Revered Bapu Sardar Magghar Singh Sachi Shiksha

मालिक ही जानता है जो हम तुम्हारे घर आए हैं। तुम्हारा प्यार-मुहब्बत उस परम पिता परमात्मा से है, इसलिए  उन्होंने आप को चुना है।’ एक दिन जब परम पूजनीय बापू जी (नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी) ने अपने बहुत ही लाडले सुपुत्र पूजनीय गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सा को अपने पास बिठा कर यह पूछा, ‘हमने ऐसे कौन से कर्म किए थे जो आप (पूजनीय गुरु जी) ने हमारे घर जन्म लिया और हम संतों के जन्म दाता कहलाए।’

इसके जवाब में पूज्य गुरु जी के उपरोक्त वचनों को सुनकर पूज्य बापू जी ने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि ‘अब मैं संतुष्ट हूं।’ पूजनीय बापू जी अपने बहुत ही लाडले (अपनी इकलौती संतान) पूजनीय गुरु जी को बचपन से ही परम पिता परमेश्वर का स्वरूप अपने अंतर-हृदय से मानते थे, जो कि गांव के ही संत परम आदरणीय संत त्रिवैणीदास जी ने पूजनीय गुरु जी के अवतार धारण कर लेने से पहले ही पूजनीय गुरु जी के बारे पूजनीय बापू जी को बता दिया था कि यह कोई आम बच्चा नहीं है, यह तो खुद भगवान-स्वरूप है तथा पूजनीय बापू जी ने खुद भी अपने निजी अनुभवों द्वारा, अपने लाडले पूजनीय गुरु जी (बचपन से ही) के बात करने के अन्दाज, रूहानी इशारों, बड़े-बुजुर्गाें जैसा खुदाई मशविरा इत्यादि अलौकिक नजारों को अपनी आखों से देखा था, तो वह अपने लाडले को परमेश्वर स्वरूप ही मानते,

जानते तथा सम्मान करते थे।

गोद में खेले जिनके दुनिया,
कभी गोद खेले वो आपके।
चढ़ा कंधों पर करवाई सवारी,
चोज देखे खूब खुदा के।
इक इशारा हुआ मुर्शिद का,
की कुर्बानी हँसते हँसते,
वार दिया इक्लौते बाल को,
प्राणाधार थे जो माता पिता के
आज 15वीं पुण्यतिथि पर उस महान ईश्वरीय वरदान आत्मा की,
करोड़ों सिर झुके श्रद्धा में,
करने लगे सब सजदे।।

पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी पर्वतों से ऊँचे, समुद्रों से गहरे सभी गुणों से सम्पन्न थे। वह बहुत ही महान शख्शियत थे। कुर्बानी और त्याग की साक्षात मूर्ति थे पूजनीय बापू जी। उनका सम्पूर्ण जीवन मानवीय चेतना का रौशन-मुनार था। वह अपने प्रतिभाशाली गुणों, ऊँचे सच्चे ज्ञान, प्यार व त्याग की मिसाल थे। वह दीनता-नम्रता के पुँज  थे। आत्म-चिन्तन व सर्व धर्म संगम की प्रकाशमय किरणों से भरपूर पूज्य बापू जी परम पिता परमात्मा का वरदान हासिल इस युग के महान पुरुष थे।

और इतना बड़ा साहस कि अठारह वर्षाें से जिस औलाद को पाने के लिए इतनी ज्यादा तड़प को जितना पाल रखा था, जब वो इक्लौती संतान 23 वर्ष की आयु में, भरपूर यौवन में हो और नन्हीं-नन्हीं साहजादियाँ, साहिबजादे और बहुत ही सम्मानीय पूरा परिवार और अपने इको-इक वारिस, इतनी बड़ी जमीन-जायदाद, इतने बड़े राज घराने को छोड़कर जाने का जब संदेश मिला, तो बिना किसी किन्तु-परन्तु और बगैर कोई सवाल-जवाब के हँसते-हँसते अपने सतगुरु, मुर्शिद-प्यारे परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के मात्र एक इशारे पर देश, कौम, संस्कृति, समाज व दीन-दुखियों की भलाई के लिए अर्पण कर दिया।

है आज के युग में कोई पिता, जो अपने इक-इकलौते वारिस (बहुत बड़े व ऊँचे घराने) को इन परिस्थितियों के चलते अपने से जुदा कर दे! जबकि पूजनीय बापू  जी अपने लाडले को हर वक्त अपनी आँखों के सामने देखते, हर समय अपने सीने से लगा कर रखते और एक पल भी इनसे दूर न होते। टूर्नामैंट बेशक खेलने जाते, परन्तु जब तक घर न लौटते, गली व दरवाजे पर अपनी नजरें टिकाए रखते। पूजनीय बापू जी का त्याग इतिहास बना।

रूहानियत की मिसाल बना।

पर्वतों से ऊँची शख्सियत पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी राजस्थान के जिला श्री गंगानगर के एक बहुत
ही छोटे यानि पवित्र गाँव श्री गुरुसर मोडिया तहसील सूरतगढ़ के रहने वाले थे। गाँव श्री गुरुसर मोडिया का पवित्र नाम
पूजनीय गुरु जी (संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की  तरफ से डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे गुरु विराजमान करने पर मशहूर हुआ। पहले यह गाँव चक मोडिया के नाम से
जाना जाता था। पूजनीय बापू जी का जन्म साल 1929, संवत 1986 के मग्घर महीने में हुआ था, इस करके पूजनीय बापू जी के बड़े बुजुर्गांे ने उनका नाम सरदार मग्घर सिंह जी रखा था।

पूजनीय बापू जी के जन्म का इतिहास भी अपने

आप में बड़ा ही दिलचस्प है। आप जी के बड़े बुजुर्ग सम्मान योग्यबाबा हरि सिंह जी जिन्होंने गांव श्री गुरुसर मोडिया को बसाया था, उनके सात सुपुत्र थे। सबसे बड़े सुपुत्र स. संता सिंह,स. देवा सिंह, स. मित्ता सिंह, स. हरदित्ता सिंह, स. धर्म सिंह, स. निहाल सिंह और स. चित्ता सिंह जी थे। स. संता  सिंह जी के तीन सुपुत्र थे, जो तीनों ही छोटी आयु में भगवान को प्यारे हो गए। पहला पुत्र 1902 में पैदा होते ही प्राण त्याग गया, दूसरा बेटा नत्था सिंह जो 1913 में पैदा हुआ था, 10-11 वर्ष की आयु में भगवान को प्यारा हो गया तथा तीसरा बेटा सन 1924 में पैदा हुआ और 5-6 वर्ष की आयु में ईश्वर ने उसे वापिस बुला लिया। सन 1929 को एक रात सरदार हरि सिंह जी को सुबह-सवेरे लगभग चार बजे एक अद्भुत दृष्टान्त नजर आया।

उनको एक आवाज सुनाई दी। पूछा कि तू कौन है? तो आवाज ने पलटवें जवाब में कहा कि बाबा मैं नत्था सिंह हूँ। बाबा हरि सिंह ने कहा कि तेरे आने का मतलब, कभी आ जाता है, कभी चला जाता है? (नत्था सिंह जी स. संता सिंह जी का दूसरा बेटा था जो 10-11 वर्ष की आयु में ही भगवान को प्यारा हो गया था) इस पर उस आवाज ने कहा कि अब मैं काफी समय तक नहीं जाता।

नत्था सिंह का चेहरा बाबा हरि सिंह जी को हू-ब-हू याद था। सुबह-सवेरे (रोजाना के रूटीन अनुसार) उठते ही बाबा हरि
सिंह जी ने स. संता सिंह जी के घर जा कर आवाज दी कि नत्था सिंह स. चित्ता सिंह जी के घर आ गया है। ठीक वही
समय था जो बाबा हरि सिंह जी ने उस दृष्टान्त द्वारा देखा, आभास किया था।

स. चित्ता सिंह जी के घर पूजनीय बापूनम्बरदार मग्घर सिंह जी का जन्म हुआ था। पूजनीय बापू जी के नयन-नक्श, शक्ल-सूरत हू-ब-बू नत्था सिंह जैसी ही थी। बड़े बुजुर्गाें के कहने पर कि यह स. संता सिंह जी का नत्था सिंह ही है, पूजनीय बापू जी को स.संता सिंह जी ने गोद ले लिया। स्पष्ट है कि पूजनीय बापू जी के असल जन्मदाता तो स. चित्ता सिंह जी और माता संत कौर जी थे, परन्तु क्योंकि संता सिंह जी ने आप जी को गोद लिया था और पालन-पोषण करके बड़ा किया था, तो आप जी स. संतासिंह जी और माता चन्द कौर जी को ही अपने जन्म-दाता मानते व सम्मान करते थे।

जैसे स. सं्रता सिंह जी व स.चित्ता सिंह जी आपस में सगे भाई थे,उसी तरह माता चन्द कौर जी और माता संत कौर जी का बुआ-भतीजी का रिश्ता था। यानि माता चन्द कौर जी माता संत कौर जी की बुआ लगती थी।

पूजनीय गुरु जी के वचन कि तुम्हारा प्यार-मोहब्बत परम पिता परमात्मा से बेइन्ताह है और इसी लिए उसने आप जी को (पूजनीय बापू जी के घर को) चुना है, भाव हम तुम्हारे घर आए हैं के अनुसार पूजनीय गुरु जी संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने पूजनीय पिता नंबरदार सरदार मग्घर सिंह जी के घर परम पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां की पवित्र कोख से 15 अगस्त 1967 को इक इक्लौती संतान के रूप में अवतार धारण किया। पूजनीय गुरु जी छोटी आयु में ही अपने पूजनीय बापू जी के साथ डेरा सच्चा सौदा में परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम-शब्द की दात प्राप्त की।

पूजनीय बापू जी अपने इक्लौते लाडले को अपनी जान से भी बढ़ कर प्यार व दुलार करते थे। खेत जाते या गाँव में या पंचायत में जाते अपने लाडले को कंधों पर बिठा कर ही लेकर जाते। हालांकि पूजनीय गुरु जी चौदह वर्ष की आयु में बाहर टूर्नामैंट खेलने जाते रहते, परन्तु खेत जाते समय अपने कंधों पर ही बिठा कर लेकर जाते। हालांकि पूजनीय गुरु जी जोर देकर कहते कि नहीं, हमें अब शर्म आती है, बेशक पूजनीय गुरु जी के पाँव पूजनीय बापू जी के घुटनों तक पहुँच जाते, परन्तु बिठाते कंधों पर ही कि ‘मैं तुम्हें कोई तकलीफ नहीं देना चाहता।’ बल्कि यही दिलचस्प घटना पूजनीय बापू जी की पहचान ही बन गई कि जिसके कन्धों पर उसका लाडला बैठा हो और उसके पैर उनके घुटनों तक पहुँचते हों, समझ लेना वही हमारे गाँव श्री गुरुसर मोडिया का नंबरदार है।

जीना सिखाए जो कुल दुनिया को
बचपन बीता आपके आँगन में।
बालावस्था में कितने लाड लडाए,
चलना सिखाया उंगली पकड़कर आप ने।
एक पल भी न आप के बिन रहते,
कंधे पर उठाए घूमते गाँव भर में।
मुर्शिद ने जब कर दिया एक इशारा,
कर दी कुर्बानी उफ भी न की मुँह से।
पुन्य तिथि आज पूजनीय बापू जी की,
करोड़ो सिर झुक श्रद्धा से हैं सजदा करते।

महान त्यागी

यह इतेफाक था या परम पिता परमात्मा को यही मन्जूर था जैसा कि संत त्रिवैणी दास जी ने बताया था कि 23 वर्ष
तक ही तुम्हारे पास रहेंगे और वह समय अब आ गया था। जैसे ही सच्चे मुर्शिदे कामिल परम पिता शाह सतनाम सिंह
जी महाराज का इशारा, पवित्र आदेश मिला, दिल-जान से जिसको हर पल लगा कर रखते थे, अपने मुर्शिद के हुक्म पर
तुरन्त अर्पण करने के लिए तैयार हो गए! दिल डूबता है जब कि कोई बहुत ही अनमोल दिल-जान से प्यारी वस्तु अपने
से अलग हो रही हो, परन्तु धन्य धन्य कहें जितनी बार, कम है।

परन्तु आँखों में से एक आँसू भी अपने लाडले के
सामने नहीं गिरने दिया। हालांकि पता था कि लाडला भरी जवान उम्र में नन्ही-नन्ही साहिबजादियाँ साहिबजादे को, पूरे
परिवार को और इतने बड़े घराने, जमीन-जायदाद, राजाओं-महाराजाओं जैसे जीवन-यापन को त्याग कर फकीर बनने जा
रहा है, परन्तु क्योंकि सच्चे दाता मुर्शिदे कामिल का आदेश था, ‘सत वचन’ करके माना और अपने लाडले को अपने
मुर्शिद के हुक्म से दीन-दुखियों, इन्सानियत की सेवा के लिए अर्पण कर दिया।

पूजनीय बापू जी परम पिता परमात्मा के सच्चे भक्त थे। पूजनीय परमपिता जी बुजुर्ग अवस्था में कदम-कदम पर उनकी
संभाल व मार्गदर्शन किया करते थे। चाहे उस समय पूज्य परमपिता जी के स्वरूप की पहचान उन्हें नहीं थी, लेकिन
सच्चाई तब स्पष्ट हुई, जब पूज्य बापू जी ने पूज्य परमपिता जी का नजदीक से स्पर्श पाया था।
पूज्य बापू जी को अपने अंतिम समय का बहुत पहले ही ज्ञान था। इसलिए तो कई महीने पहले ही उन्होंने पूजनीय गुरु
जी के पास अपने लाडले पौत्र के विवाह की बात की कि मैं कुछ समय दोनों को अपनी आँखों के सामने देखाना चाहता
हूँ। कुछ समय बीता, सफेद कुर्ता-पाजामा कह कर सिलवाया। हालांकि कपड़े (वस्त्र) पहले भी नए बहुत थे।

अपने आखिरी समय भी वही नया सफेद कुर्ता-पजामा पहने हुए थे। अपने आखिरी समय में भी गाँव श्री गुरु सर मोडिया में उस गरीब परिवार की बेटी की शादी में मदद करने की इच्छा जाहिर की तो पूजनीय गुरु जी ने तुरन्त उनकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया कि उस परिवार की पूरी-पूरी मदद जरूर की जाएगी और इस तरह पूजनीय बापू जी ने अपने आखिरी समय में भी गरीबों-जरूरतमंदों की मदद का ख्याल किया । ऐसी मालिक की वडभागी रूहें जब इस संसार से विदाई लेती हैं, तो वह अकेले नहीं जाते, बल्कि रूहानी मण्डलों पर अटकी बहुत सी अधिकारी रूहों को भी अपने साथ सचखण्ड, मालिक की गोद में सतलोक ले जाया करते हैं। पूजनीय बापू जी नंबरदार सरदार मग्घर सिंह जी 5 अक्तूबर 2004 को परम पिता शाह सतनाम सिंह जी की पवित्र गोद में सचखण्ड-सतलोक जा समाए।

5 अक्तूबर पूजनीय बापू जी की पुण्य तिथि का यह दिन डेरा सच्चा सौदा में हर साल ‘परमार्थी दिहाड़े’ के रूप में मनाया
जाता है। इस दिन जहाँ गरीब जरूरतमंदों की सहायतार्थ परमार्थी कारज किए जाते हैं, वहीं रक्तदान शिविरों के द्वारा जरूरतमंदों की सहायता के लिए ज्यादा से ज्यादा रक्तदान भी किया जाता है। आज 5 अक्तूबर को पूजनीय बापू जी की इस 15वीं पुण्यतिथि पर पूजनीय बापू जी को हम सभी का (सारी साध-संगत) कोटिन-कोट बार सजदा है जी।
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