वो ध्याता रहा नाम और टल गई मौत
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत | सत्संगियों के अनुभव
प्रेमी केवल कृष्ण इन्सां पुत्र श्री रामचन्द चिलाना नजदीक टिब्बी बस स्टैंड संगरिया जिला हनुमानगढ़(राजस्थान) सतगुरु के हुए करिश्में को इस प्रकार बताते हैं:-
सन् 1995 की बात है कि मैंने डेरा सच्चा सौदा बुधरवाली में पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी का सत्संग सुना। मुझे गुरु जी पर इतना विश्वास हो गया कि उसी दिन पूज्य गुरु जी से नाम शब्द-गुरुमंत्र ग्रहण कर लिया और सब्जी-फ्रूट समिति में सेवा करने लगा जो आज भी बदस्तूर कर रहा हूँ। 21 जून 2006 की बात है, मैं अपने शहर संगरिया में अरोड़वंश धर्मशाला के नजदीक स्कूल की दीवार के साथ सब्जी और फ्रूट की रेहड़ी लगा कर रेहड़ी के ऊपर बैठा हुआ था। शाम का समय था। कोई ग्राहक न आता देखकर मैं आँखें बन्द करके नाम का सुमिरन करने लगा।
अचानक जोर का झटका लगा और मैं उछल कर स्कूल की चार-पाँच फुट ऊँची दीवार पार करता हुआ स्कूल के अन्दर जा गिरा। जब यह दुर्घटना हुई तो मुझे एक दम प्रकाश दिखाई दिया। मुझे ऐसे लगा जैसे पूज्य हजूर पिता जी मुझे आराम से नीचे टिका कर जाते हुए दिखाई दिए व अदृश्य हो गए। मेरा सुमिरन फुल स्पीड से चलने लगा। वहाँ पर आस-पास के लोग इकट्ठे हो गए और स्कूल का गेट खोल कर मेरे पास पहुंचे।
मुझे पूरी तरह स्वस्थ देखकर वे हैरान रह गए कि तू बच कैसे गया, जब रेहड़ी पन्द्रह फुट घसीट कर चकनाचूर हो गई, चक्के मुड़कर इक्टठे हो गए और सारा सामान बिखर गया, ऐसे में तुम सही सलामत कैसे हो? उन लोगों ने बताया कि एक गाड़ी जिसे कोई शराबी चला रहा था, वह गाड़ी तेरी रेहड़ी से टकरा गई थी।
मैंने अपने सतगुरु पूज्य हजूर पिता जी का लाख-लाख शुक्राना किया, जिन्होंने मेरी ऐसे हिफाजत की कि लोग मुंह में उंगलियां दबाने को मजबूर हो गए। आज भी जब मुझे वो घटना याद आती है तो मेरी रूह काँप उठती है। मैं हमेशा अपने सतगुरु का शुक्राना करता रहता हूँ और यह दुआ करता हूँ कि मुझे हमेशा अपने चरणों से ऐसे ही लगाए रखना जी।