Eating with family

सुखद अहसास है परिवार के साथ खाना

कई बार कामकाजी होने के कारण सभी परिवारजन एक-साथ मिलकर खाना नहीं खा पाते हैं। इसलिए पूज्य गुरु संत डॉ. एमएसजी ने Team (Together eating a meat with family) मुहिम की शुरुआत की है, जिसके तहत परिवार की खुशी के लिए कम से कम सप्ताह में एक दिन पूरा परिवार इकट्ठे बैठकर खाना खाए।

इन दिनों परिवारों में साथ बैठ कर खाने का चलन बेहद कम हो गया है। पेरेंट्स व्यस्त रहते हैं और बच्चों की अपनी व्यस्ताएं हैं। हर कोई ब्रेकफास्ट से ले कर डिनर तक तब खाता है, जब वह खाना चाहता है। असल में परिवार में साथ खाना खाने का बहुत महत्त्व है।

सीखते हैं आदर देना:

बहुत से परिवारों में जो बच्चे केवल मां के साथ बैठ कर खाना खाते हैं, वे यह सोचने लग जाते हैं कि माँ का महत्व परिवार में पिता से ज्यादा है। वह भी उनको महत्त्व देती है, इसीलिए साथ बैठ कर खाती है जबकि पिता हमेशा व्यस्त रहते हैं। असल में जब सभी लोग हर दिन साथ बैठ कर खाना खाते हैं तो बच्चे माता-पिता, दोनों को आदर देना सीखते हैं। वे जानते हैं कि उनके माता-पिता बहुत व्यस्त हैं लेकिन फिर भी उन्होंने उनके लिए वक्त निकाला।

परस्पर वार्तालाप होता है:

यह सही है कि आप एक-दूसरे से दिन में कभी भी बातें कर सकते हैं लेकिन जरा सोचिए ऐसा कितनी बार होता है, जब आप सभी इकट्ठा होते हैं? साथ खाना एक-दूसरे को देखने और बातें करने का बहुत अच्छा मौका है। बस इतना जरूर निश्चित कर लें कि आप बुरी बातें शेयर न करें। कुछ प्रेरणा देने वाली बातों, अच्छी आदतों पर चर्चा करें। किसी फैमिली-ट्रिप की भी योजना बनाएं। इस तरह से आपके बच्चे खाने के वक्त को सकारात्मक बातों और स्वादिष्ट खाने से जोड़ पाएंगे।

बनती हैं सुखद यादें:

जब आपके बच्चे बड़े होंगे तो वे उस माहौल और उस दौरान हुए हंसी-मजाक को कभी नहीं भूलेंगे। वे जानेंगे कि एक परिवार के लिए साथ खाना कितना महत्त्वपूर्ण है और वे अपने बच्चों को भी यह सिखाएंगे। इस तरह से साथ खाने की यह परंपरा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती रहेगी और साथ ही परिवार से जुड़ी यादें भी नई पीढ़ी काफी हद तक याद रख पाएगी।

बढ़ती है पारिवारिक एकता:

अगर परिवार में कोई ऐसी समस्या आ रही है जिसका हल आप अकेले नहीं निकाल सकतीं तो फिर घर में साथ खाना खाने की परंपरा शुरू कीजिए। साथ खाने से और परिवार में आ रही समस्याओं के बारे में चर्चा करने से आपको उससे बाहर निकलने के कई सुझाव मिलेंगे। यकीन मानिए, कई बार छोटे बच्चे भी बहुत अच्छे सुझाव देते हैं।