purchasing wool -sachi shiksha hindi

ऊन की खरीदारी में बरतें समझदारी

मौसम में ठंडक आते ही गर्म वस्त्रों की याद आनी शुरू हो जाती है। जिन स्त्रियों को स्वेटर घर पर बनाने का शौक होता है, वे बाजार में निकल पड़ती हैं रंग-बिरंगी और मन को लुभाने वाली ऊन लेने के लिए। ऊन खरीदते ही मन में डिजÞाइन ध्यान आने लगते हैं। वैसे घर के बने स्वेटर की अपनी ही शान होती है। जिस रंग और नाप का स्वेटर चाहें, आप बना सकते हैं।

बुनाई करते समय और ऊन खरीदते समय कुछ विशेष बातों को दिमाग में रखकर ही शुरू करना चाहिए।

  • सबसे पहले यह ध्यान रखें कि स्वेटर किस के लिए बनाना है और कैसा बनाना है, उसी अंदाज से ऊन खरीदें। रंग का चयन पहनने वाले के रंग रूप को ध्यान में रख कर करना चाहिए।
  • ऊन हमेशा मुलायम और केशमिलॉन की खरीदें, क्योंकि न तो यह जुड़ती है, न रंग खराब होता है, न सिकुड़ती है, न ही जरूरत से ज्यादा गर्म होती है।
  • ऊन लेते समय ध्यान रखें कि अधिक मोटी ऊन का स्वेटर न बनायें क्योंकि मोटी ऊन कई बार धोने के बाद ढीली पड़ जाती है।
  • सिलाइयां ऊन के अनुसार लें, मोटी ऊन के लिए मोटी सिलाई और पतली ऊन के लिए पतली सिलाई।
  • यदि ऊन लच्छी वाली हो तो पहले उसे ध्यान से खोलकर गोले बना लें। गोला थोड़ा ढीला बनायें ताकि ऊन के रेशे बरकरार रहें। गोले वाली ऊन ले रहे हैं तो थोड़ा देख लें उसमें गांठें अधिक न हों। लच्छी वाली ऊन की एक लच्छी बचाकर बाकी की खोलें। यदि ऊन अधिक हो तो बदलवाने में आसानी होती है।
  • गोले वाली ऊन के लेबल को संभाल कर रखें। कभी ऊन समाप्त हो जाए या अंदाज ठीक न बैठे तो उस लेबल की सहायता से आप और ऊन खरीद सकते हैं।
  • अगर ऊन बहुत पतली हो तो सिलाई पर फन्दे ऊन को दोहरा कर डालें।
  • स्वेटर के बॉर्डर थोडेÞ कसे हुए बुनें। पहला फन्दा बिना बुने उतारने से सिलाई आसानीपूर्वक की जा सकती है।
  • स्वेटर का नाप इंचीटेप की सहायता से लें। जब भी नापें, स्वेटर को समतल स्थान पर रखकर नापें।
  • जब आप स्वेटर बना रहे हैं, तब दूसरे को वही भाग बुनने को मत दें। इससे स्वेटर की बुनाई में अन्तर आ जाता है।
  • सिलाई बुनते समय जब आपको बन्द करना हो तो सिलाई पूरा करके रखें। आधी सिलाई में फन्दे गिरने का खतरा बना रहता है।
  • यदि आप दो या अधिक रंग का स्वेटर बना रही हैं तो ध्यान रखें कि ऊन का रंग दूसरे पर न जाये। पहले थोड़ा सा टुकड़ा धोकर जांच कर लें।
  • स्वेटर बनाते समय मैला होना स्वाभाविक है। पूरा स्वेटर बनने के बाद उसे लिक्विड सोप से धो कर कुर्सी या चारपाई पर अखबार बिछा कर या सूती सफेद कपड़ा बिछाकर सुखायें।
  • ऊनी वस्त्रों पर तेज गर्म प्रेस न करें। इससे ऊन दबी-दबी लगती है और रेशे भी निकल जाते हैं। स्वेटर को हल्का दबा कर धोयें और पानी भी जोर से न निचोड़ें।
  • हल्के रंग का स्वेटर बुनते समय ऊन और सिलाईयोें को किसी निटिंग बैग में रख कर बुनें ताकि स्वेटर अधिक मैला न बने।
  • स्वेटर बनाने से पूर्व हाथों को अच्छी तरह धो कर बनायें।
  • ऊन के फंदे ऊन की किस्म और जिसके लिए बुनना हो उसे ध्यान में रखकर डालें।
  • यदि पुरानी ऊन को खोलकर पुन: स्वेटर बना रहे हैं तो ऊन की लच्छियां बना कर भाप दिलवा लें, उसके बाद पुन: गोले बना लें। पुरानी ऊन के स्वेटर में यदि थोड़ी सी नई ऊन का डिजाइन बना लें तो स्वेटर की शान दुगनी हो जाती है।
    स्वेटर का डिजाइन डालने से पूर्व ध्यान रखें कि बच्चे के स्वेटर में दो-तीन रंग अच्छे लगते हैं। बड़ों के स्वेटर में एक ही रंग अच्छा लगता है। इस बात का ध्यान अवश्य रखें ताकि आपकी मेहनत व्यर्थ न जाये बल्कि लोग आपकी सूझ-बूझ की प्रशंसा करें।
    नीतू गुप्ता

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