साल 2014: कच्चे तेल की इंटरनेशनल कीमतें: 106 डॉलर/बैरल

पेट्रोल कीमत (मई, 2014):  71.41 रु/ली.
पेट्रोल पर टैक्स: 9.48 रु/ली.
डीजल पर टैक्स:  3.56 रु/ली.

साल 2020: कच्चे तेल की इंटरनेशनल कीमतें: 41 डॉलर/बैरल

पेट्रोल कीमत (अक्टूबर, 2020):  81.06 रु/ली.
पेट्रोल पर टैक्स:  32.98 रु/ली.
डीजल पर टैक्स:  31.83 रु/ली.

पैट्रोलियम पदार्थ का देश की अर्थव्यवस्था से ही नहीं, लोगों के दैनिक जीवन से भी गहरा नाता है। कॉमर्सियल या निजी वाहनों के रूप में इन पैट्रोलियम पदार्थ का इस्तेमाल होता है। खासकर पेट्रोल व डीजल के दामों में आने वाला हर उतार-चढ़ाव मंदी और महंगाई पर सीधे प्रभाव डालता है। देश की आजादी से लेकर वर्ष 2014 तक पेट्रोल व डीजल जैसे अन्य पदार्थाें की कीमत निर्धारण का जिम्मा सरकार के पास ही रहा है, लेकिन अब तेल कंपनियां इसकी कीमत तय करती हैं। सरकार ने अक्टूबर 2014 में डीजल की कीमतें तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को ही दे दिया।

अप्रैल 2017 में ये फैसला लिया गया कि अब से रोज ही पेट्रोल-डीजल के दाम तय होंगे। उसके बाद से ही हर दिन पेट्रोल-डीजल के दाम तय होने लगे। तर्क दिया कि इससे कच्चे तेल की कीमतें घटने-बढ़ने का फायदा आम आदमी को भी पहुंचेगा और तेल कंपनियां भी फायदे में रहेंगी। इससे आम आदमी को तो कुछ खास फायदा नहीं हुआ, लेकिन तेल कंपनियों का मुनाफा बढ़ता चला गया। जब इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल के दाम घट रहे थे तो सरकारों ने टैक्स बढ़ाकर अपना खजाना भरना शुरू कर दिया।

अब जब कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं तो न तो सरकारें टैक्स कम कर रही हैं और ना ही तेल कंपनियां अपना मुनाफा कम कर रही हैं। इससे सारा बोझ आम आदमी पर आ रहा है। हालत ये है कि पूरी दुनिया में पेट्रोल-डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स हमारे देश में लिया जाता है। भाजपा राज के छह साल की बात करें तो पेट्रोल की कीमतों में करीब 10 रुपये प्रति लीटर का इजाफा हो चुका है। हालांकि इंटरनेशनल मार्केट में ब्रेंट क्रूड की कीमतों में 60 फीसदी की कमी आई है। ये बातें कोई हवाहवाई नहीं, आइए इसे आंकड़ों से समझें।

जानते हैं कि आखिर क्यों कच्चे तेल की कीमत कम होने के बाद भी हमारे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम क्यों नहीं हो रहीं? दुनिया के किन देशों में पेट्रोल सबसे महंगा और सबसे सस्ता है? अलग-अलग राज्यों में पेट्रोल-डीजल पर कितना टैक्स लिया जाता है?

कच्चे तेल का खेल:

आपको पता है कि हम अपनी आवश्यकता का 85% से ज्यादा कच्चा तेल बाहरी देशों से खरीदते हैं। ये कच्चा तेल आता है बैरल में। एक बैरल यानी 159 लीटर। इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत अभी मिनरल वाटर जितनी है।

पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल के मुताबिक दिसंबर 2020 में कच्चे तेल की कीमत थी तीन हजार 705 रुपए। अब एक बैरल में हुए 159 लीटर, तो एक लीटर कच्चा तेल पड़ा 23 रुपए 30 पैसे का, जबकि एक लीटर पानी की बोतल 20 रुपए की होती है।

…तो पेट्रोल-डीजल इतना महंगा क्यों?

इसको समझने के लिए पहले ये समझना जरूरी है कि कच्चे तेल से पेट्रोल-डीजल कैसे पहुंचता है। पहले कच्चा तेल बाहर से आता है। वो रिफाइनरी में जाता है, जहां से पेट्रोल और डीजल निकाला जाता है। इसके बाद ये तेल कंपनियों के पास जाता है। तेल कंपनियां तेल शोधन के साथ-साथ अपना मुनाफा बनाती हैं और पेट्रोल पंप तक पहुंचाती हैं।

पेट्रोल पंप पर आने के बाद पेट्रोल पंप का मालिक अपना कमीशन जोड़ देता है। ये कमीशन तेल कंपनियां ही तय करती हैं। उसके बाद केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से जो टैक्स तय होता है, वो जोड़ा जाता है। फिर कहीं जाकर सारा कमीशन, टैक्स जोड़ने के बाद पेट्रोल और डीजल आम लोगों तक आता है।

आखिर इतनी कीमत बढ़ क्यों जाती है?

पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है, उस पर सरकारों की तरफ से लगाया जाने वाला टैक्स। केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी लगाती है। मई 2020 में केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई थी। एक लीटर पेट्रोल पर 32.98 रुपये और डीजल पर 31.83 रुपये एक्साइज ड्यूटी लगाई गई।

जब मई 2014 में भाजपा सरकार आई थी, तब एक लीटर पेट्रोल पर 9.48 रुपये और डीजल पर 3.56 रुपये एक्साइज ड्यूटी लगती थी। मई 2014 में भाजपा सरकार आने के बाद से अब तक 13 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ चुकी है। घटी सिर्फ तीन बार है।

राज्यों में पेट्रोल-डीजल का आंकड़ा?

केंद्र सरकार ने तो तेल पर एक्साइज ड्यूटी और अलग-अलग टैक्स लगाकर अपना खजाना भर लिया। अब राज्य सरकारें भी वैट यानी वैल्यू एडेड टैक्स और सेल्स टैक्स लगाकर जनता की जेबों से पैसा निकलवाती हैं। केंद्र सरकार तो एक ही है, इसलिए पूरे देश में एक ही एक्साइज ड्यूटी लगेगी। लेकिन, राज्य अलग-अलग हैं, तो वैट और सेल्स टैक्स का रेट भी अलग-अलग होता है, जो राज्य सरकारें ही तय करती हैं।

कुछ-कुछ राज्यों में वैट-सेल्स टैक्स के अलावा अन्य टैक्स भी लगाए जाते हैं। मसलन एम्प्लॉयमेंट सेस, ग्रीन सेस, रोड़ डेवलपमेंट सेस वगैरह-वगैरह। पूरे देश में सबसे ज्यादा वैट/सेल्स टैक्स राजस्थान सरकार वसूलती है। यहां 38% टैक्स पेट्रोल पर और डीजल पर 28% टैक्स लगता है। उसके बाद मणिपुर, तेलंगाना और कर्नाटक हैं जहां पेट्रोल पर 35% या उससे अधिक टैक्स वसूला जाता है। मध्य प्रदेश में पेट्रोल पर 33% वैट लगता है।

लेकिन, इस वक्त जिस राज्य की राजधानी में सबसे महंगा पेट्रोल मिल रहा है वो है मध्य प्रदेश। आप कहेंगे कि टैक्स कम है तो दाम ज्यादा कैसे? तो इसका कारण है अलग-अलग राज्य इस टैक्स के साथ जो कई तरह के सेस लगाते हैं, उससे दाम और बढ़ जाता है।

राज्य सरकार का टैक्स, फिर दूसरे शहरों में कीमत ऊपर-नीचे क्यों?जब पेट्रोल-डीजल किसी पेट्रोल पंप पर पहुंचता है तो वो पेट्रोल पंप किसी आॅयल डिपो से कितना दूर है, उसके हिसाब से उस पर किराया लगता है। इसके कारण शहर बदलने के साथ ये किराया बढ़ता-घटता है।

जिससे अलग-अलग शहर में भी कीमत में अंतर आ जाता है। यही कारण है कि भारत में मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल में दिसंबर माह में पेट्रोल 91.46 रुपए लीटर था तो इंदौर में ये 91.49 रुपए तो मध्य प्रदेश के ही बालाघाट में 93.56 रुपए लीटर था। यही कारण है कि 6% टैक्स लगाने वाले अंडमान में पेट्रोल और डीजल दोनों करीब 70 रुपए लीटर मिल रहे हैं। तो 38% टैक्स लगाने वाले राजस्थान के श्रीगंगानगर में पेट्रोल 95.53 रुपए में तो डीजल 87.15 रुपए में बिक रहा है।

हमारे देश में पेट्रोल-डीजल पर कितना टैक्स?

बता दें कि हमारे देश में पेट्रोल-डीजल पर दुनिया में सबसे ज्यादा टैक्स वसूला जाता है। इंडियन आॅयल कॉपोर्रेशन के मुताबिक, एक दिसंबर को दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की बेस प्राइस थी 26.34 रुपए, लेकिन वो हमको मिला 82.34 रुपए में यानी 68% टैक्स लग गया। इस पर ढुलाई का खर्च 0.36 रुपये है। इस पर एक्साइज ड्यूटी 32.98 रुपये प्रति लीटर है। वहीं, वैट (डीलर के कमीशन के साथ) 18.94 रुपये है। डीलर का कमीशन 3.70 रुपये के आसपास है।

इसी तरह से 26 रुपये का पेट्रोल ग्राहकों को 81 से 82 रुपये के बीच में पड़ता है। इसमें हर एक लीटर पर केंद्र और राज्य सरकारों को करीब 51 रुपये मिलते हैं। इसी तरह डीजल की बेस प्राइस थी 27.08 रुपए और टैक्स लगने के बाद कीमत हो गई 72.42 रुपए। यानी, डीजल पर हमने 63% टैक्स दिया। मध्य प्रदेश, राजस्थान में तो पेट्रोल पर कुल टैक्स 70% से भी ज्यादा है। जबकि, विकसित देशों में इतना टैक्स नहीं लिया जाता है। अमेरिका में ही पेट्रोल-डीजल पर 19% टैक्स लिया जाता है, जबकि ब्रिटेन में 62% टैक्स लगता है।

तेल कंपनियों के मुनाफे पर एक नजर…

टैक्स बढ़ने के कारण 2020 की सितंबर तिमाही में सरकार के खजाने में 18,741 करोड़ रुपए की एक्साइज ड्यूटी आई। देश की तीन सबसे बड़ी तेल कंपनियों ने करीब 11 हजार करोड़ का मुनाफा कमाया। देश की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन आॅयल ने सितंबर तिमाही में 6,227 करोड़ रुपए, हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने 2,477 करोड़ रुपए और भारत पेट्रोलियम ने 2,248 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया।

अब विश्व में पेट्रोल-डीजल का हाल

पाकिस्तान में 46 रुपए का एक लीटर पेट्रोल, हमसे लगभग आधा। हमारे देश में पेट्रोल की कीमत राज्यों और शहरों में अलग-अलग होती है। अभी कुछ-कुछ शहरों में पेट्रोल की कीमत 90 रुपए से ज्यादा है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ही एक लीटर पेट्रोल की कीमत 91.59 रुपए है।

जबकि, हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 103 रुपए, जो भारतीय करेंसी के हिसाब से 46.37 रुपए होती है। यानी हम अपने यहां जितने रुपए में एक लीटर पेट्रोल खरीदते हैं, उतने में तो पाकिस्तान में 2 लीटर पेट्रोल आ जाए।

सबसे सस्ता पेट्रोल वेनेजुएला में

ग्लोबल पेट्रोल प्राइसेस के मुताबिक, दुनिया में सबसे सस्ता पेट्रोल वेनेजुएला में है। यहां एक लीटर पेट्रोल की कीमत केवल एक रुपए 48 पैसे है। हालांकि यहां एक बात ये भी है कि वेनेजुएला में तेल का भंडार भी है। जिन देशों में तेल का भंडार है, वहां पेट्रोल की कीमतें कम हैं। इसी तरह हांगकांड में 1 लीटर पेट्रोल 168 रुपए 38 पैसे का है। ये दुनिया में सबसे महंगा है।          – सोर्स: पीपीएसी, बीएससी

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