Ideal friendship -sachi shiksha hindi

आदर्श मित्रता -बाल कथा

डामन और पिथियस दो मित्र थे। दोनों में बहुत प्रेम था। एक बार उस देश के अत्याचारी राजा ने डामन को फांसी देने का हुक्म दे दिया। डामन के बीवी बच्चे बहुत दूर समुद्र के पार रहते थे। डामन ने उनसे मिलने की इच्छा प्रकट कंी।

राजा ने कहलवाया ‘यदि डामन के बदले कोई दूसरा आदमी जेल में रहने को तैयार हो और यदि डामन अपने बीवी-बच्चों से मिल कर समय पर वापस न पहुंच सके तो उसी व्यक्ति को डामन की जगह फांसी पर लटका दिया जाएगा। यदि उस व्यक्ति को यह शर्त मंजूर हो तो डामन निर्धारित अवधि के लिए घर जा सकता है।

पिथियम ने डामन से पूछे बिना ही यह शर्त स्वीकार कर ली। पक्की लिखा-पढ़ी हो गई और डामन को जेलखाने से निकाल कर उसकी जगह पिथियस को जेल में बंद कर दिया गया। पिथियस सोच रहा था,‘ हे प्रभु! डामन समय पर वापस न लौटे तो अच्छा हो।’

समय बीतने लगा। हवा विरूद्ध होने के कारण डामन की नाव समय पर नहीं पहुंच सकी। फांसी का समय समीप आ गया। पिथियस के मन में आनंद और शोक दोनों की लहरें उठ-बैठ रही थीं। जब वह सोचता कि डामन नहीं आया तो मुझे फांंसी हो जाएगी, तब वह आनंद में मस्त हो जाता लेकिन दूसरे ही क्षण जब उसके मन में यह विचार आता कि अभी मुझे फांसी तो हुई नहीं और अगर इसी बीच डामन आ गया तो मेरा मनोरथ असफल ही रह जाएगा, तो वह शोकमग्न हो जाता। पिथियस बड़ा व्यग्रचित्त होकर भगवान से बार-बार यही प्रार्थना करता, ‘हे प्रभु! डामन के आने में देर हो जाए और उसकी जगह में फांंसी पर चढ़ा दिया जाऊं।

उधर डामन नाव में बैठा यह सोच-सोच कर अधीर हो रहा था कि कहीं वह समय पर न पहुंच सका तो उसके मित्र पिथियस को फांसी पर लटका दिया जाएगा। समय बीतता जा रहा था। डामन नहीं पहुंच सका तो पिथियस को फांसी के तख्ते तक ले जाया गया। उसे बड़ा हर्ष था। लोगों ने कहा, ‘डामन ने बहुत बुरा किया। वह समय पर नहीं आया।

पिथियस इस बात को न सह सका। उसने कहा, ‘भाइयो! पिछले कई दिनों से हवा विपरीत चल रही है, इसलिए वह नहीं आ सका होगा। इस पर किसी को उसके प्रति बुरा भाव व्यक्त नहीं करना चाहिए।’ इतना कह कर पिथियस जल्लाद से बोला, ‘भाई! समय हो गया है, अब तुम देर क्यों कर रहे हो?’

जल्लाद पिथियस को फांंसी पर लटकाने के लिए तैयार हुआ कि आवाज सुनाई दी, ‘ठहरो, ठहरो! मैं आ पहुंचा हूं।’ लोगों के देखते ही देखते डामन पागलों की तरह घोड़े को सरपट दौड़ाता हुआ वहां पहुंच गया और घोड़े की जीन से कूद कर तुरंत फांसी के तख्ते पर जा चढ़ा तथा पिथियस को गले लगा कर कहा ‘ भगवान का लाख-लाख धन्यवाद जो उन्होंने तुम्हारी प्राण रक्षा की।

जब पिथियस ने हाथ मलते हुए कहा, ‘लेकिन भगवान ने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी। तुम दो मिनट बाद क्यों न पहुंचे।’ इस अदभुत दृश्य और दो दोस्तों की इस आदर्श मित्रता को देखकर कठोर हृदय राजा भी आश्चर्यचकित हो गया। उस पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और दोनों के समीप आकर राजा ने गदगद वाणी से कहा’ दोनों फांसी के तख्ते से उतर जाओ। मैं दो दोस्तों की ऐसी बेमिसाल जोड़ी को तोड़ना नहीं चाहता बल्कि मेरी तो भगवान से प्रार्थना है कि तुम दोनों के साथ तीसरा मैं भी ऐसा ही बन जाऊं।
-महक वर्मा

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