Eagle उत्तरी भारत, नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार में पाई जाने वाली भारतीय चित्तीदार बाज (क्लैंग हास्टाटा) दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा शिकारी पक्षी है। बाजों की यह प्रजाति ऊष्णकटिबंधीय शुष्क जंगलों, पेड़ों, कृषि योग्य भूमि और परम्परागत रूप से पानी से भरे क्षेत्रों को पसंद करती है। यह गंभीर चिंतन का विषय है कि आज इस प्रजाति का अस्तित्व गंभीर खतरे में है।
भारत में बाजों की यह प्रजाति पूर्व में मणिपुर तक, मध्य प्रदेश और दक्षिणी उड़ीसा, कोटागिरी और मुदुमलाई, नीलगिरी जिले, तमिलनाडु और तुमकुरु, कर्नाटक तक दक्षिण में सीमित है। यह बाज उत्तरी भारत के गंगा के मैदानों पर विरल रूप से वितरित हो कई स्तनधारियों, पक्षियों, चूहों, छिपकलियों और सरीसृपों का शिकार करते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आॅफ नेचर ने भारतीय चित्तीदार बाज को खतरे की श्रेणी में रखा है।
भारतीय चित्तीदार बाज की संख्या आज पृथ्वी पर केवल 2500 से 10000 तक हैं। यदि समय पर कार्यवाही शुरू नहीं की गई तो आबादी में और अधिक गिरावट आ सकती है। विलुप्त होने के लिए कमजोर उपश्रेणी में रखा है, जो कि आगे मानवीय हस्तक्षेप के बिना अप्राकृतिक (मानव-कारण) विलुप्त होने के उच्च जोखिम में माना जाता है। इसका उद्देश्य जनता और नीति निर्माताओं को संरक्षण के मुद्दों से अवगत कराना है, साथ ही प्रजातियों के विलुप्त होने को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद करना है।
प्रो. राम सिंह ने घटती संख्या का किया आंकलन:
पर्यावरण जीव विज्ञानी एवं पूर्व निदेशक एचआरएम, विभागाध्यक्ष कीट विज्ञान विभाग और प्राणि विज्ञान विभाग चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विश्वविद्यालय हिसार प्रोफेसर राम सिंह ने इस बाज की गतिविधियों का आंकलन इसकी घटती संख्या के कारण किया। उन्होंने आंकलन के लिए कई गांवों, शहर के आवासीय समूह, वाणिज्यिक टॉवर/मॉल और बाजार का सर्वेक्षण किया। प्रोफेसर राम सिंह ने ज्यादातर बाज आवासीय परिसर में या उसके आस-पास लंबे संचार टावरों पर आराम करते देखे। उनके आंकलन के अनुसार बरगद, जामुन, इमली, नीम आदि जैसे अधिक लम्बे और पुराने पेड़ अब देश के गैंगेटिक मैदानों के उत्तरी भाग में मौजूद नहीं हैं। बाज 50 से 60 फीट की ऊंचाई तक के सामान्य पेड़ों को भी सुरक्षित नहीं मानते।
250 संचार टावरों का किया दौरा:
प्रोफेसर राम सिंह द्वारा गुरुग्राम व अन्य जगहों पर लगभग 250 संचार टावरों का दौरा किया गया। भारतीय चित्तीदार बाज ने घर की छतों पर मौजूद सभी संचार टावरों को खारिज कर दिया, भले ही वे ऊंचे घरों पर मौजूद थे। बहुत लंबा संचार टॉवर होने के बावजूद गांवों के भीतर स्थित टावरों से बाज बचते दिखाई देते थे। शहरी आवासीय सोसाइटियों की ऊंची इमारतों में छत के ऊपर कोई भी टावर बाज को सुरक्षित नहीं लगा। इसलिए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संचार टावर आम लोगों की पहुंच से बाहर हों। इसके अलावा टॉवर की ऊंचाई 80 फीट से अधिक हो। सर्वेक्षण के दौरान प्रोफेसर राम सिंह ने 4 ऐसे टावरों का भी अवलोकन किया, जिनमें एक से दो बड़े घोंसलों के साथ-साथ बाज मौजूद थे। बाज व्यस्क जोड़े में रहते हैं। इन टावरों के आस-पास बाज द्वारा खाए गए चूहों और छिपकली के अवशेष मौजूद थे।
अप्रैल से जून की भीषण गर्मी पड़ेगी भारी:
प्रोफेसर राम सिंह अप्रैल से जून की भीषण गर्मी से ऐसे टावरों पर चूजों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि चूजों को स्वतंत्र होने में लगभग 5 महीने लगते हैं। टॉवर मालिक, सरकार, पर्यावरण कार्यकर्ता और आम जनता ऐसे पक्षियों के संरक्षण में मदद कर सकते हैं। टावरों के संचालन को प्रभावित किए बिना टावरों को कुछ छाया/आश्रय विकल्पों से सुसज्जित किया जा सकता है। ऐसे पक्षी भोजन शृंखला और प्रकृति के संतुलन में महत्वपूर्ण घटक हैं।
उन्होंने अतीत में कई बार अनियंत्रित और अनपेक्षित मानवीय गतिविधियों के कारण प्रकृति में जीवन के संकट के बारे में चेतावनी दी है। प्रोफेसर राम सिंह ने भारत में मानवीय गतिविधियों के लिए खतरा बने जानवरों की सूची में से सिर्फ एक उदाहरण दिया है। ऐसे जानवरों के संरक्षण के लिए मुख्य महत्व है, ताकि कल मानव अस्तित्व को खाद्य शृंखला टूटने और प्रकृति में असंतुलन का खतरा न हो।
प्रजनन आवश्यकताएं:
भारतीय चित्तीदार बाज मार्च से जुलाई तक प्रजनन करते हैं। वे एक पत्नीत्व और एक एकांगी जीवन का पालन करते हैं। दोनों लिंग घोंसले का निर्माण करने में मदद करते हैं। घोंसला आमतौर पर बरगद, इमली आदि ऊंचे पेड़ों के शीर्ष पर बनाया जाता है। मादा एक एकल अंडा देती है, जो 25-32 दिनों के लिए दोनों माता-पिता द्वारा ऊष्मायन किया जाता है। चूजे को 9-11 सप्ताह तक माता-पिता दोनों द्वारा खिलाया जाता है।