Love निश्छल प्रेम के आगे कुछ भी नहीं
एक व्यक्ति अपने एक मित्र से मिलने के लिए उनके घर गया। वहाँ मित्र की नन्ही नातिन एक फलों की टोकरी के पास बैठी हुई थी और उसने अपने दोनों हाथों में एक-एक सेब पकड़ा हुआ था। व्यक्ति ने नन्ही बच्ची की ओर मुस्कुराकर देखा और कहा, ‘मेरी प्यारी गुड़िया! एक सेब मुझे भी दो न।’
नन्ही बच्ची ने आगंतुक की ओर देखा और एक सेब को अपने दाँतों से कुतर कर उसका एक टुकड़ा चबाने लगी। फिर फौरन ही उसने दूसरे सेब से भी एक टुकड़ा काटा और उसे भी चबाने लगी। आगंतुक को बच्चे की ये हरकत अच्छी नहीं लगी। उसने मन ही मन सोचा कितनी चालाक है ये बच्ची। उसने दोनों सेबों को ही एक साथ जूठा कर डाला ताकि किसी को देने न पड़ें।
वह बच्ची को शिष्टाचार का सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा। वह सोफे पर बैठा ही था कि बच्ची उसके पास आई और दोनों में से एक सेब उसकी तरफ बढ़ाते हुए मासूमियत से तुतलाती हुई बोली, ‘आप ये छेब ले लो, ये ज्यादा मीथा है।’ बच्ची के निश्छल प्रेम और आत्मीयता के सामने व्यक्ति को अपना ज्ञान और अनुभव बौना लगने लगा। वैसे भी हम कितने ही ज्ञानवान अथवा अनुभवी क्यों न हों, हमें फौरन किसी परिणाम पर पहुँचने अथवा निष्कर्ष निकालने से पहले दूसरों को पूरी तरह समझने के लिए उन्हें कार्य पूरा करने अथवा बोलने का अवसर अवश्य देना चाहिए। जल्दबाजी में लिया गया निर्णय अथवा निष्कर्ष भ्रामक हो सकता है।
प्राय: जल्दबाजÞी में हम दूसरों के बारे में गलत राय ही कायम कर लेते हैं जो हमारे हित में नहीं हो सकती। जल्दबाजी में ऐसे परिणाम पर पहुँचना हमारे अच्छे संबंधों के विकास में भी बाधक बनता है। वैसे भी दूसरों की भावनाओं की कद्र न करना अथवा उन्हें महत्त्व न देना हमारे अंदर प्रेम के अभाव का ही द्योतक है। जो स्वयं प्रेममय हो, वही किसी के प्रेम को समझ सकता है। यदि हम किसी के आत्मीय व्यवहार में भी कमी निकालने का प्रयास करते हैं तो हम सचमुच हृदयहीन ही हैं।
हमें उदात्त मानवीय मूल्यों की कद्र करनी चाहिए। यद्यपि शिष्टाचार व अनुशासन का किसी भी तरह से कम महत्त्व नहीं लेकिन आत्मीयता व निष्छल व्यवहार के सामने सभी मूल्य गौण हो जाते हैं। इससे बड़ा नैतिक मूल्य क्या हो सकता है कि आप दूसरों को तो अच्छी से अच्छी चीज दें और स्वयं कम अच्छी चीज का उपभोग करके भी संतुष्ट रहें या अपनी सारी की सारी वस्तु दूसरों को दे दें, बिल्कुल एक माँ की तरह जो स्वयं तो रात भर गीले बिस्तर पर लेटी रहेगी लेकिन अपने नन्हे शिशु को सर्दी व गीलेपन से पूरी तरह सुरक्षित रखेगी अथवा अपने बच्चों का हर स्थिति में पेट भरने का प्रयास करेगी चाहे स्वयं उसे भूखे ही क्यों न रहना पड़े।
किसी भी रूप में दूसरों की केयर करने से बड़ी बात कोई हो ही नहीं सकती। कुछ लोग सेबों को जूठा करने को एक दोष के रूप में ले सकते हैं लेकिन एक नन्ही बच्ची के संदर्भ में क्या यह सचमुच एक दोष ही है? कदापि नहीं। यहाँ कार्य करने का तरीका नहीं, भावना महत्त्वपूर्ण है। भीलनी ने जब भगवान राम के आगमन के विषय में सुना तो उसने भी भगवान राम के लिए चख-चख कर मीठे बेर रखे थे। उसकी भावना के कारण ही भगवान राम ने उन झूठे बेरों को सहर्ष स्वीकार किया। उन्हीं झूठे बेरों के कारण भीलनी की भक्ति बेजोड़ मानी गई है और उसका चरित्र महान।
कितना अच्छा हो जाए अगर हम भी क्षुद्र मनोभाव त्यागकर सेब वाली बच्ची अथवा भीलनी जैसे मनोभावों से युक्त हो जाएँ। -आशा गुप्ता