विद्यालय का अनिवार्य अंग गणित प्रयोगशाला

गणित विषय केवल कक्षा कक्ष, श्यामपट व किताब-कॉपी तक सीमित नहीं है। इस विषय का दायरा बहुत अधिक है, यदि अनंत तक कहें तो भी ये गलत नहीं होगा। यह एक ऐसा विषय है जो विद्यार्थी में सोचने की शक्ति प्रदान करने के साथ-साथ तर्क क्षमता का भी विकास करता है। गणित से न केवल विद्यार्थियों का मानसिक विकास होता है, बल्कि इससे उनमें स्पष्टता, आत्मविश्वास, शुद्धता व एकाग्रता इत्यादि जैसे गुण भी विकसित होते हैं। गणित विषय केवल गणित अध्यापक या गणित के विद्यार्थी के लिए ही नहीं बल्कि यह सभी के लिए महत्वपूर्ण विषय है।

अपने दैनिक जीवन में हम बहुत बार गणित का इस्तेमाल करते हैं जैसे जब खेल के मैदान को बना रहे होते हैं या खेलते वक्त स्कोर का लेखा-जोखा रखते हैं, जब हम समय जानने के लिए घड़ी देखते हैं, अपने खरीदे गए सामान का हिसाब जोड़ते हैं या फिर खाना बनाते वक्त हर जगह गणित का प्रयोग ही तो कर रहे होते हैं। हमारी दिनचर्या में हम जाने-अनजाने में अनेक गणितीय गतिविधियां कर लेते हैं। गणित विषय इतना महत्वपूर्ण है तो इसके बारे में विचार करना व इसे अत्याधिक रुचिकर बनाना बहुत जरूरी हो जाता है। यह केवल किताबी ज्ञान से संभव नहीं है, किताबों से सूत्र याद करके गणित के प्रश्न तो हल किये जा सकते हैं, लेकिन ये सूत्र कहाँ से आए?

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या कैसे बने? यह जानना भी विद्यार्थी के लिए अनिवार्य है। ऐसा क्या किया जा सकता है कि विद्यार्थी बिना रटे इन सूत्रों तक स्वयं पहुंच सके, यह सब संभव है तो केवल गणित प्रयोगशाला में। गणित की प्रयोगशाला में छात्र स्वयं यंत्रों, उपकरणों तथा अन्य सामग्री की मदद से गणित के तथ्य, नियमों तथा सिद्धांतों की सत्यता की जांच करते हैं। इस विधि द्वारा ‘करके सीखने’ के सिद्धांत पर बल दिया जाता है। गणित प्रयोगशाला में विद्यार्थी स्वयं सूत्र बनाता है व उनका प्रयोग करता है जिससे उसका ज्ञान स्थाई हो जाता है।

गणित प्रयोगशाला विद्यार्थियों को गणित सीखने की प्रक्रिया में स्वतंत्र रूप से अवसर प्रदान करती है। यह विद्यार्थियों को सोचने, समझने एवं अध्यापक से विषय को लेकर चर्चा करने हेतु प्रोत्साहित करती है जिससे अध्यापक व विद्यार्थी के बीच की दूरियां भी कम होती हैं। विद्यार्थी सभी क्रियाएं स्वयं करता है जिससे उसका मनोबल बढ़ता है। अक्सर यह सुनने में आता है कि गणित विषय कठिन है, विद्यार्थी भी इस विषय में अधिक रुचि नहीं लेते।

इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? इन कारणों को खोजा जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह समस्या प्राथमिक स्तर से ही शुरू हो जाती है। यदि विद्यार्थियों की रुचि गणित विषय के प्रति प्राथमिक स्तर पर ही पैदा कर दी जाए तो समस्या का समाधान हो सकता है जिससे उन्हें यह विषय सरल लगेगा। यह केवल गणित प्रयोगशाला से ही संभव है।

प्राथमिक स्तर पर कुछ गणितीय प्रयोग किये जा सकते हैं :-

खेल खेल में गणित :

गणित प्रयोगशाला केवल एक कमरे तक ही सीमित नहीं होती है, बल्कि विद्यार्थी खेल के मैदान में, कक्षा कक्ष में या कोरिडोर में जहां भी सुविधा हो खेल विधि से गणित पढ़ सकते हैं। इस विधि से विद्यार्थी जोड़, घटा, गुणा व भाग के साथ-साथ और भी अन्य गणितीय गतिविधियां कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं।

मूर्त से अमूर्त की ओर :

गणित प्रयोगशाला में विद्यार्थी आकृतियों व उपकरणों को देख व छू सकता है और इनसे संबंधित प्रश्नों को आसानी से हल कर सकता है।

ज्ञात से अज्ञात की ओर :

गणित प्रयोगशाला विद्यार्थियों को ज्ञात से अज्ञात की ओर ले जाने में काफी मदद करती है। जिन सूत्रों या नियमों को विद्यार्थी पहले से जानता है उसकी मदद से नये सूत्र व नियम सत्यापित कर सकता है।

पैटर्न :

विद्यार्थी किसी पैटर्न को गणित प्रयोगशाला में देखता है फिर उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करता है उसके आधार पर सूत्र का निर्माण करता है। जब स्वयं द्वारा बनाए गये सूत्र से प्रश्नों को हल करता है तो उसकी रुचि विषय के प्रति बढ़ जाती है।

गणित किट :

जिन प्राथमिक विद्यालयों में अलग से गणित प्रयोगशाला का प्रबंध नहीं हो सकता, उनमें गणित किट की मदद से गतिविधियां करवाई जा सकती हैं।

प्राथमिक स्तर से ही गणित विषय के प्रति विद्यार्थियों की रुचि बढ़ानी है तो उन्हें केवल किताबी ज्ञान न देकर गतिविधियों के माध्यम से स्वयं करके सीखने के अवसर देने चाहिएं। प्राथमिक स्तर से ही इस विषय के प्रति विद्यार्थियों का रूझान बढ़ेगा व आगे जाकर सरलता से गणित विषय पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने में सफल होंगे। इसी कड़ी में आगे जाकर विद्यार्थी माध्यमिक व उच्च स्तर की कक्षाओं में गणित प्रयोगशाला का बेहतरीन प्रयोग कर सकता है जिसके द्वारा प्रायिकता, ग्राफ, समय व दूरी, पाइथागोरस प्रमेय, त्रिकोणमिति, ज्योमिती, बीजगणित के साथ-साथ बहुत से गणितीय उपविषयों को आसानी से समझा जा सकता है।

गणित प्रयोगशाला विद्यार्थियों के लिए लाभदायक है जैसे :-

  • विद्यार्थी स्वयं करके सीखता है जिससे उसमें आत्मविश्वास बढ़ता है तथा विषय के प्रति उसकी पकड़ मजबूत बनती है।
  • गणित विषय के प्रति विद्यार्थी की रुचि बढ़ती है।
  • विद्यार्थियों को स्वयं ज्ञान अर्जित करने में सहायता मिलती है।
  • शिक्षक व विद्यार्थी के बीच की दूरियां कम होती हैं, विद्यार्थी अपनी समस्या आसानी से शिक्षक के सामने रख सकते हैं व उनका समाधान पा सकते हैं।
  • विद्यार्थी सूत्र स्वयं सत्यापित करता है जिसकी मदद से प्रश्न आसानी से हल कर सकता है।
  • विद्यार्थी में तार्किक व मानसिक क्षमता का विकास होता है।
  • विद्यार्थी छोटे ग्रुप में कार्य करते हैं जिसके कारण सभी को बराबर अवसर मिलते हैं।
  • ग्रुप में कार्य करने से आपसी सहयोग की भावना भी उत्पन्न होती है।
  • विद्यार्थी रटने की प्रक्रिया को छोड़ देता है, क्योंकि स्वयं करके सीखने से उसका ज्ञान स्थाई ही जाता है।
  • छात्र प्रयोगशाला के उपकरणों का कुशल प्रयोग करना सीखते हैं।
  • विद्यार्थी परिश्रम करना सीख जाता है व आत्मनिर्भरता का भी विकास होता है।

ऐसी हो प्रयोगशाला:-

गणित प्रयोगशाला के लिए कमरा कम से कम 30 इनटू 20 वर्ग फुट का होना चाहिए। जिसकी सभी दीवारों पर गणित के सूत्र, प्रमेय, प्रमुख गणितीय चिन्ह व महान गणितज्ञों के छायाचित्र लगे हों। गणित प्रयोगशाला में एक गणना केंद्र होना चाहिए जिसमें इलेक्ट्रॉनिक कैलकुलेटर, फीता, मीटर, भार तोलने की मशीन आदि उपकरण आवश्यक हैं। इसके अतिरिक्त दो बड़ी मेज, गणित किट, अबेकस, टेनग्राम, प्रायिकता किट, लकड़ी की कोनिक सेक्शन किट, पाइथागोरस प्रमेय माडल, चार्ट, ग्राफ, ज्योमेट्री किट, क्लायिनोमीटर इत्यादि उपकरण होने आवश्यक हैं।

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