अवर्णनीय है रहमतें -सत्संगियों के अनुभव Experiences of Satsangis -पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी अमरजीत सिंह इन्सां पुत्र श्री हाकम सिंह निवासी गांव गोनेयाना कलां जिला भटिंडा (पंजाब) प्रेमी जी से पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई रहमतों के कुछ वृत्तांत इस तरह बयान करता है।
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…कैसे अमरजीत! मूंगफली ओर लाएं?
प्रेमी जी बताते हैं कि मैं डेरा सच्चा सौदा सेवा समिति में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के समय से सेवा करता आ रहा हूँ। 23 सितंबर 1990 को पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा की गुरुगद्दी बख्श दी। अब हजूर पिता जी उन दिनों कहीं भी सत्संग करते तो परमपिता जी को अपने साथ लेकर जाते और उन दिनों 2-4 बार ऐसा हुआ भी था
और दोनों ही पवित्र बॉडियां एक-साथ सत्संग की शाही स्टेज पर विराजमान होते। एक बार परमपिता जी ने हजूर पिता जी को अकेले सत्संग करने के लिए एमएसजी डेरा सच्चा सौदा व मानवता भलाई केंद्र, बरनावा (यू.पी.) भेज दिया तथा स्वयं सरसा दरबार में रहे। उस समय परमपिता जी के हुक्मानुसार सारी संगत पूज्य हजूर पिता जी को ‘संत जी’ कह कर संबोधित किया करती थी। इससे पहले परमपिता जी जब भी सत्संग करने के लिए यू.पी. दरबार में जाते तो डेरा सच्चा सौदा की सेवा समिति की गाड़ियों का काफिला भी साथ हुआ करता था।
काफिला कई स्थानों पर अक्सर रुक-रुक कर जाता था। रास्ते में कहीं कोई सेवादार या आॅन रोड किसी गांव की साध-संगत की तरफ से चाय-पानी आदि का प्रोग्राम किया होता, तो पूजनीय परमपिता जी साध-संगत के प्रेमवश रुक जाया करते व संगत को अपने पावन आशीर्वाद से निहाल करते। एक बार पूज्य हजूर पिता जी बरनावा में सत्संग के लिए सरसा दरबार से रवाना होने लगे तो आपजी ने गाड़ी में बैठने से पहले ही सभी सेवादारों को आदेश दिया कि रास्ते में रुकने की बजाय सीधा यू.पी. दरबार में ही रूकना है। तब सर्दियों के दिन थे, और धुंध भी जोरों से पड़ती थी।
काफिला जब सोनीपत पहुंचा तो हमारी समिति वाली गाड़ी के ड्राइवर ने हाकम सिंह के गुरबख्श भुल्लर को कहने पर गाड़ी की स्पीड तेज करके काफिले से काफी दूरी बना ली और आगे एक रेहड़ी वाले के पास गाड़ी रोककर मूंगफली खरीद ली और तुरंत गाड़ी भगा ली, ताकि पूज्य हजूर पिता जी को हमारी इस बात का पता न चले। यह हमारी बहुत भारी गलती थी। जिस तरह कोई भी माँ दाई से अपना पेट छुपा नहीं सकती, उसी तरह कोई भी शिष्य अपने मुर्शिद से कुछ भी छुपा नहीं सकता। गाड़ी में हम रास्ते में मूंगफली खाते गए।
पूज्य हजूर पिता जी ने उस दिन यू.पी. दरबार में सेवादारों के लिए स्पेशल गजरेले का प्रशाद तैयार करवाया। पिताजी के हुक्मानुसार सभी सेवादारों को कटोरियां भर-भरकर प्रशाद बांटा गया। मुख्य जिम्मेवार सेवादारों को डर था कि ऐसे तो प्रशाद पूरा कैसे आएगा, क्योंकि देखा जाए तो सेवादारों की संख्या के हिसाब से प्रशाद काफी कम था। लेकिन हुक्म था पेटभर प्रशाद खिलाने का। परंतु मालिक-सतगुरु की रहमत से ऐसा करने पर फिर भी प्रशाद बाकी था। उपरांत पूज्य गुरु जी के हुक्मानुसार सभी सेवादारों को यह प्रशाद दोबारा फिर उसी तरह ही कटोरियां भर-भरकर बांटा गया था। परंतु आश्चर्य इस बात का था कि उस बर्तन में तब भी प्रशाद उतने का उतना ही था।
इसके उपरांत पूज्य गुरु जी के ही हुक्मानुसार मानसा वाले सभी सेवादारों को भी कटोरियां भर-भरकर प्रशाद बांटा गया, परंतु पूज्य गुरु जी यानि सेवा समिति वाले सेवादारों की तरफ पूरी तवज्जो से देकर देख रहे थे। सेवा समिति के सेवादार जोगेंद्र सिंह मेरे नजदीक होकर धीरे से कहने लगा कि अमरजीत! पिताजी तो हमारी तरफ ही देखे जा रहे हैं, कोई बात तो जरूर है! उसके इतना कहने की देर थी कि पूज्य गुरु जी ने हमें मुखातिब करके फरमाया, आह समिति वाले भूखे हैं, इन्हें खिलाओ। जोगेंद्र सिंह कहने लगा कि भाई अपनी रास्ते वाली चोरी पकड़ी गई। आपां सारे चलकर अपनी इस गलती की पूज्य गुरु जी से माफी मांग लें! तो हम सभी सेवा समिति वाले सेवादार पूज्य गुरु जी के समक्ष हाथ जोड़कर खड़े हो गए। घट-घट की जाननहार सतगुरु पूज्य हजूर पिता जी ने फरमाया, ‘कैसे अमरजीत! मूंगफली और लाएं?’ पूज्य गुरु जी के पवित्र मुखारबिंद से इतना सुनते ही हम लोग बहुत शर्मसार हुए और पिता जी से माफी मांगने लगे।
पूज्य गुरु जी ने हमें मुखातिब करके पूछा, ‘भाई हुक्म था क्या रास्ते में रूकने का?’ हम सभी ने ना में सिर हिलाया। गुरु जी कहने लगे, ‘आगे से करोगे गलती?’ हम सभी सेवादार पूज्य गुरु जी की पावन हजूरी में तौबा करने लगे। दयालु दातार जी ने हंसते-हंसते हमें माफी भी दे दी। उधर उस बर्तन में गजरेले का प्रशाद अभी भी उतने का उतना ही पड़ा हुआ था। मुख्य जिम्मेवार सेवादार पूज्य हजूर पिता जी के सम्मुख हाथ जोड़े खड़े थे कि पिता जी, प्रशाद तो समाप्त नहीं होता जी। यह तो अभी भी उतना ही पड़ा है जी।
सर्व-सामर्थ सतगुरु जी ने फरमाया, अच्छा भाई! अब सभी सेवादार अपने हाथों से सीधे ही बर्तन में से प्रशाद उठा-उठाकर खाओ। इतना कहने की देर थी कि सभी सेवादारों ने उस बर्तन में से सीधे ही प्रशाद ले-लेकर खाना शुरु कर दिया, तो कहीं जाकर प्रशाद खत्म हुआ। बर्तन की समर्था करीब चालीस किलो की थी तथा उसमें प्रशाद बीस-पच्चीस किलो ही था और दूसरी तरफ सेवादार कई सैंकड़ों की गिनती में थे। इस तरह प्रशाद बार-बार बांटने पर भी खत्म नहीं हुआ था और फिर सतगुरु मुर्शिदे-कामिल के हुक्म से ऐसा करने पर ही उस बर्तन से प्रशाद खत्म हुआ।
दिनांक 25 जून 1996 को पूज्य हजूर पिता जी ने हमारे घर पर अपने पावन चरण टिकाए। उस समय मैं अपने घर पर नहीं था, यानि किसी काम से बाहर गया हुआ था। पिता जी ने मेरे सारे परिवार का हाल-चाल पूछा। जब मैं सरसा दरबार में अपनी सेवा की डयूटि पर आया तो मैंने अपने घर से अपनी गैर हाजिरी के लिए पूज्य सतगुरु जी की पावन हजूरी में हाथ जोड़कर क्षमा याचना की। तो सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, ‘हम तो तेरे जवाकों (बच्चों) को मिलने गए थे।’ इस तरह पिता जी ने मुझे और मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्य को अत्यंत खुशियां बख्शी।
…भाई! इनकी तो सेवा ही बहुत है
सन् 2008 में मुझे गदूद की समस्या के कारण डॉक्टरों ने आॅप्रेशन करवाने की सलाह दी। दिसंबर की छुट्टियों में मैं अपने बेटे एडवोकेट केवल बराड़ के साथ भटिंडा में डॉक्टर चहल के पास आॅप्रेशन करवाने के लिए चला गया। डॉक्टर ने मेरे टेस्ट आदि करने के बाद कहा कि गुर्दे में गांठ है, इसका इलाज पहले करवाओ। इसका टेस्ट करवाना पड़ेगा।
जब एम.आर.आई. टेस्ट करवाया तो मेरे बेटे ने मुझे कहा कि पापा जी, आप घर चले जाओ, टेस्ट की रिपोर्ट मैं ले आऊंगा। असल में रिपोर्ट से कैंसर की शंका पूरी तरह से क्लियर भाव स्पष्ट हो चुकी थी। मेरे बेटे ने यह सभी रिपोर्टें भटिंडा के कुछ स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को दिखाई। परंतु सभी डॉक्टर जवाब दे गए कि इसका आॅप्रेशन तो दिल्ली एम्स में ही होगा, परंतु मेरे बेटे ने मुझे यह असल बात नहीं बताई, मेरे से छुपा कर ही रखा।
अगले दिन जब मैंने अपने बेटे तथा बेटी को रोते हुए देखा तो मुझे असली बात का पता चल गया। डॉक्टरों के अनुसार, एक गुर्दा कैंसर के कारण पूरी तरह से खराब हो चुका है। इसके बाद हमने पूरे परिवार ने डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में जाने की सलाह बनाई कि इस संबंध में पूज्य सतगुरु जी से मिला जाए और जैसा यानि जो भी पूज्य पिता जी वचन करेंगे, वैसा ही हम करेंगे। दूसरे दिन हम डेरे में आ गए। सुबह की मजलिस के बाद सचखंड हाल में पूज्य हजूर पिता जी को मिलकर अर्ज की तो सच्चे पातशाह जी ने मुझ पर अपनी पावन दृष्टि डालते हुए वचन फरमाया कि ‘बेटा! फिक्र नहीं करना। अपने यहां ओसवास के डॉक्टर भी आते हैं और एम्स से भी आते हैं।
आप उनकी राय ले लो। परंतु करना वैसा ही है, जैसा अपने अस्पताल के डॉक्टर कहें।’ मैं और मेरे परिवार ने उसी तरह ही किया। अगले दिन यानि रविवार को यहां दरबार में इस संबंध में मुफ्त मैडिकल कैंप होने के कारण बाहर के अस्पतालों के कई बड़े डाक्टर भी अपनी सेवाएं देने के लिए सरसा दरबार में पहुंचे हुए थे। तो इस तरह पूज्य पिता जी ने उन डॉक्टरों की राय लेने वाला काम यहीं पर ही भुगता दिया। और उसी दिन उनके अनुसार ही सारे टेस्ट भी हो गए। अपने यहां के शाह सतनाम जी स्पेशलिस्टी अस्पताल के सर्जन डॉक्टर एम.पी. सिंह ने मेरे सारे टेस्ट देखने के उपरांत अगले ही दिन यानि सोमवार को आॅप्रेशन करने के लिए कह दिया। डॉ. एम.पी. सिंह ने यह भी कहा कि हम आॅप्रेशन खुद ही करेंगे। मेरा आॅप्रेशन सुबह पौने छह बजे से दोपहर बारह बजे तक यानि करीब 6 घंटे चला।
वह खराब हुआ गुर्दा सारा ही निकाल दिया गया। वह आॅप्रेशन जिसे करने के लिए बड़े-बड़े डॉक्टर भी पीछे हट रहे थे, पूज्य गुरु जी की रहमत से यहां अपने दरबार के शाह सतनाम जी स्पेशलिटी हॉस्पिटल के स्पेलिस्ट सर्जन साहिब द्वारा कुछ घंटों में सफलतापूर्वक कर दिया गया और बाद में इसकी मैडिकल रिपोर्ट भी बिलकुल ठीक आई कि कैंसर केवल गुर्दे के अंदर-अंदर ही था, जोकि अन्य डॉक्टरों के बताए अनुसार वाकई बहुत ही असंभव घटना थी। लेकिन असल में मेरा कैंसर तो पूज्य सतगुरु जी ने अपने इन वचनों से कि भाई करना वैसे ही है जैसा अपने अस्पताल के डॉक्टर कहें, फरमाकर काट दिया था।
बाद में उस रात भटिंडा ब्लॉक की रूबरू नाईट में जब मेरे बेटे केवल बराड़ इन्सां ने कैंसर की रिपोर्टें दिखाते हुए सतगुरु जी की अपार रहमत का पूरा करिश्मा हाजरीन साध-संगत में सुनाया तो सर्व-सामर्थ पूज्य सतगुरु जी ने मुस्कुराते हुए फरमाया कि ‘भाई! अमरजीत ने तो ठीक होना ही था। इनकी तो सेवा ही बहुत है।’ मुझ पर सतगुरु जी के इतने परोपकार हैं जिनका मैं लिख-बोलकर वर्णन ही नहीं कर सकता।
मेरी अपने सच्चे रहबर पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र चरण-कमलों में विनती है कि हमारे सारे परिवार को अपने पविद्ध चरणों में जोड़े रखना तथा सेवा-सुमिरन व अपनी दृढ़ता का बल हमें बख्शना जी।
































































