बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में नहीं, अपने दिलों में जगह दो, सम्मान दो : पूज्य गुरु जी
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने समय के साथ दुनियावी रिश्तों में आ रहे बदलाव पर गहरी चिंता जताई। आपजी ने युवाओं से अपने बुजुर्गों को सम्मान देने और वृद्ध आश्रम न भेजने की अपील करते हुए फरमाया कि जो बुजुर्ग मां-बाप होते हैं, लोग उनका उतना सत्कार नहीं करते जितना हमारी संस्कृति कहती है। कई बार कुछ लोग हमारे पास आए, कहने लगे, गुरु जी! हमारे मां-बाप बीमार हैं आप प्रसाद दे दीजिये।
हमने कहा ठीक है, आप डॉक्टर को दिखाइये, उनकी सेवा कीजिये। कहते जी, बहुत बुरा हाल है, उनका पेशाब हमें उठाना पड़ता है, टॉयलेट उठानी पड़ती है, बड़ी मुश्किल है। कुछ ऐसा प्रसाद दीजिये कि हमें उनका लेटरिंग-पेशाब न उठाना पड़े। अरे कैसे बच्चे हैं आप, उन्होंने आपका बचपन में लेटरिंग-पेशाब उठाया, आपकी गंदगी उठाई है। आप उन्हें भूल जाते हैं। अरे अपनी गृहस्थी सजी नहीं, कि जो मां-बाप थे, जिनके सिर पर आप कूदा करते थे, आपको पाल पोस कर जिन्होंने बड़ा किया, आपको बड़ा बनाया। और आप सोचते हो कि उनसे कब मुक्ति मिलेगी। आज के दौर में ये बात आम है।
पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि हमने एक कार्य शुरू किया है, ‘अनाथ मातृ-पितृ सेवा’। उसका मतलब ही ये है कि जिन बुजुर्गों का कोई भी नहीं है, सारी साध-संगत मिलकर उनका साथ दे, रैन बसेरा उनके लिए बनाए। हो सके तो अपने-अपने ब्लॉक में ऐसे घर बना दें। जिस पर लिखा हो अनाथ वृद्ध आश्रम और नीचे लिखा हो अनाथ मातृ-पितृ सेवा। तो उसमें अगर कोई छोड़ने आए तो उसके सार्इंन जरूर किसी फार्म पर करवाए जाएं, जिस पर लिखा हो कि ये अनाथ हैं। ये लिखा हो कि हम उनके बच्चे हैं और छोड़ने आए हैं। अगर छोड़ने ही आ गए तो आप उनके बच्चे कहां से हुए?
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मां-बाप की बात करें तो आज के युग में मां-बाप को तो लोग वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं। लेकिन हमारी निगाह में वहां बोर्ड लगा हुआ होना चाहिये, अनाथ वृद्ध आश्रम का। कम से कम उनको शर्म तो आए कि हम मर चुके हैं, इसलिए बेचारे अनाथ बुजुर्ग वहां जा रहे हैं। जिन्होंने भी ये वृद्ध आश्रम बनाए हैं, हम हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि उस पर लिखें ‘अनाथ वृद्ध आश्रम’। कम से कम ये तो पता चले कि मां बाप के लिए वो बच्चे मर चुके हैं या बच्चों के लिए मां-बाप मर चुके हैं। आपको शर्म नहीं आती, लाहनत है ऐसे लोगों पर जो जीते जी अपने मां-बाप को घर से निकाल देते हैं। और मां-बाप को भी चाहिये कि वो बिना वजह बच्चों के मोह-प्यार में फंसकर उनकी हर बात पर अडंगा न लगायें। आप जब हर बात पर टोंकते हैं, गलतियां आपकी भी हैं। सिर्फ बच्चों की गलतियां नहीं।
एक उदाहरण आपको बताते हैं। पुराने समय की बात है, जो बिलकुल सच्ची बात है। एक परिवार में बुजुर्ग माता थी, जो उठ नहीं पा रही थी, उसकी घरवाली कहने लगी मेरे से इसकी सेवा नहीं होती। तो वो आदमी कहने लगा ये मेरी मां है। मैं तो इसकी सेवा करूंगा। दोनों में झगड़ा होने लगा, आखिर में उस मां के बेटे ने अपनी पत्नी की बात सुन ली। कहने लगा फिर क्या करें। पत्नी बोली, सांस तो कोई-कोई आ रहा है, गला दबा दीजिये या कोई ऐसी दवा दे दीजिये ताकि बेचारी बैकुंठ चली जाए। कहती पहले कब्र खोद आइये, फिर इसको वहां दफना देंगे। लोगों को कहेंगे कि बीमार थी, लोग साथ हो लेंगे। पति कहने लगा ठीक है। अब छोटा-सा बच्चा वहां खड़ा सब सुन रहा था, तो उसने क्या किया वो भी अपने पापा के साथ चल दिया, वो कब्रिस्तान पहुंचे, कब्र खोदनी शुरू की तो बच्चा बोला, पापा क्या कर रहे हो, तो कहने लगा आपकी दादी आम्मा को यहां दफनाएंगे। तो वो फावड़ा चलाने लगा, थोड़ी देर के बाद उसको सांस चढ़ने लगी और उसने कस्सी रख दी।
अब वो पांच साल का जो बच्चा था, उसने कस्सी उठाई और साथ में एक छोटा गड्ढ़ा खोद दिया। अब बाप ने हंसते हुए पूछा, अरे बेटा! तू ये क्या कर रहा है। तो बड़ी मासूमियत में बच्चे ने जवाब दिया, पापा! यहां दादी अम्मा को दफना रहे हो, तो जब मैं बड़ा होऊंगा तो यहां आपको दफनाऊंगा। उस आदमी की आंखें खुल गई, वो रोता हुआ घर आया और अपनी पत्नी को कहने लगा तू मुझे छोड़कर जा सकती है, लेकिन मैं अपनी मां को नहीं छोड़ सकता। शुक्र है एक छोटे से बच्चे ने अपने बाप के अंदर इन्सानियत को जगा दिया।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हमने अक्सर देखा है कि अच्छे-अच्छे आॅफिसर, आम आदमी जब अपने मां-बाप को वृद्ध आश्रम में छोड़कर जाते हैं, तो बेचारे वो दर्द से छटपटाते हैं, क्योंकि जो बुजुर्ग होते हैं वो बच्चों के समान हो जाते हैं। हमारा ये कल्चर रहा है, संस्कृति रही है कि हमारे जो आगे बच्चे रहे हैं वो उन बुजुर्गों को खिलौने की तरह लगते हैं, यानि उनके पोते, पोतियां, नाती, जितने भी होते हैं वो सारे के सारे उनके साथ खेलते हैं, बड़ी खुशी आती है उनको। लेकिन आप उनको ऐसे निकाल फेंकते हैं जैसे दूध से मक्खी निकाल कर फेंकते हैं। तो ये हमारी संस्कृति नहीं कहती। जितने भी बुजुर्ग सुन रहे हैं उनको चाहिये कि एक समय आ गया आप अपने बच्चों को कार्य संभाल दीजिये। उन्हें कहिये मेरे से जिन्दगी का तजुर्बा लेना चाहते है, मेरे से कुछ अनुभव लेना चाहते हैं तो मेरे से पूछ सकते हो, अब आप अपना काम संभालो।
आप जी ने फरमाया कि बच्चों को चाहिये कि वो अपने बुजुर्गों की ऐसी बेज्जती न करें, उन्हें अनाथ आश्रम मत भेजिये, उन्हें अनाथ मत बनाइये। आप जीते जी ऐसा करते हैं तो आपके साथ जब आपके बच्चे करेंगे तब क्या हाल होगा। तो बहुत जरूरी है आज के समय में अपने बुजुर्गों का सम्मान करना। क्योंकि आप उनका खून हैं, बहुत जरूरी है आप इज्जत के साथ उनको अपने साथ रखें, उनसे प्यार करें ताकि आपका जीवन भी सुखमय हो और उनका जीवन भी सुखमय हो। जरा सोच कर देखिये कब से उन्होंने आपको बड़ा किया, कितने सपने जोडेÞ होंगे आपके साथ। हमारे समय में हम लोग अपने मां-बाप से कभी नहीं पूछा करते थे कि क्या आप कर रहे हो, क्या काम हो रहा है, कितना पैसा कमा लिया आपने, बस ये होता था कि हमें जो चाहिये वो ले लिया बस।
लेकिन आज का दौर ऐसा आ गया है कि जीते जी लोग अपने मां-बाप मार देते हैं। उन्हें तो बस पैसा चाहिये, वो पगला जाते हैं हद से ज्यादा और उस पागलपन में ये अपने मां-बाप को भी अपने घर से निकाल देते हैं। और जो वृद्ध आश्रम बनाए जाते हैं उनमें भेजना आसान होता है। तो आप सब से प्रार्थना है आप जरूर ‘अनाथ वृद्ध आश्रम’ जरूर लिखें। फार्म पर भी जो सार्इंन करवाएं, उस पर लिखा हो ये अनाथ हैं, इनका कोई नहीं है। वैसे तो ऐसी नौबत ही नहीं आनी चाहिये हमारी संस्कृति में, क्योंकि आगे से आगे पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। बच्चे को मां-बाप संभालते हैं और जब मां-बाप बुजुर्ग हो जाते हैं तो उनको बच्चे संभालते आएं हैं।
इसलिए हमारी संस्कृति पूरी दुनिया में नंबर वन है। पर आज इसे आप डूबोने में लगे हैं। नशों की वजह से, पैसों की वजह से, लोभ-लालच की वजह से। तो प्यारी साध-संगत जी, हम आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि बुजुर्गों से बच्चों से आपस में तालमेल बना कर चलिये। किसी का गलत न करें, किसी के बहकावे में न आएं बल्कि अपने बुजुर्गों का साथ दीजिये वो आपके हैं। आप उनका खून हैं। कभी भी उन्हें वृद्ध आश्रम न भेजो। हम मालिक से दुआ करते हैं, प्रार्थना करते हैं कि वो आपकी झोलियां खुशियों से जरूर भरें।