नव-विवाहित दुल्हन को प्यार और समुचित सुरक्षा देने का दायित्व पति का होता है, क्योंकि वह पति के लिए ही पूरे परिवार को छोड़कर आती है।
पत्नी का भी कर्तव्य होता है कि वह पति की भावनाओं और आत्म-सम्मान का यथोचित आदर सत्कार करे। नयी नवेली दुल्हन माता-पिता, भाई बहन और सहेलियों के वर्षों के प्यार को विवाह के सूत्र में बंधने के बाद छोड़ आती है, केवल इसलिये कि जीवन-साथी का भरपूर प्यार नये सपनों के संसार को बनाता है। सास-ससुर, देवर, ननद आदि ससुरालियों में उसे कुछ समय बाद अपनेपन का अहसास होने लगता है।
बचपन से बड़े प्यार दुलार से पली दुल्हन अपने परिवेश को त्याग कर अपनी परंपराओं व संस्कारों में जकड़ी जब पति के घर आती है, तो ससुराल वाले उसे अपनी संस्कृति के अनुरूप ढालना चाहते हैं। नव-विवाहिता एक पौधे के समान होती है, जिसे माता-पिता के आंगन से उखाड़ कर पति के आंगन में प्रत्यारोपण कर दिया जाता है। उसे स्रेह, ममता, प्यार व दुलार की आवश्यकता होती है, जिससे उसका गृहस्थ-जीवन सुंदर बने।
प्राय: नव वधू को सास में मां की छवि आसानी से प्राप्त नहीं होती। उधर पति की मां को भी लगता है कि उनका बेटे से एकाधिकार समाप्त हो रहा है और इस कारण से भी सास व बहू में मन-मुटाव प्रारंभ होता है और पति भी असमंजस में पड़ जाता है कि किसके पक्ष की बात करे!
वास्तव में बहू का उसके बेटे पर हक है और उसी के लिए तो वह अपने परिवार को छोड़ कर आती है। सास को बहू की उमंगों का आदर करना चाहिए। बहू का भी दायित्व बनता है वह परिवार की मर्यादा को समझ कर सभी का आदर-सत्कार करे।
बेटे के विवाह के बाद प्रत्येक मां की तमन्ना होती है कि उसे बहू के आने पर आराम मिलेगा। जीवन-भर गृहस्थी में इसी आशा में बेटों को देख सपने संजोकर चलती है कि बहू के हाथ से बनी रोटी खाऊंगी। अत: बहू भी अपने कर्तव्य को इस ढंग से निभायें कि सबका मन जीत ले।
परिवार के सभी काम तो कोई नहीं जानता पर बहू को चाहिए कि जानने की जिज्ञासा रखें। सभी के साथ शालीनता का व्यवहार करें। मृदुभाषी बनें। औरों की बात को सुनने की आदत डालें और इस गुण से सभी का दिल जीता जा सकता है। व्यंग्यात्मक शब्दों को हंसी मजाक में उड़ा दें। उन्हें गंभीर विषय न बनायें।
पारिवारिक रिश्तों में नववधू को तालमेल बनाने की आवश्यकता होती है। पुराने घर की आदतों को छोड़ना पड़ता है जिससे रिश्तों में संतुलन बन सके। नव वधू के बुद्धि कौशल की परीक्षा ससुराल में पहुंचने पर ही प्रारंभ हो जाती है। जो दुल्हन ननद व देवरों के दिल को जीत लेती है, वह बहन, भाई के प्यार को पा लेती है। सबसे ज्यादा नव-वधू इन्हीं के साथ में रहती है।
दांपत्य जीवन का प्रारंभ विश्वास और प्रेम पर ही होता है। नव वधू को पति की भावनाओं के अनुरूप ढलना होता है और यदि पति की भावनाओं के विपरीत आचरण किया गया, तो वैवाहिक-जीवन फूलों की सेज की बजाय कांटों का बिस्तर बनके रह जायेगा।
जब दुल्हन की डोली मायके से आती है, मां-बाप का आशीर्वाद यही होता है कि ‘बेटी, तेरी अर्थी ससुराल से ही उठे।’ ये सूक्तियां पुरानी होते हुये भी नयी लगती हैं। दुल्हन का हृदय नयी उमंगों से परिपूर्ण होता है। जहां पुराने परिवार से बिछुड़ने का गम होता है, वहीं नये दांपत्य-जीवन की उमंगें भी होती हैं।
नारी पहले से ही स्रेह, प्रेम, ममता और वात्सल्य की मूर्ति होती है। पिया के घर में जाने से उसे ममत्व बांटने का सुरक्षित कवच मिल जाता है। नव-वधू अपनी कार्य-कुशलता से तथा मृदुल व्यवहार से सभी को अपना बना लेती है। अपना बनाने के इस गुण से सभी से उसे भरपूर प्यार मिलता है और वह ससुराल में सभी का मन जीत कर प्यार पा सकती है।
– सविता बिहानियां