Dronacharya Gopal Krishna of 21st century

Dronacharya Gopal Krishna of 21st century21वीं सदी के द्रोणाचार्य गोपाल कृष्ण Dronacharya Gopal Krishna of 21st century

11 सालों से स्लम, गरीबों के बच्चों को दे रहे हैं शिक्षा

मंजिल मिल ही जाएगी भटकते हुए ही सही, गुमराह तो वे हैं जो घर से निकले ही नहीं…। इसी सोच के साथ घर से निकले हैं जीके भटनागर (गोपाल कृष्ण भटनागर)। वे वंचित, स्लम क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा देकर जीवन में कामयाबी की राहत पर दौड़ाना चाहते हैं। शिक्षा, पर्यावरण की उन्हें सबसे अधिक चिंता रहती है। क्योंकि ये दोनों ही जीवन में महत्वपूर्ण हैं। उम्र भले ही 69 साल हो गई हो, लेकिन युवाओं जैसा जोश उनमें हमेशा हिलोरे लेता है। आज भी वे समाजसेवा के क्षेत्र में निरंतर लगे हैं।

गुरुग्राम में रह रहे जीके भटनागर मूलरूप से तो हिमाचल प्रदेश के हैं। लेकिन वर्षों से द्रोण नगरी गुरुग्राम में ही बसे हैं। उनका एक मूल मंत्र है-मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। बस इसी मंत्र को जीवन में आत्मसात करके वे समाजसेवा रूपी समुद्र में कुशल तैराक बनकर दूसरों को काबिल बना रहे हैं। शारीरिक रूप से कद भले ही उनका छोटा हो, लेकिन व्यक्तित्व बहुत बड़ा है। बड़ी-बड़ी नौकरियां, लाखों रुपए मासिक वेतन का लोभ भी उन्हें बांध नहीं पाया और वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृति) लेकर वे समाजसेवा में ही जुट गए। गुरुग्राम में समाजसेवा को बेहतर तरीके से करने के लिए जीके भटनागर ने सुधा (सोसायटी फॉर अपलिफ्टमेंट एंड डेवेलपमेंट आॅफ ह्यूमन बीइंगस बाई एक्शन) सोसायटी बनाई। इसके बैनर तले समाजसेवा को प्रभावी तरीके से शुरू किया। शिक्षा और पर्यावरण पर उनका सबसे अधिक फोक्स रहता है।

सेक्टर-47 में देते हैं फ्री एजुकेशन अंडर द ट्री

यहां सेक्टर-47 में साउथ सिटी-2 स्थित ए-1 ब्लॉक में पेड़ों के नीचे उनका अस्थायी स्कूल (फ्री एजुकेशन अंडर द ट्री) चलता है। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षित करके मुख्यधारा में लाने का उन्होंने प्रण लिया है और उसे पूरा करने में दिन-रात जुटे रहते हैं। बच्चों को सिर्फ शिक्षा ही नहीं, बल्कि अच्छे संस्कार भी देते हैं। देश का हर तीज, त्यौहार, राष्ट्रीय पर्व वे बच्चों के साथ मनाते हैं, ताकि उनमें संस्कृति के साथ देशभक्ति भी पैदा हो। हाल ही में उन्होंने विधवा दिवस भी मनाया और एक विधवा महिला की 51000 रुपए देकर आर्थिक मदद की।

जीके भटनागर बताते हैं कि उन्होंने अपने इस स्कूल से 500 से अधिक बच्चों को शिक्षा की बेसिक नॉलेज देकर प्राइवेट, सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाया है। वहां पर बच्चे बेहतरीन पढ़ाई कर रहे हैं। नियमित तौर पर वे 75 से अधिक बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। वे कहते हैं कि जीवन जीने के लिए सब कुछ उन्हें हासिल है। ना तो किसी से शिकवा है और ना ही किसी से शिकायत। उन्होंने अपना जीवन समाजसेवा को समर्पित कर दिया है।

वे कहते हैं कि अगर हमें किसी को कुछ डोनेट करना है, कुछ देना है तो शिक्षा दें। किसी की सहायता करके हम उसे कुछ समय के लिए राहत दे सकते हैं, लेकिन व्यक्ति को शिक्षित करके हम उसे जीवन में कामयाबी की राह पर ले जाते हैं। उनकी समाजसेवा की राह में दोनों बेटियों यूएसए में रह रही पारुल व बंगलोर में रह रही विजिता और पत्नी शशि किरण का सदा साथ मिलता है। बेटियां बेशक दूर बैठी हों, लेकिन समाजसेवा के रूप में वे हर माह आर्थिक सहयोग भी उन्हें देती हैं।

निशुल्क पढ़ाते हैं अलग-अलग फील्ड के 25 लोग

उनके अस्थायी स्कूल में 25 शिक्षक भी बिना किसी शुल्क के अपनी सेवाएं देते हैं। यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए डॉक्टर, इंजीनियर, सेना अधिकारी की पत्नी, पत्रकार व आर्मी आॅफिसर आते हैं। शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को योगा भी कराया जाता है। वहीं कला में भी बच्चों को निपुण बनाया जा रहा है। मतलब साफ कि किसी भी तरह से बच्चों को भविष्य में सफल व्यक्ति बनाने के लिए वे काम करते हैं।

दो इंटरनेशनल अवार्ड भी मिले

जीके भटनागर को वैसे तो राष्ट्रीय, स्थानीय स्तर पर अनेक अवार्ड मिल चुके हैं, लेकिन उन्हें दो इंटरनेशनल अवार्ड भी प्राप्त हुए हैं। इसमें एक शाइनिंग वर्ल्ड कम्पैशन अवार्ड ताइवान की संस्था द सुप्रीम मास्टर शिंग हे इंटरनेशनल एसोसिएशन की तरफ से 2019 में मिला। इसमें 10 हजार डॉलर भी मिले। वहीं अमेरिकन लीडरशिप बोर्ड की तरफ से भी उन्हें अवार्ड दिया गया है। बता दें कि यही अवार्ड पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को भी दिया गया था। भारत में यह अवार्ड पाने वाले दो ही सदस्य हैं।

बैंकर के रूप में शुरू की थी जॉब

जीके भटनागर को शुरू में बैंकर की जॉब मिली थी। सिंडिकेट बैंक में वे बेहतर काम करते हए रूरल डेवेलपमेंट मैनेजर बने। वहां सीनियर मैनेजर बनने के बाद उन्होंने वीआरएस ले ली। इसके बाद 1999-2001 के बीच वे रूडसेट संस्था के निदेशक रहे। 2001 में रूडसेट से भी वीआरएस ली। 2003 से 2006 तक वे मिनिस्ट्री आॅफ एचआरडी में वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट में प्रमुख सलाहकार बने।

इसके बाद वर्ष 2009 में उन्होंने सुधा सोसायटी बनाई और आजाद पंछी की तरह काम करते हुए समाजसेवा को जीवन समर्पित कर दिया। वर्ष 2012 में स्पाइन में बैक्टीरिया हो जाने की वजह से उनकी मेजर सर्जरी हुई, लेकिन जहन में समाजसेवा ही रही। करीब एक साल में उन्होंने उपचार के साथ योगा आदि करके खुद को चलने के लिए तैयार कर लिया। 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा में भी उन्होंने 1001 कम्बलों की खेप भेजी।

अपने प्रोजेक्ट में पर्यावरण को भी देते हैं अहमियत

जीके भटनागर शिक्षा के साथ पर्यावरण को भी अहमियत देते हैं। हर साल वे सेंकड़ों पेड़-पौधे लगाते हैं और उनकी संभाल की जिम्मेदारी खुद भी लेते हैं व दूसरों को भी देते हैं। एक परिवार द्वारा दो पौधों को गोद लिया जाता है। किसी भी कार्यक्रम में उपहार के रूप में भी वे पौधों को प्राथमिकता देते हैं। सभी को प्रेरणा देते हैं कि अपने बच्चों की तरह पेड़-पौधों का संरक्षण करें। एक साल पूर्व उन्होंने एक नया प्रयोग किया था।

गमले आदि खरीदने पर पैसा बर्बाद करने की बजाय उन्होंने शहर में जगह-जगह पर नारियल पानी बेचने वालों के पास से खाली नारियल के खोल उठाने शुरू किए। उनमें पौधे लगाकर लोगों को उपहार में बांटे। इसके अलावा भी कई नए प्रयोग करके जीके भटनागर लोगों को शिक्षा, प्रकृति की ओर आकर्षित करते हैं।

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