहर समाज में घोल रहे हैं, रावण रूप में जो विकास के दुश्मन हैं, रावण रूप में जो अमानवतावादी हैं, उनका अन्त करने से ही रामराज्य की परिकल्पना साकार हो सकती है।
फिर चाहे कितने ही रावण क्यों न जला लें, जब तक घर-घर, गली-गली, गांव-गांव, शहर-शहर बैठे रावणों का अन्त नहीं होगा, तब तक विजय दशमी के पर्व को सार्थक नहीं माना जा सकता। तो आइए आज ही विजय दशमी पर्व पर यानि दशहरे पर भगवान राम की शपथ लें कि हम भगवान राम को आत्मसात करेंगे और भगवान राम के आदर्शों पर चलकर सारे विकारों को त्यागकर उस रावण का जगह-जगह से अन्त करेंगे जो हमें राम से दूर कर रहा है। तभी रामलीला और रामायण की पवित्रता और उसके प्रति श्रद्धा कायम रह सकती है ।
यह त्यौहार हमें इस बात से भी अवगत कराता है कि पाप व अन्याय चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, विजय हमेशा सच्चाई की ही होती है। सत्य का पलड़ा हमेशा ही भारी रहा है। सत्य में ऐसा बल है, जो रावण जैसे अत्याचारी व अहंकारी मनुष्यों को जलाकर राख कर देता है। इसलिए हमें पाप व अन्याय से आतंकित नहीं होना चाहिए। हमें इस त्यौहार के वास्तविक अर्थ को ग्रहण करना चाहिए। इस पर्व की सार्थकता रावण जलाने में नहीं, बल्कि अपने अंदर की आसुरी प्रवृति को जलाने में है। दशहरा सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि हर वर्ष हमें याद दिलाता है कि हर रावण का अंत निश्चित है, बस जरूरत है श्रीराम जी जैसा साहस और संकल्प रखने की।