Experiences of Satsangis -sachi shiksha hindi

सतगुरु जी ने लड़के की दात बख्श दिली मुराद पूरी की -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम

प्रेमी हंसराज खट्टर पुत्र श्री गुरांदित्ता मल गऊशाला रोड सरसा शहर से अपनी बहन मल्लो देवी पर हुई शहनशाह मस्ताना जी महाराज की अपार दया-मेहर, रहमत का वर्णन इस तरह करता है:-

मेरी बहन मल्लो देवी पुत्री श्री अत्तर चंद सरसा शहर में ही रहते हैं। श्री अत्तर चंद के पहले तीन लड़कियां ही थी। पुत्र की इच्छा के लिए ही उसने दूसरी शादी मेरी बहन से की थी। मेरी बहन ने पूज्य मस्ताना जी महाराज से नाम लिया हुआ था। मेरी बहन के पास उन दिनों दूध देने वाली एक गाय थी। एक अच्छी गाय पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने खरीदनी थी। सेवादार प्रेमी इस गाय का एक सौ पच्चीस रुपये मोल लगाकर उसे डेरा सच्चा सौदा दरबार में ले गए। प्रेमी सेवादार उन्हें कह आए कि तुम्हारे पैसे हम जाकर भेज देंगे। लेकिन वहां से कई दिनों तक पैेसे देने कोई न आया।

एक दिन मेरी बहन तथा बहनोई अपने घर से यह सोच कर डेरा सच्चा सौदा दरबार की ओर चल पड़े कि शहनशाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन भी कर आएंगे और पैसे भी ले आएंगे। रास्ते में चलते-चलते मेरी बहन ने अपने मन में ही पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज के चरणों में विनती की कि हे सतगुरु जी (पूज्य मस्ताना जी) अगर हमारे घर लड़का हो जाए तो हम सोने की मुहर डेरे के दरवाजे में ठोकेंगे अर्थात् डेरे के गेट पर सोने की एक मुहर लगाएंगे। उस समय डेरे के दरवाजों में चांदी के रुपये जोड़कर बहुत सुन्दर डिजाईन बनाए हुए थे।

जब वे दोनों डेरा सच्चा सौदा दरबार के अंदर दाखिल हुए तो सामने पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज के उन्हें दर्शन हुए। मेरी बहन तथा बहनोई को देखते हुए पूज्य शहनशाह जी ने वचन फरमाया- ‘भाई! अपनी गाय वापिस ले जाओ, यह तो टांग मारती है।’ वह दोनों शहनशाह जी के चरणों में हाथ जोड़कर बोले, ‘जी वापिस ले जाते हैं।’ जब वह वापिस आने लगे तो शहनशाह जी ने उन्हें इशारे से अपने पास बिठा लिया। पूज्य मस्ताना जी कमरे के अंदर से कई खेस लेकर बाहर आए और और मेरे बहन-बहनोई को बोले, ‘तुम यह खेस ले जाओ। हमने तुम्हारी गाय का दूध पिया है।

’’ उन्होंने हाथ जोड़कर इंकार करते हुए कहा कि आप जी ने चारा डाला, दूध पिया तो फिर क्या हुआ, हम खेस नहीं ले जाएंगे। फिर पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी अपनी मौज में आकर अंदर से तीन आम लाए और मेरी बहन को देते हुए बोले, ‘‘पुट्टर! झोली कर!’ तीनों आम झोली में डालते हुए वचन किए कि, ‘ये आप ने ही खाने हैं किसी को मत देना।’ मेरी बहन ने अपने मालिक-सतगुरु का हुक्म मानकर तीनों आम खा लिए। और उसके पश्चात् मेरी बहन के यहां समय पाकर एक-एक करके तीन लड़के पैदा हुए। और जब चौथा लड़का हुआ तो वह चल बसा। इस समय के दौरान वे पानीपत में जाकर बस गए थे।

मेरी बहन ने जो सोने की मुहर वाला वायदा किया था, समय गुजरने के साथ-साथ वह भूल गई थी। कुछ साल बाद वह फिर से सरसा शहर में आकर रहने लगे। जब मेरी बहन के बड़े लड़के कल्याण दास की शादी होने लगी तो उसे एकदम से वह सोने की मुहर वाली बात याद आ गई जो उसने अपने सतगुरु से खुद ही दिल में सकंल्प किया था। उसने वह सारी बात अपने परिवार में बताई और कहा कि हमने सोने की मुहर सच्चा सौदा दरबार के दरवाजे पर लगानी है।

उसी दिन मैं तथा मेरी बहन का सारा परिवार सोने की मुहर लेकर डेरा सच्चा सौदा में पहुंच गए। उस समय डेरा सच्चा सौदा में पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के वारिस पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज गद्दीनशीन थे। मेरी बहन ने उक्त सारी बात पूज्य परम पिता जी के श्रीचरणों में अर्ज कर दी। इस पर पूजनीय परम पिता जी मेरी भांजी (जो उस समय छोटी उम्र में यानि छोटी बच्ची थी) की तरफ इशारा करके बोले, ‘ये लड़की कौन है।’ मेरी बहन ने कहा कि यह मेरी सौतेली लड़की है। कुल मालिक पूज्य परम पिता जी ने फरमाया, ‘तुम्हारी सोने की मुहर हमारे पास आ गई है। हम यह मुहर इस लड़की को देते हैं।’

पूज्य परम पिता जी ने वह मुहर उस लड़की को प्रदान करते हुए फरमाया, ‘ले बेटा, यह तेरे काम आएगा।’ इस प्रकार पूज्य सतगुरु जी ने मेरी बहन के परिवार पर अनेक रहमतें बरसाई। मेरी बहन का सारा परिवार आज भी डेरा सच्चा सौदा से जुड़ा हुआ है। उनके बच्चों ने परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज तथा उसके पोतों-पोतियों ने परम पूजनीय मौजूदा हजूर पिता जी से नाम लिया है व सारा परिवार अपने मुर्शिदे-कामिल के आदेशानुसार मानवता की सेवा में भी लगा हुआ है।

जो जीव अपने सतगुरु पर दृढ़ विश्वास करते हैं, सतगुरु उनकी सभी मुरादें पूरी करते हैं। यहां पर स्पष्ट किया जाता है और बच्चा-बच्चा जानता है कि डेरा सच्चा सौदा में एक पैसा भी नहीं लिया जाता और न ही कोई किसी प्रकार का सामान आदि लिया जाता है।

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