बच्चों को क्रिएटिव बनाती है प्ले थेरेपी
प्ले थेरेपी बच्चों के लिए बहुत जरूरी होती है। प्ले थेरेपी की मदद से बच्चे एक-दूसरे के साथ खेलना, शेयर करना और टीम वर्क सीखते हैं।
यह उनके मानसिक और शारीरिक विकास के साथ व्यवहारिक विकास के लिए भी बेहद जरूरी होता है क्योंकि स्कूल से लेकर खेल के मैदान तक उन्हें एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करना सीखना बहुत जरूरी है। प्ले थेरेपी उनके भविष्य के लिए भी बेहद फायदेमंद है।
इसकी मदद से वे नयी-नयी क्रिएटिविटी भी सीखते हैं। साथ ही बहुत सारे बच्चों के लिए यह एक थेरेपी की तरह है, जिसकी मदद से वह अपनी जिंदगी में घटे हादसों को भूला सकें। बहुत से बच्चे किसी घटना से इतना डर जाते हैं कि वह अपने माता-पिता से भी कुछ कह नहीं पाते हैं। साथ ही वह बहुत उदास हो जाते हैं और उनका पढ़ने-लिखने में भी मन नहीं लगता है। प्ले थेरेपी ऐसे बच्चों के लिए काफी फायदेमंद है। इसकी मदद से उन्हें अपने दिल की बात बोलने या सभी बच्चों के साथ घुलना-मिलना सिखाया जाता है। प्ले थेरेपी की मदद से बच्चे अपनी बात भी खुलकर कहना सीखते हैं।
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इसके बारे में विस्तार से बता रहे हैं गुड़गांव के आर्टेमिस अस्पताल के पीडियाट्रीशियन डॉ राजीव छाबड़ा।
प्ले थेरेपी के फायदे:
प्ले थेरेपी की मदद से बच्चों को काफी फायदेमंद होता है। इससे बच्चों के व्यवहार में काफी अंतर देखने को मिलता है।
- व्यवहार में अधिक समझदारी आना
- कंपटीशन की भावना आना और क्रिएटिव होना
- आत्मविश्वास बढ़ाना
- दूसरों के लिए प्यार और सम्मान
- बच्चों की चिंता दूर होना
- अपनी भावनाओं को अनुभव करना और व्यक्त करना सीखना
- टीमवर्क और शेयर करना सीखना
- पारिवारिक रिश्ते मजबूत होना
प्ले थेरेपी कब इस्तेमाल करना चाहिए
- कोई बीमारी या चोट के बाद
- मानसिक और शारीरिक विकास में देरी होना
- स्कूल में बच्चे का व्यवहार अच्छा न होना
- बहुत गुस्सैल व्यवहार होना
- माता-पिता के तलाक, किसी की मौत, अलगाव के बाद आपका बच्चा अगर उदास रहता है
- किसी दर्दनाक घटना के बाद
- खाने और पढ़ने के वक्त बहाना बनाने पर
- अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी (एडीएचडी)
- आॅटिज्म स्पेक्ट्रम डिसआॅर्डर(एएसडी)
प्ले थेरेपी की तकनीक
बच्चों को प्ले थेरेपी देने की बहुत सारी तकनीक है। प्रत्येक सत्र कम से कम आधे घंटे का होना चाहिए और कितने सत्र लगेंगे, ये बच्चे पर निर्भर करता है कि वह कितने समय में नयी चीजें सीख पाता है। थेरेपी व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से भी दी जा सकती है। थेरेपी में लिखित, मौखिक या निर्देशात्मक एक्टिविटी को रख जा सकता है, जिससे बच्चा कनेक्ट महसूस कर सके।
- ड्राइंग बनाना या देखकर सीखना
- कहानी सुनाना
- खिलौने को जगह पर लगाना
- क्राफ्ट एंड आर्ट सीखना
- मिट्टी और पानी से खेलना
- म्यूजिक सुनना
- किसी पालतू जानवर की देखभाल करना
- डांस करना या ग्रूप डांस करना
प्ले थेरेपी के माध्यम से बच्चे की भावनाओं को समझने की कोशिश की जाती है और कमियों या दर्द से उभरने में मदद की जाती है। साथ ही बच्चा इससे अच्छी आदतें सीखता है। नये दोस्त बनाना, बड़ों का सम्मान करना और अपनी बातें कहना भी सीखते हैं। प्ले थेरेपी माता-पिता अपने बच्चों के साथ घर में भी कर सकते हैं।
अगर बच्चे को ज्यादा परेशानी न हो, तो आप घर में उन्हें प्ले थेरेपी दे सकते हैं। अगर आपका बच्चा इकलौता बच्चा है, तो उन्हें केयरिंग और शेयरिंग सीखाना बहुत जरूरी है। ताकि वह आगे के जीवन में सभी के साथ सामंजस्य बैठा सकते हैं। डॉ राजीव के अनुसार इससे आप ऐसे समझ सकते हैं कि अगर हम क्रिसमस ट्री बना रहे हैं तो, हमारी कोशिश होनी चाहिए कि बच्चों को दो ग्रूप में बांट दें। उन्हें अपनी-अपनी क्रिसमिस ट्री बनाने का काम दें, जिससे वह एक-दूसरे के साथ खेलने और बांटने की आदत सीखें।