दिव्यांगजनों के लिए प्रेरणा है -कंचन ‘महक
चौथी कक्षा में ‘स्पाइनल मस्कुलर’ बीमारी से हुई थी ग्रस्त
प्रतिलिपि लेखन व कूकू एफएम ओडियो ऐप पर 3 बिलियन रीडर्स
जीवन में जो कुछ मिला है, उसी में खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए।
मैंने भी यह निश्चय कर लिया है कि कभी नीरस नहीं होना, जो मैं कर सकती हूं, उससे भी बढ़कर करने की कोशिश करूंगी। मेरा सपना है कि मैं आईएएस बनकर देश की सेवा में रोल अदा करूं, खासकर उन लड़कियों के लिए प्रेरणा बनूं, जो दिव्यांग होने के चलते हिम्मत हार जाती हैं।
‘जब हौंसला बना लिया ऊंची उड़ान का, फिर देखना फिजूल है कद आसमान का।’ ऐसे ही जज्बे की धनी है कंचन महक सुथार, जो दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर से ग्रस्त होकर भी हौंसले के बलबूते आसमां की ऊंचाई को नापती जा रही है। करीब 15 वर्ष से इस असहनीय पीड़ा को झेल रही कंचन महक सुथार ने कभी जीवन को पश्चाताप की नजर से नहीं देखा, अपितु भविष्य के प्रति एक सकारात्मक नजरिया बनाकर हमेशा आगे बढ़ने का निश्चय किया।
संघर्ष और इच्छाशक्ति से उसने कवियित्री के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई, जिसके चलते आज उसके फैमस ऐप प्रतिलिपि पर साढ़े 12 हजार फोलोवर्स व 3 मिलियन रीडर के साथ-साथ कूकू एफएम (ओडियो) पर एक हजार फोलोवर्स और 2.80 लाख श्रोता हैं। कंचन अब तक 300 से ज्यादा रचनाएं लिख चुकी हैं, जो समाज में विघटित हो रही घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती हैं और पथभ्रष्ट होते युवाओं को नई राह दिखाती हैं।
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ये है पारिवारिक पृष्ठभूमि:
दरअसल कंचन महक सुथार सिरसा जिले के गांव गोरीवाला में एक बहुत ही साधारण परिवार से जुड़ी बेटी है, जिसके पिता कारपेंटर का कारोबार करते हैं और मां रोशनी देवी गृहणी हैं। 4 भाई-बहनों में सबसे बड़ी कंचन जब 9 वर्ष की थी, तब तक सब कुछ सही चल रहा था। नई उमंग व जोश से वह अपने माता-पिता की उम्मीदों के रास्ते पर बढ़ती जा रही थी। तभी अचानक उसके जीवन में एक ऐसा तूफान आया कि सब कुछ खत्म सा हो गया। चलने-फिरने में मुश्किल आने लगी। स्कूल के गेट तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया। जैसे-तैसे एक वर्ष तक अपनी बहन का कंधा पकड़कर 5वीं क्लास तक पहुंची, लेकिन इसके बाद तो जैसे सब कुछ ही साथ छोड़ गया।
असल में कंचन महक को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी नामक बीमारी ने घेर लिया था। डा. गौतम सुथार बताते हैं कि दस साल की उम्र में भांजी कंचन महक में बीमारी अपना पूरा प्रभाव दिखा चुकी थी। परिवार ने बहुत कोशिशें की, चिकित्सा क्षेत्र में हर तरफ दौड़ लगाई। बड़े-बड़े महानगरों तक खाक छानते रहे, लेकिन हर डाक्टर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह लाइलाज बीमारी है, जिसमें बच्चा 12 साल तक ही जीवित रहता है। उम्मीद की किरण टूटने लगी थी, लेकिन कंचन ने हिम्मत नहीं हारी। बेशक उसके हाथ-पांव साथ नहीं दे रहे थे, फिर भी उसने जीवन में आए विकट संकट के बीच नई राह की तलाश शुरू कर दी।
हौंसला फिर ले आया स्कूल के द्वार:
कंचन बताती हैं कि उसे हमेशा से ही पढ़ने का शौक रहा है। शरीर में पीड़ा बहुत होती थी, लेकिन मन में ख्याल था कि पढ़ना तो है ही। उपचार के दौरान एक बार सोलन शहर (हिमाचल प्रदेश) के एक नामी अस्पताल में जाना हुआ, जहां के चिकित्सकों ने मुझे इतना मोटिवेट किया कि मेरी हिम्मत बढ़ गई। मैंने देखा कि वहां पर मुझसे भी ज्यादा बीमार बच्चे हंसी-खुशी जीवन जीने का प्रयास कर रहे हैं, तब मैंने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, जो जीवन मिला है, उसको आत्मसंतुष्टि के साथ जीना है। सोशोलॉजी व पंजाबी में ग्रेजुएशन कर चुकी कंचन महक ने दसवीं व बारहवीं 90 प्लस ग्रेडिंग से पास की। लड़खड़ाते हाथों से पैन पकड़कर जब वह लिखना शुरू करती है तो फिर रूकने का नाम नहीं लेती। हालांकि परीक्षा में उसे एक घंटा अतिरिक्त समय मिलता रहा है, लेकिन इस दुर्लभ बीमारी में अव्वल श्रेणी में जगह बनाना भी अपने आप में दुर्लभ है।
आईएएस बनने का है सपना:
कंचन सुथार मंद-मंद आवाज में बताती है कि जीवन में जो कुछ मिला है, उसी में खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए। मैंने भी यह निश्चय कर लिया है कि कभी नीरस नहीं होना, जो मैं कर सकती हूं, उससे भी बढ़कर करने की कोशिश करूंगी। मेरा सपना है कि मैं आईएएस बनकर देश की सेवा में रोल अदा करूं, खासकर उन लड़कियों के लिए प्रेरणा बनूं, जो दिव्यांग होने के चलते हिम्मत हार जाती हैं। मैं उन लड़कियों को भी संदेश देना चाहती हूं, जो आगे बढ़ने के चक्कर में अपने अभिभावकों को भूल जाती हैं। उनकी मान-मर्यादा, उनके सम्मान को ठेस पहुंचाकर पाया गया कोई भी सम्मान मायने नहीं रखता। जरूरी है कि समाज में मूल्यों व संस्कारों के साथ नई ऊंचाई को छुआ जाए।
मोबाइल से पकड़ी साहित्य की राह, मिली नई पहचान:
मां रोशनी देवी बताती हैं कि जब कंचन बीए प्रथम वर्ष में थी तो उसे स्क्रीन टच वाला फोन दिला दिया था, ताकि वह फ्री समय में मन बहला सके। लेकिन कंचन ने बिना किसी मदद के मोबाइल फोन से खुद में छिपी कला को निखारना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे टाइपिंग सीखती गई और शेयरों-शायरी व छोटी रचनाएं लिखने लगी। कंचन खुद बताती है कि मैंने जब पहली बार रचना लिखी तो बड़ी खुशी हुई। मेरी अधिकतर रचनाएं वास्तविकता से जुड़ी हुई हैं। मोबाइल फोन से मुझे प्रतिलिपि एप व कूकू एफएम ऐप के बारे जानकारी मिली। मैंने अपनी रचनाएं इन ऐप को भेजी तो उन्होंने इनको प्रकाशित और प्रसारित कर दिया। अब तक 300 से ज्यादा रचनाएं इन दोनों ऐप के द्वारा 4 बिलियन पाठकों तक पहुंच चुकी हैं। कूकूएफएम ऐप मुझे रिवार्ड भी देती है, जिससे पढ़ाई का खर्च मैं खुद उठाने लगी हूं।
अब तक लेखन सफर:
प्रतिलिपि भारत का सबसे बड़ा स्टोरी प्लेटफार्म है जिसपर कंचन महक सुथार की पहचान हरियाणा की छोरी से है। कंचन के यहां 12421 फोलोअर्स हैं और 3762961 यानि तीन मिलियन रीडर संख्या है। 300 रचनाएं, जिसमें शायरी, कविता, लेख व बीस छोटी कहानियां शामिल हैं। प्यार तो होना ही था, टशन ए इश्क, एक अनोखी दास्तां, राखी, मैं फिर भी तुमको चाहूंगी, प्यार तूने क्या किया पहली कहानी, बनूं मैं राजा की रानी पहली पांच घंटे की रचना व 3.5 लाख पाठक संख्या, हसीना क्यों बनी कातिल पहली हार्रर संस्पेस स्टोरी, जिसके 3 लाख पाठक हैं, पुरानी हवेली एक अफसाना, जिसके एक लाख पाठक, मनमर्जियां, कसक, दिल ए मुश्किल वेबसीरीज स्टोरी, हीरो बट रोल ऐज विलेन, रक्षक बना भक्षक सामाजिक कहानी के अब तक एक लाख पाठक हैं। बेहद वाला इश्क सीजन वन उपन्यास फेमस और प्रिमियम स्टोरी जिसके 1.6 मिलियन पाठक हैं।
इसी प्रकार कुकु एफ एम प्रसिद्ध ओडियो ऐप पर 922 फोलोअर्स हैं और 2 लाख 80 हजार से अधिक श्रोता हैं। कंचन की रचनाएं जो ओडियो में आ चुकी हैं, प्यार तो होना ही था, टशन ए इश्क, एक अनोखी दास्तां पहली दो घंटे की रचना, राखी, मैं फिर भी तुमको चाहूंगी, प्यार तूने क्या किया, बनूं मैं राजा की रानी पहली पांच घंटे की रचना, हसीना क्यों बनी कातिल पहली हार्रर संस्पेस स्टोरी, पुरानी हवेली एक अफसाना, कैसी! महोब्बत है सबसे बड़ा उपन्यास है।
जो रचनाएं अभी आनी हैं:
विंडचाइम, प्यार एक मौत हार्रर, ओ रे मनवा तू तो बावरा है पारिवारिक व सामाजिक रचना, मेरे पापा का सन-इन-लॉ, बेहद वाला इश्क सीजन-2 जिसके पाठक 3 लाख के करीब हैं।
दुर्लभ बीमारी है स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी, महंगा है इलाज
स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (एसएमए) बीमारी में बच्चे की स्पाइनल कॉर्ड यानी रीढ़ की हड्डी से संबंधित लकवा हो सकता है, ये स्थिति शरीर में एक जीन की कमी से होती है। स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉफी बीमारी होने के बाद बच्चा अधिक से अधिक 3 साल तक जीवित रह सकता है। इस दौरान उसमें लकवा, मांसपेशियों का काम न करना, शरीर में ताकत न रहना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। हालांकि सुनने और देखने की क्षमता प्रभावित नहीं होती है और बुद्धिमत्ता सामान्य या औसत से अधिक होती है।
स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉफी को ठीक करने वाली दवा का नाम जोलजेन्स्मा है, इसे नोवार्टिस दवा कंपनी ने बनाया है। यह दुनिया की सबसे महंगी दवा है। इसके एक डोज की कीमत 1.79 मिलियन पाउंड यानी 18.20 करोड़ भारतीय रुपए है।
कंचन के मामा डा. गौतम सुथार का कहना है कि परिवार की आर्थिक दशा इतनी सुदृढ़ नहीं कि यह डोज लगवाई जा सके। हालांकि उपचार की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है, जिस पर बहुत पैसा खर्च हो चुका है।